जो अपनी फिक्र को, ऊँची उड़ान देता है
ख़ुदा भी उसको, खुला आसमान देता है।
जो देखे आइने को, दिल के अपने साफ़ करके;
उन्हीं के अक्स को, मुकम्मल पयाम देता है।
ख़्वाहिशें, बंदगी तमाम, चलके देखें तो;
हो जहाँ रूह वहीं पर, आराम देता है।
टूटते तारों से कब तक, दुआ हम माँगेंगे ?
बुलंद करके ख़ुदी को, पैगाम देता है।
जले है लौ कि जब तलक, है तेल बाती में;
कि खौफ़ को क्यों 'मनस्वी' स्थान देता है।
-Ph_8604634044, email- meenakshishiv8@gmail.com
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