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Sep 1, 2024

व्यंग्यः नींद क्यों रात भर नहीं आती!

  - जवाहर चौधरी

इसे वैधानिक सूचना की तरह समझिए । हम अपनी बात कह रहे हैं । दरअसल अपनी बात कहने में जोखिम कम होता है, तो बात ये है कि हम सोने के लिए बदनाम थे कभी । अब जाने क्या डर है या चिंता कोई कि आँखों से नींद उड़ी हुई है । कभी कुम्भकर्ण नाम दिया था लोगों ने, तो उनका भी मान रखना पड़ता था । खूब सोते थे। अब पता नहीं किसके घोड़े बाँध लिये हैं सिरहाने । जैसे- जैसे रात काली होती है, नींद सेटेलाइट की तरह उड़ जाती है और लौटती नहीं है । मच्छर सर पर मँडराते रहते हैं, कहते हैं न सोऊँगा और न सोने दूँगा । इधर जितने बेरोजगार हैं, सब चौकीदार हैं और जागते रहो, जागते रहो चिल्लाते रहते हैं । आँख लगे, तो कैसे । कभी चैन की नींद सो लिया करते थे लोग, जिसके लिए शेरवानी पर लगा लाल गुलाब दोषी है शायद । ख्याल आता है कि सुबह होगी तब सो जाएँगे; लेकिन वो सुबह आ नहीं रही है ।

“ऐसे नहीं मानोगे ! चलो मन, तुम्हें बहलाने के लिए एक किस्सा सुनाते हैं । दरअसल तुम्हीं हो, जो बार- बार बहकते रहते हो। जबसे रेडिओ पर आने लगे हो,  तुम बहुत बिगड़ गए हो । तुम्हारी उछलकूद से हम परेशान होते हैं । तुम एक जगह स्थिर और शांत बैठो, तो हम नींद ले पाएँ जरा । खैर, सुनो कहानी । एक समय की बात है एक राज्य था शांतिपुरम । जैसा नाम वैसा गुण, राज्य में शांति और सौहार्द बहुत था। लोग मिलजुलकर रहते थे और जो मिल जाता था उसमें खुश थे । रातें गहरी नींद वाली और सुबह ऊर्जा से भरी होती थी । एक साँझी जीवनशैली में जी रहे थे लोग । इस बात से राजा वीरचन्द्र को बहुत संतोष था । यही बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रही थी । उन्होंने हितैषी बनकर प्रजा के बीच पैठ बनाई । पहले विश्वास जीता, उसके बाद विवेक भी और मौका मिलते ही इतिहास की ओर रुख मोड़ दिया । धीरे धीरे लोग वर्तमान को भूलने लगे और राजा वीरचन्द्र के शासन को भी । जिस भविष्य को लेकर आमजन सपने बुना करते थे कभी, उससे डरने लगे ।  नतीजा यह हुआ कि जो पीढ़ी भविष्य के निर्माण में लगी थी, वह अतीत के खनन में लग गई । ‘बीत गई सो बात गई’ कहने वालों को जनाक्रोश झेलना पड़ा । लोग कालखंडों, मान्यताओं और किताबों में बाँटते गए । पड़ोसी, जो पहले एक दूसरे के सहारे थे, अब संदेह करने और डरने लगे । सबसे पहले विश्वास घटा, फिर प्रेम और परस्पर आदर भी । जो पहले एक दूसरे को देख कर सुरक्षित मानते थे, अब खतरा महसूस करने लगे । समय बीता, जिन्होंने सुरक्षा की गारंटी दी थी, वही डर का सबसे बड़ा कारण हो गए...”

“रुको जरा !” अचानक मन बोला । “यह कैसा किस्सा सुना रहे हो ! इसमें नींद कहाँ है ? इस तरह की कहानी से किसी को नींद कैसे आयेगी भला ! ... मुझे परियों वाली कहानी सुनाओ ताकि सुकून मिले और कुछ सपने भी देख सकूँ।” 

“ किस्सों वाली परियाँ अब कहाँ हैं मन । वे अब बाज़ार में हैं, मॉल में हैं, पोस्टर और विज्ञापनों में हैं । परियाँ अब प्रोफेशनल हैं, आँखे बंद करने से नहीं, कांट्रेक्ट साइन करने के बाद ही आती- जाती हैं कहीं भी । किसी ने कभी कहा था कि बड़े सपने देखो । हम लम्बे सपने देखने लगे हैं, कलयुग से सतयुग तक । जल्द ही युवक भूल जाएँगे कि रोजगार किसे कहते है ! जीवन का आधार मुफ्त का राशन होगा और जीवन किसका होगा पता नहीं । ... यही चिंता है और यही डर ।”

“कोई उम्मीद बर नहीं आती ; 

कोई सूरत नजर नहीं आती । 

मौत का एक दिन मुअय्यन है ;

 नींद क्यों रात भर नहीं आती ।” 

सम्पर्कः BH 26 सुखलिया , भारतमाता मंदिर के पास ,इंदौर- 4520 10 , फोन- 940 670 1 670  


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