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Sep 1, 2024

कविताः कभी ऐसा भी हो

 - स्वाति बरनवाल

कभी ऐसा भी हो 

हम दोनों अचानक 

किसी मॉल में शॉपिंग करते

या बाजार से सब्जियाँ लेकर लौटते हुए

या फिर किसी स्टेशन पर टकरा जाते 

तुम मेरा सामान उठा लेते

और मैं तुम्हारे साथ साथ चल पड़ती

गाहे- अगाहे 

 

ट्रेन में मैं अपना टिफिन शेयर कर देती 

और तुम अपनी रोटी की चिंता

ये सोचते हुए कि

जिम्मेदारी भी मिलकर बाँटी जा सकती है 

 

तुम खिड़की से बाहर देखते 

और मैं तुम्हें कि

अप्रत्याशित ही हमारा मिलना

जीवन का असली सुख होगा।


1 comment:

Anonymous said...

बहुत बहुत आभार मेरी कविता को स्थान देने के लिए।🙏😊❤️