हर दिवस शाम में ढल
जाता है,
हर तिमिर धूप में
जल जाता है,
मेरे मन! इस तरह न हिम्मत हार
वक्त कैसा हो, बदल
जाता है।
-गोपाल दास नीरज
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इस अंक में
अनकहीः नए विश्वास
के साथ... - डॉ. रत्ना वर्मा
आलेखः कोविड और 2020: एक अनोखा वर्ष -स्रोत फीचर्स
आलेखः नए वर्ष का
स्वागत मुस्कान के साथ... - सुदर्शन रत्नाकर
आलेखः कोरोना की भयावहता के बीच 2020 की विदाई - डॉ. महेश परिमल
संस्मरणः सोहराई
पेंटिंग का जादू -रश्मि शर्मा
कविताः करो भोर का अभिनंदन -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
चोकाः पीले गुलाब - सुधा गुप्ता
कहानीः आखिरी पड़ाव का दु:ख - सुभाष नीरव
व्यंग्यः वैक्सीन की जमाखोरी की योजना - गिरीश
पंकज
लघुकथाः पेट पर लात - विक्रम सोनी
किताबेंः अनुभूतिपरक रचनाएँ ‘मौन की आहटें’ - डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’
कविताः नूतनता के विभ्रम में - डॉ. कुँवर दिनेश सिंह
लघुकथाएँः 1.अकृतज्ञ 2.छंगू भाई 3.बेरोज़गारी 4.धर्म - डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’
क्षणिकाएँः पहरे पर होता चाँद - रचना श्रीवास्तव
क्षणिकाएँः माँ वो
ख़त तुम्हारा ही है ना! - मीनू
खरे
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