पीले गुलाब-1
तुम्हें भेजे थे
चन्द पीले गुलाब
मिल गए न ?
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
सँजो रखे थे
पुखराज-पाटल
पीले गुलाब:
कोमल अहसास
तुम्हारा साथ
निर्धूम अगन -से
प्रशान्त ज्योति
पावनतम मित्र
मुझे भाती है
गुलाब की पीतिमा
पीले गुलाब
ओस-बिन्दु से सजे
महक उठे
अनाम , अछूते वे
रिश्ते निर्वाक् ही रहे ।
पीले गुलाब -2
अरसे बाद
भेजे किसी ने मुझे
पीले गुलाब
खिल उठी सुबह
दिन मुस्काया
बात-बेबात मन
गुनगुनाया
बड़े भले लगे वे
पीले गुलाब
जो किसी ने भेजे थे
युग बीते हैं
बसी गुलाब गंध।
याद आया वो दिन
बचपन में
एक साथ देखा था
मैंने-तुमने
एक पीला गुलाब
चार हाथों ने
झपट लेना चाहा
अधीर मन
अबोध बचपन
था उतावला
जागा सयाना पन
आँखों-आँखों में
कुछ .फैसला हुआ
रुके थे हाथ
गुलाब के पास जा
सूँघा, सराहा
डाली पै छोड़ दिया
वापस मुड़े
राहें भी जुदा हुईं
यादों में बसा
महकता रहा वो
पीला गुलाब
कभी सोचा न था कि
साँझ घिरेगी
बिछुड़ेगा काफ़िला
अकेला पन
सूने चट्टान- दिन
पाहन-रातें
बिताए न बीतेंगे
उखड़ी साँसें
और यादों की टीस
साथ गूँजेंगे
एक बोझिल भोर
विस्मय भरी
सच था या कि स्वप्न!
दो बूँद झरीं
विदा-वेला में मिला
आज पीला गुलाब!!
No comments:
Post a Comment