वैक्सीन की जमाखोरी की योजना
-गिरीश पंकज
राष्ट्रीय... नहीं-नहीं, अंतरराष्ट्रीय अखबार साप्ताहिक ‘खंडन’, जो महीनों में एकाध बार छपकर आता है।
उस के संपादक मंडन जी ने, अपने संवाददाता ‘विखंडन जी’ को पास बुलाया और कहा,
‘‘हे रिपोर्टरश्री,
नया साल आने को है और अपना अंतरराष्ट्रीय अखबार ‘खंडन’ अब तक प्रकाशित नहीं हो सका है। कम से
कम नये साल के आने के पहले तो निकाल ही लिया जाय वरना लोग क्या कहेंगे। पाठक तो ‘खंडन’ को महीनों से लापता देखकर रो रहे होंगे!’’
‘‘जी सर, आप ठीक फरमा रहे हैं।’’ विखंडन ने सुर में सुर
मिलाया, ‘‘मैं भी सोच रहा था, इस
साल कम से कम एक अंक तो निकल ही जाता। हुकुम कीजिए आका, क्या
करना है ?’’
- ‘‘तुम कुछ लोगों से मुलाकात
करके आ जाओ’’। मंडन ने कहा, ‘‘नया
साल सामने है। तुम लोगों से पूछो कि उनकी भावी खुराफ़ातें
बोले तो ‘पिलानिंग’ क्या
हैं ? पिछले साल देश को जितना पीछे धकेलने की कोशिश की गई,
उससे और कितना पीछे ठेलने की योजना है। और भी जो कुछ सूझ सके, बात कर लेना, लेकिन
साल खतम होने के पहले तक कार्यालय में उपस्थित हो जाना है मेरे बाप।’’
विखंडन ने मंडन को नमस्ते किया और ‘खंडन’ से
बाहर निकल कर इधर-उधर नज़रें दौड़ाई। सामने से एक लचकदार महिला चली आ रही थी। चाल
के आधार पर कोई भी शृंगार रस प्रेमी कवि उसे गजगामिनी कह सकता था। विखंडन ने सोचा,
शुरुआत इसी से करनी चाहिए। अब वह महिला के सामने, रस्ता रोकने की मुद्रा में खड़ा हो चुका था।
- ‘‘ए... ए... मिस्टर, ये क्या बदतमीजी है ?’’ महिला ने हड़बड़ाते
हुए कहा।
- ‘‘माताराम, मैं आपसे कुछ सवालात करना चाहता हूँ।’’ विखंडन ने सहमते हुए कहा।
महिला दोगुने गुस्से के साथ बोली, ‘‘अभी तो मैं जवान हूँ और मुझे माता जी कहते हुए लज्जा नहीं आती, मूर्ख ?’’
विखंडन ने मन ही मन कहा, लज्जा तो तुम्हें आनी चाहिए, जो बुढ़ापे को भी स्वीकार नहीं कर पा रही हो। प्रकट में बोला- ‘‘सॉरी माते ओह, मैडम, दरअसल
मैं एक जर्नलिस्ट हूँ और जानना चाहता हूँ कि ‘न्यू ईयर’ में आपकी
प्लानिंग्स क्या हैं ? ’’
- ‘‘माई पिलानिंग ? ’’ ‘‘नथिंग पिलानिंग, कुछ टॉप और जीन्स ‘परचेज़ करूँगी, नई ‘लिपस्टिक’ के नए-नए सेट्स और नई नई चूड़ियाँ भी खरीदूँगी। सब कुछ नया होना चाहिए न, ‘हसबैंड'
को छोड़कर। वो पुराना ही चलेगा। ... बस, यही सब ‘इन्जॉय’
करते हुए साल बीत जाएगा। इस बीच फिल्में देखूँगी और किटी पार्टियों में जाऊँगी, घूमूँगी-फिरूँगी और नारी
मुक्ति आंदोलन को घर-घर पहुँचाऊँगी।’’
इतना बोलकर वह आगे बढ़ गई। विखंडन भी
बढ़ चला। सामने से एक शख्स आता दिखा। कुछ-कुछ गुंडा, कुछ- नेता टाइप का। विखंडन सहसा समझ ही न सका कि वह
नेता है या गुंडा। फिर भी उसने गुंडा कहने की बजाय उसे नेता कहना ही उचत समझा- ‘‘नेता जी नमस्ते।’’
‘‘नमस्ते-नमस्ते... ’’ वह शख्स आठ-दस बार नमस्ते बोलने के बाद ही रुका, ‘‘कहिए, कहिए, कहिए,
मैं तुम्हारी, ओह, आपकी क्या खिदमत कर सकता हूँ? ’’
- ‘‘कुछ नहीं जेंटलमैन, ज़रा- सा, बस, ज़रा- सा
इंटरव्यू चाहता हूँ आपका।’’ विखंडन ने विज्ञापन शैली में मुस्कराते हुए
कहा।
- ‘‘अच्छा, तो आप जर्नलिस्ट हैं, पत्रकार हैं, खबरनवीस हैं? ठीक है पूछिए, क्या पूछना है?'’’ वह शख्स अतिरिक्त उत्साह
में आ गया।
- ‘‘पहले तो आप ये बताइए कि आप
नेता ही हैं न?’’
वह हँस पड़ा, ‘‘
- ‘‘नए साल के लिए आपकी कोई योजना? ’’
‘‘गुंडेता (नेता और गुंडा मिलकर बना गुंडेता) ने कहा, ‘‘परम्परागत तरीके से नेताओं की चमचागिरी, दादागिरी और मुहल्ले में अपनी धाक बनाए रखने का क्रम जारी रखूँगा। नेता जी के इशारे पर पत्थर चलाने से लेकर फूल मालाएँ पहनाने तक की व्यवस्था में संतुलन बनाए रखूँगा, और क्या? ’’
गुंडेता चला गया। फिर मिले मिस्टर दंगाई और आंदोलनजीवी। जुड़वा भाई।
दंगाई ने कहा, ‘‘हम दंगे जारी रखेंगे। रोजी-रोटी का सवाल है।’’ आंदोलनजीवी ने कहा- ‘‘हम तो भूख हड़ताल जैसे आंदोलनों के लिए किराए पर उपलब्ध रहेंगे, पापी पेट का सवाल है। नए साल में हमारी योजना है कि दंगे और आंदोलन जारी रखने के लिए कुछ न कुछ तिकड़म बिछाते रहें।’’
दोनों से अधिक बात करना बर्र के छत्ते में उँगली डालने जैसा था, इसलिए विखंडन ने खुद उनसे विदा ले ली। आगे एक चुलबुला छात्र मिल गया, ‘‘तुम्हारी क्या योजना है, बालक? ’’
छात्र बोला, ‘‘तोडफ़ोड़ करेंगे। बसें जलाएँ गे, स्कूल-कॉलेजों की कुर्सियाँ तोड़ेंगे। शिक्षकों का अपमान करेंगे। इसी तरह की अनेक योजनाएँ हैं, जिसे हमें पूरा करना है। नए साल में काफी ‘बिजी’ शिड्यूल है।’’
एक और सज्जन मिले। उन्होंने आँखें मटकाते हुए कहा, ‘‘सुना है कोराना का नाश करने के लिए वैक्सीन आ गई है। मैं तो जमाखोरी में पहले से ही उस्ताद हूँ। जुगाड़ जमाकर इस वैक्सीन की भी जमाखोरी कर लूँगा और ब्लैक में लोगों को बेचूँगा। हम लोग तो आपदा में भी अवसर की तलाश करने वाली प्रतिभाएँ हैं । तो मैं भी यह अवसर नहीं छोड़ूँगा।’’
इतना बोल कर सज्जन यकायक सकपका गए। सोचने लगे, ‘‘अरे यह मैंने क्या कह दिया!’’ फिर हाथ जोड़ते हुए बोले, ‘‘अरे रिपोर्टर जी, मैंने कुछ बहकी-बहकी बातें आपके सामने कर दीं। इसे छापने का कष्ट बिल्कुल ही न करें। मैंने तो ऐसे ही कह दिया था वैक्सीन के बारे में। नए साल की मेरी प्लानिंग यही है कि वैक्सीन खरीदकर लोगों को सस्ते में मुहैया करवाऊँ।’’
पलटू राम की बात सुनकर विखंडन को हँसी आई। वह सोचने लगा, कैसी-कैसी आत्माएँ इस धरा पर विचरण कर रही हैं। खैर, अपन क्या। हमें तो रिपोर्ट तैयार करनी है।
विखंडन ने अनेक लोगों से बातें की, जिसका निचोड़ यही था कि ‘‘नया साल, पुराने साल न दोहराए साहब।’’
विखण्ड घबराया। ऐसी रिपोर्ट देकर क्यों लोगों का नया साल खराब किया जाय। 2020 तो कोरोना से झुलसता रहा। शातिर महामारी ने देशभर के अनेक प्रिय लोग असमय काल के गाल में समा गए। अब उम्मीद कर सकते हैं कि 2021 में अमन चैन रहे। नाश हो इस कोरोना का। यह सोचकर उसने ‘खंडन’ के लिए जो रिपोर्ट बनाई, उसका आशय यही था कि आने वाले साल में देश की भलाई के लिए लोग अच्छी-अच्छी योजनाएँ बना रहे हैं। तोड़फोड़ और आगजनी नहीं करेंगे। प्रश्न यह है कि ‘खंडन’ में विखंडन की रिपोर्ट छपेगी कब?
नए साल में या फिर साल खत्म हो जाएगा, तब?
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