अहंकार के
अंत का सरल सूत्र
जो आपसे झुककर मिला होगा
उसका कद आपसे ऊँचा रहा होगा
जीवन में विनम्रता एक अद्भुत गुण है यह हम सबने बचपन से सुना है और यह भी कि विद्या विनय से ही शोभित होती है
विद्यां ददाति विनय, विनयाद् याति पात्रताम्
पात्रत्वात् धनमाप्नोति, धनात् धर्मं ततः सुखम्
अर्थात विद्या से विनय, विनय से पात्रता, पात्रता से धन, धन से धर्म और अंत में सुख की प्राप्ति होती है। कुल मिलाकर विनय की नींव पर ही जीवन के सब सुख, सुविधा एवं संतोष की इमारत खड़ी होती है, लेकिन यह तथ्य जानने के बावजूद हममें से कितने इस पर अमल कर पाए। वस्तुत: होता तो यह है कि जग बौराई राज पद पाई या फिर प्यादे से फर्जी भयो टेढ़ो टेढ़ो जाय। ऐसे परिदृश्य में एक छोटा-सा प्रसंग।
किसी ने पूछा – जीवन में इतना सब प्राप्त करने के बाद भी यह सब भला क्यों।
आपको याद होगा कुछ अरसे पूर्व, स्वयं के सम्मान हेतु आयोजित समारोह में नारायण मूर्ति को मंच पर ही रतन टाटा के पैर छूते हुए देखा गया था। क्या यह सचमुच संभव है। एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास संसार की सारी सुविधाएँ हों जैसे आलीशान बंगला, महँगी कारें वह परिवार सामान्य जन की तरह हर सामान्य कार्यरूपी सेवा पूरे समर्पण तथा श्रद्धा सहित करे। आज के दौर में यह आश्चर्य का विषय ही कहा जाएगा। ऐसे ही तो होने चाहिए हमारे आदर्श।
जो देखना हो इनकी उड़ान को
तो ऊँचा कर दो आसमान को
सम्पर्क: 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल-462023, मो. 09826042641, Email- v.joshi415@gmail.com
40 comments:
उत्तम
Very inspiring..
Sir please aisi koi ek regular activity initiate kijiye na aur us mein mujhe aur doosre volunteers ko with family participate karne ka mauka dijiye.
हार्दिक धन्यवाद. सादर
It's really very inspiring Sir.
प्रिय विजेंद्र,
आज की पीढ़ी गमे रोजगार की मारी हुई है. गालिब का गमे इश्क तो इतिहास हो गया. अनेक अवसर मिलेंगे. परिवार अधिक महत्वपूर्ण है. हमारा साथ तो समय की शिला पर स्वयंसिद्ध है. फिलहाल केवल यह देखना जरूरी है :
- जियो जीवन शान से, पूरे अरमान से
Managing Life : Priority wise
1) First : Health. Only then You can take care of Yourself, Your family and do justice with Your work and society.
2) Second : Family. The only True Companion from Arambh to avasan
3) Third : Work place. Creative contribution in return for the pay and perks.
4) Fourth : Service. Justify Your arrival on Mother Earth by serving Society selflessly
5) Fifth : Develop creative Passion. It will keep Your morale high and work as a ventilator in difficult times.
Regards : Vijay Joshi.
So nice of You indeed. Would like to thank personally, if share Your name. Thanks very much. Regards
चौतरफा नकारात्मक और स्वार्थपरक खबरों के बीच ऐसे हृदयस्पर्शी आलेख बहुत कम पढ़ने मिलते हैं। विजय जोशी जी और udanti.com को बहुत बहुत साधुवाद
चौतरफा नकारात्मक और स्वार्थपरक खबरों के बीच ऐसे हृदयस्पर्शी आलेख बहुत कम पढ़ने मिलते हैं। विजय जोशी जी और udanti.com को बहुत बहुत साधुवाद
Thank you very much sir :)
अंहकार का सीधा संबंध मोह से है। स्वयं का मोह त्याग कर ही निस्वार्थ सेवा भाव उत्पन्न हो सकता है। आशा है आपका यह लेख कुछ लोगों को अवश्य ही प्रेरित करेगा। साधुवाद@
वास्तव में अहंकार ही वह पदार्थ है जिससे हमारी पहचान निर्मित होती है। दुनिया हमे हमारे नाम, रूप, धन, कार्य अथवा अन्य गुणों के आधार पर पहचानती है। यही तथ्य हमारे स्वंय के लिये भी सत्य है। यह एक सामान्य मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अब्राहम मैस्लो ने आवश्यकता के क्रमिक सिद्धांत में इस का विवेचन किया है कि पहली अवस्था में व्यक्ति शारीरिक आवश्यकता, दूसरी अवस्था में, सुरक्षा संबंधी आवश्यकता, तीसरी अवस्था में प्रेम और अधिकार की आवश्यकता, चौथी अवस्था मे आत्म सम्मान अथवा यश और पांचवी अवस्था में आत्म विस्तार की कामना से प्रेरित होता है और इसी क्रम में अपनी पहचान बनाता है। पाँचवाँ क्रम पूर्व के चारो क्रमो की पहचान अर्थात अहंकार को मिटाने का क्रम है। यहां यह उल्लेखनीय है कि पांचवे क्रम में भी पहचान यानि अहंकार रहता है जो अत्यंत सूक्ष्म होता है। जितना सूक्ष्म उतना ही शक्तिशाली। पांचवे क्रम में वही सफल होता है जो पूर्वके चार क्रमो को सफलतापूर्वक पार कर लेता है। जैसे सुधा नारायणन । सेवा वह शक्तिशाली उपकरण है जिसके द्वारा इस सूक्ष्म अहंकार को समाप्त कर आत्मसाक्षात्कार अथवा परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है। सुधा जी उस मार्ग पर है उन्हें मेरी शुभकामनाएं। आप इस प्रकार के उत्तम चरित्रों की चर्चा से लोगों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। आपको सादर प्रणाम। यह महती कार्य है। कृपया जारी रखें।
अति सुंदर लेख।अहंकार ही इंसान के पतन का कारण होता है।जिन महान विभूतियों के बारे में आपने लिखा उन्हें चरण वंदन।यही हैं भारत के अनमोल रतन।अफसोस,tv पर इन्हें बहुत कम दिखाया जाता है।हाल ही में पढ़ा कि रतन टाटा जी अपने एक पुराने अस्वस्थ कर्मचारी साथी का हाल जानने स्वयं पुणे गए।हवा में राहोलेकिं पैर जमीन पर भी होने चाहिए।
बहुत बढ़िया। जब रावण का अहंकार नहीं रहा तो फिर सामान्य इंसान की क्या बिसात।
Excellent sir
After a long time I have read such heart touching story.
The main reason is our ego,which overshadows our good qualities.
Sikh community has a system of cleaning
Shoes of every body.
Hazrat Umar , during his rule conquered
Many battles by showing his humility in the battlefield, keeping his sword apart.
Thanks and regards
अत्यंत सटीक उदाहरण है sir। इस लेख को पढ़ने के बाद मुझे आदरणीय श्री विजय जोशी से हुई एक मुलाकात याद आती है। में जब जोशी sir को उनके निवास पर मिलने गया तब मुझे उनके सरल और अपनेपन वाले व्यक्तित्व से सीखने मिला। Joshi sahab is simple , kind and generous.
In short ego is like an infection which paralyzes our mind.
योगेश भाई, आपका स्नेह ही तो मेरी शक्ति है. सादर
सर साहित्य का अन्तिम लक्ष्य भी करुणा है. जहाँ करुणा है वहाँ शैतान का प्रवेश संभव नहीं है. आज का आदमी असहिष्णु हो गया है. पहले हम पराये का भी सम्मान करते थे लेकिन अब अपनों से भी स्वार्थ का सम्बन्ध रखते हैं.
बहुत सुन्दर लेख. हार्दिक बधाई. सादर प्रणाम 🙏🙏
कृष्ण द्वारा प्रतिपादित अनासक्त कर्म योग में सदा रत पाया आपको. यह हम सब साथियों का सौभाग्य रहा सदा से. अपने पढ़ लें और पसंद कर लें तो लिखना सफल हो जाता है. हार्दिक आभार. सादर
अद्भुत सोच. आप वाकई सहृदय तथा महान हैं. हार्दिक आभार इतनी गहराई से पढ़कर प्रतिक्रिया देने के लिए. मैस्लो की पांचवी पायदान तक पहुंचना आम आदमी के लिए असंभव है. वहां तो आप जैसा कोई मनीषी ही पहुंच सकता है. इतनी बड़ी साहित्यिक संस्था भी आप जैसे निर्मलमना के सहयोग व संकल्प से ही चल पा रही है. आप वाकई अद्भुत इंसान हैं. हार्दिक आभार सहित. सादर
यही तो त्रासदी है इस दौर की. सांई घोड़न के अछत गधन पायो राज. बस हम निर्मल मन से अपना काम करते रहें. आपका अंतर्मन से आभार. नाम लिखते तो अधिक प्रसन्नता होती. सादर
चंद्र भूषण जी, बहुत दिनों बाद मिले पर प्रासंगिक रूप से मिले. यही आनंद की बात है. हार्दिक धन्यवाद. सादर
शाहिद जी, आपसे बहुत कुछ सीखा. कई रचनाओं के मूल में आप ही का योगदान रहा. इस्लाम की विशेषताओं से आपने ही मुझे अवगत कराया तथा हमने संदेश को आगे बढ़ाया पूरी ईमानदारी और हौसले के साथ. पैगाम-ए-मोहब्बत है जहां तक पहुंचे. खासतौर पर तब जब जेहाद के मायने दोनों समुदाय से साझा किये पूरी बेबाकी से. यही प्रेम बना रहे. दिली शुक्रिया.
हेमंत भाई, सरल, सुलझे तथा सज्जन तो सचमुच में आप है सदा से सारथी सदृश्य. यही स्नेह सदा कायम रहे इसी कामना के साथ. सस्नेह
मान्यवर, आपाधापी के इस दौर में भी आपने पढ़ा और सारगर्भित संदेश दिया यह बात बहुत सुख दे गई. नाम बताने का कष्ट करें तो बात करना चाहूंगा. हार्दिक धन्यवाद.
अति सुंदर लेख।अहंकार ही इंसान के पतन का कारण होता है।जिन महान विभूतियों के बारे में आपने लिखा,उन्हें चरण वंदन।अफसोस,इन महान विभूतियों को tv पर ज़्यादा नही दिखाया जाता।है ही में पढ़ा था कि रतन टाटा जी अपने एक पुराने बीमार सेवा निवृत्त साथी का हाल जानने पुणे गए।यह है ज़मीन से जुड़े लोग।ज़मीन का साथ जिसने छोड़ा उसका पतन निश्चित है।
आप की सहृदयता एवं अपनेपन के कारण ही आप एक साधारण व्यक्ति को भी इतना मान ले पाते हैं। आभार।
दृष्टान्तो नाम यत्र मूर्खविदुषाम् बुद्धिसाम्यं यो वर्ण्यं वर्ण्यंति जिस प्रकार आपने उदाहरण देकर समझाया है वह जन सामान्य के लिए बहुत ही प्रेरणादायक है
विनम्रता ,मनुष्यता की पहली पहचान है। पैसा या पद नही, जिस व्यक्ति ने जितनी विनम्रता धारण की वह उतना ऊँचा उठा है। आदरणीय जोशी जी के लेख हमेशा अनुकरणीय होते है।
अति सुन्दर
सर जी यही जीवन का सत्य है जिसने भी जीवन मे ऊंचाई पाई है अपनी सादगी और ऊंचे आदर्शो से ही पाई है आपकी सादगी और नम्रता को हृदय से नमन है
भाई अनिल, बिल्कुल सही कहा आपने. अहंकार ही तो विनाश का द्वार है : अहंकारी तो
- वो अपनी ही झूठी शान से बाहर नहीं आते
- जो नकली फूल हैं गुलदान से बाहर नहीं आते
सच्चे पीछे रह गए. लफंगे उन पर छा गए.
पिछले पांच दशक से साथ निभाने के लिये अंतर्मन से आभार. हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय हीरानंदजी, आपकी सरलता, सादगी मन को छूती है. आपका साथ सत्संग का सुख देता है. यही स्नेह बना रहे सदा इसी कामना के साथ सादर. हार्दिक आभार
आदरणीय भाई साहब,
आपके द्वारा सदैव ही उच्च विचारो का शिक्षण प्राप्त होता हैं हम सभी को, सर्वथा सत्य हैं विनम्रता एवं परोपकार की भावना उच्च स्थानित व्यक्तिव की शोभा में चार चांद लगा देती हैं, आप इसके उत्तम प्रमाण हैं, आप पर हम सभी को गर्व हैं।
सादर
संदीप जोशी, इंदौर
An example is better than the thousand percepts. It's the best way to teach someone/Share your experiences...
Regards: Sorabh Khurana
गर्व तो हम सबको तुम पर है. मैं केवल वक्तव्य वीर हूं, पर तुम तो कर्मवीर हो पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के मामले में. २४ कैरेट. परिवार के रामेश्वर सेतु हो. सस्नेह
बिल्कुल सही कहा सौरभ. इसे ही तो कहते हैं संदेश उपदेश से नहीं वरन आचरण से. यही बात कभी भूलना, क्योंकि विरासत को सहेज कर तुम्हारी पीढ़ी ही तो आगे बढ़ाएगी. मेरी शुभकामनाएं सदा साथ रहेंगी. सस्नेह
अति सुन्दर व विचारोत्तेजक लेख। काश हम सभी सुश्री सुधामूर्ति एवं श्री नारायण मूर्ति जी की भाँति अपना ‘ईगो’ छोड़कर एक मानव की भाँति जीते। आदरणीय जोशी जी को ऐसा प्रेरणास्पद विषय उठाने हेतु हार्दिक साधुवाद।
आ. सिंह सा., बिल्कुल सही कहा आपने. अहंकार और ईश्वर में से कोई एक ही समा सकता है अंतस में. एक के आते ही दूसरा बाहर. तय हमें करना है कि किसे धारण करें. हर बार की तरह इस बार भी आपने ऊर्जा प्रदान की इस विचार यात्रा के पथ पर. सो हार्दिक आभार. सादर
सचमुच अहंकार बड़ी मुश्किल से मरता है। जितना हम स्वयं को सामान्य करने के प्रयास करते हैं उतना अहं का नाग फन उठाता है। सुधा मूर्ति जी के कार्य अनुकरणीय हैं।बहुत बढ़िया ढंग से समझाया आदरणीय जोशी जी ने।बधाई
अहंकार ही तो है सब झगड़ों की जड़.पर कहां मुक्त हो पाते हैं हम इससे. सब कुछ जानकर भी अनजान. हार्दिक आभार सहित सादर
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