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Sep 1, 2024

आलेखः अनुवाद एक कठिन कार्य है

  - महेंद्र राजा जैन

अनुवाद करना एक कठिन कार्य है। यह शब्द सुनने-पढ़ने में जितना सरल और सहज जान पड़ता है , वास्तव में उतना सरल-सहज है नहीं। यह अत्यंत कठिन इस कारण भी है कि अनुवाद के लिए अनुवादक को कम-से-कम दो भाषाओं का ज्ञान – केवल कामचलाऊ ज्ञान नहीं, वरन अच्छा ज्ञान – होना आवश्यक है। इसके साथ ही दोनों भाषाओं के मुहावरे, लोकोक्तियाँ, व्याकरण आदि का ज्ञान होना भी आवश्यक है, क्योंकि अनुवाद में केवल भाषा का अनुवाद नहीं बल्कि उसके साथ भाव, संस्कृति, सन्दर्भ शैली आदि का अनुवाद भी किया जाता है। इससे भी अधिक महत्त्वर्ण बात यह है कि अनुवादक को उस विषय का भी अच्छा ज्ञान होना चाहिए जिस विषय की रचना का वह अनुवाद कर रहा है। यही कारण है कि असाहित्यिक या असाहित्येतर विषयों का अनुवाद करना और भी कठिन होता है क्योंकि इसके लिए उस विषय के तकनीकी शब्दों से अधिकतर लोग अनभिज्ञ होते हैं। साहित्यिक रचनाओं के अनुवाद में भी यह बात कुछ अंश तक लागू होती है, जैसे यदि किसी ऐसे उपन्यास या कहानी का अनुवाद किया जा रहा है जिसकी पृष्ठभूमि ‘1857 का स्वतंत्रता संग्राम’ है तो सफल अनुवाद के लिए आवश्यक है कि अनुवादक को इस विषय की भी कुछ जानकारी है, पर व्यवहार में देखा गया है कि ऐसा प्रायः होता नहीं है।

अनुवाद कठिन होने के साथ ही एक जटिल कार्य भी है। इसे ‘परकाया प्रवेश’ भी कहा गया है। प्रायः देखा गया है कि साहित्यिक कृतियों का अनुवाद करते समय सीधे, सरल वाक्यों का अनुवाद तो कर दिया जाता है , पर जहाँ भाषा बोलचाल की या मुहावरेदार शैली की होती है  उतना अंश छोड़ कर उस वाक्य या वाक्य समूह का भावानुवाद कर काम चला लिया जाता है, या फिर कुछ लोग शब्द-प्रति-शब्द अनुवाद कर डालते हैं बिना यह सोचे कि ऐसा करने से कभी-कभी अर्थ का अनर्थ भी हो सकता है। ‘औरंगजेब’ भारतीय इतिहास का एक पात्र है। यदि अंग्रेजी में अनुवाद करने वाले किसी व्यक्ति  को इसका ज्ञान न हो, तो वह इसका अंग्रेजी अनुवाद and colour pocket भी कर सकता है। अंग्रेजी का एक बहुत ही प्रचलित मुहावरा है –  Throw some light . प्रायः लोग इसका शब्द-प्रति-शब्द अनुवाद – कुछ प्रकाश डालना –  कर डालते हैं , जब कि इसका अनुवाद [किसी विषय पर] कुछ विचार रखना या कहना होना चाहिए। इसी प्रकार financially sound  का शब्दानुवाद ‘आर्थिक दृष्टि से आवाज’ नहीं वरन ‘आर्थिक दृष्टि से मजबूत’  होना चाहिए। दोनों भाषाओं पर समान अधिकार नहीं होने के कारण ही इस प्रकार की हास्यास्पद भूलें हो जाती हैं।  इस प्रकार के शब्दानुवाद में वाक्यों पर अंग्रेजी की छाया बनी रहती है; इसलिए पूरी तरह शब्दानुवाद करना हमेशा उचित नहीं समझा जाता। इसके विपरीत भावानुवाद में मूल के शब्द, वाक्यांश आदि पर अधिक ध्यान न देते हुए भाव या अर्थ पक्ष पर अधिक बल दिया जाता है। अतः अनुवाद में शब्दानुवाद के साथ ही भावानुवाद भी होना चाहिए तभी पाठक को अनुवाद किए गए कार्य को समझने में आसानी होगी। इसे अनुवाद का ‘मध्यम मार्ग’ भी कहा जा सकता है। अनुवाद कार्य में होने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए। यही सफल एवं आदर्श अनुवाद होगा।

कुछ लोग कहते हैं कि अनुवादक को ‘न कुछ जोड़ें, न कुछ छोड़ें’ की नीति अपनाना चाहिए । यहाँ प्रश्न होता है कि क्या यह संभव है? , क्योंकि स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा दोनों की प्रकृति अलग होती है, इसलिए कुछ-न-कुछ जोड़ना- छोड़ना होगा ही। इसी से अनुवाद अच्छा होगा। प्रत्येक भाषा के कुछ शब्द अपने होते हैं। उनका लक्ष्य भाषा में अनुवाद नहीं किया जा सकता। यदि उन शब्दों को अनुवाद में रखना आवश्यक ही हो तो उनका लिप्यन्तरण कर उनके सम्बन्ध में इस आशय की पाद-टिप्पणी दे देना ठीक होता है।

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