साल 2020 की विदाई हो गई। यह साल ऐसी यादें छोड़ गया है, जिसे
हम सभी अपने पूरे जीवन में नहीं भूल पाएँ गे। यही वह साल है, जिसने हम सबको हिचकियों में रूला दिया। शायद ही कोई ऐसा घर हो, जहाँ से किसी एक सदस्य को इसने अपने आगोश में नहीं लिया हो। इस कोरोना ने
हम सभी को बुरी तरह से परेशान किया। दूसरी ओर इसने मालदार लोगों को और भी मालदार
बना दिया और गरीबों को ओर गरीब भी बनाया। कोरोना का यह दंश हमें बरसों-बरस तक याद
रहेगा।
कोरोना ने यह सबक तो हमें दे ही दिया कि अब तक हम जो अपनी
सेहत से खिलवाड़ करते थे, वह अब नहीं कर पाएँ गे। पेट को
कब्रिस्तान बनाने वालों के लिए कोरोना यही कह रहा है कि शाकाहार की ओर बढ़ो,
प्रकृति से जुड़ो, आयुर्वेद को अपनाओ। अब हमें
लगने लगा है कि हमारे पूर्वज ग़लत नहीं थे, हमने ही उन्हें अनदेखा किया। आज भुगतने की बारी हमारी है। कोरोना ने हमें
समझा दिया कि परिवार ही सब कुछ है। परिवार से बड़ा कोई हितैषी नहीं है। हम बेवज़ह ही पूरे खुद को समाज का हितैषी बता रहे थे। मौका आने पर उनमें से कोई भी
हमार साथ नहीं था, जिनके लिए हमने दिन-रात एक कर दिए थे।
जिन्हें हमने अपना माना था, वे दूर-दूर तक दिखाई ही नहीं
दिए। जो करीब थे, जिन्हें हमने सदैव अनदेखा किया, वे ही हमारी मुसीबतों में हमारे साथ खड़े रहे। इसके लिए कोरोना तुम्हारा
शुक्रिया।
इस कोराना ने पूरे विश्व को आर्थिक मंदी की ओर धकेल दिया।
इस आर्थिक मंदी में अमीर और अमीर बन गए, दूसरी ओर गरीब और भी गरीब बन गया। 2020 की जनवरी में
किसी ने भी नहीं सोचा था कि बुरे दिन आने वाले हैं। किसी ने कल्पना ही नहीं की थी
कि दो महीने बाद ही कोरोना पूरी दुनिया में कब्जा कर लेगा। इस कोरोना ने कई लोगों
को घरों में ही कैद रहकर काम करना सीखा दिया, तो दूसरी ओर कई
लोगों से धंधा-रोजगार छीन लिया, उन्हें सड़क पर लाकर पटक
दिया। ट्रेनें बंद हो गई, तो लाखों परिवार बरबाद हो गए।
पर्यटन उद्योग पूरी तरह से बैठ गया। सर्विस सेक्टर के जुड़े अनेक छोटे-बड़े व्यवसाय
बुरी तरह से प्रभावित हुए। रोज़दारी करने वालों की हालत बद से
बदतर हो गई। लोगों चीन को इसके लिए कसूरवार माना।
इस कोरोना काल में कई लोगों के पौ-बारह हो गए। एक तरफ सरकार
ने कई राहत पैकेज दिए, पर इस राहत के नाम पर कई लोगों
ने अपने स्वार्थ की पूर्ति कर ली। जब से इसमें राजनीति ने प्रवेश किया, तो सारी योजनाओं का बंटाधार गया। जिन्हें राहत की आवश्यकता थी, उन्हें राहत नहीं मिल पाई। किसानों से सस्ते में सब्जियाँ लेकर उसे दोगुनी-तिगुने दाम में बेचा गया। 5
रुपये किलो का टमाटर आम आदमी के हाथों तक
पहुँचते-पहुँचते 50 रुपये किलो हो गया।
कोरोना ने सबसे पहला हमला हमारी होली पर बोला। यह तो फीकी ही रही। उसके बाद जो भी
त्योहार आए, सबको इसने लील लिया। अभी हमने बहुत ही बेमन से
दीपावली मनाई। रोशनी का यह त्योहार भी फीका रहा।
इसी मास्क को अनदेखा करने का खामियाजा डोनाल्ड ट्रम्प को
भरना पड़ा। उन्हें हार का स्वाद चखना पड़ा। मास्क न पहनकर उन्होंने कोरोना का खूब मज़ाक उड़ाया। आखिर
में उन्हें अपनी सत्ता गँवानी पड़ी। 2020 ने उन्हें यही बड़ा सबक दिया कि किसी भी आपदा को हलके में नहीं लेना चाहिए।
उनकी इस अनदेखी से अमेरिका के सैकड़ों लोगों ने अपनी जानें गवाँ दी।
कोरोना ने लोगों को अभी भी खौफजदा कर रखा है। लोगों का
मानना है कि कोरोना का एक और भयंकर दौर आने वाला है। जिसमें फिर हज़ारों लोगों की मौत होनी है। कुछ लोग इस दिशा
में सचेत हुए हैं, तो कुछ बेपरवाह भी हैं। इतना सब कुछ होने
पर यह साफ़ दिखाई दे रहा है कि लोग अब पहले से अधिक धार्मिक
होने लगे हैं, परिवार प्रेमी होने लगे हैं। इस कोरोना ने
परिवार के महत्त्व को बता दिया है। कोरोना का समाज में यदि सकारात्मक प्रभाव की
बात करें, तो इसने हम सबको अपने परिवार के करीब ला दिया है।
दूसरी ओर इंटरनेट की महत्ता को समझा दिया है। लोगों ने एक-दूसरे को अच्छी तरह से
समझना शुरू कर दिया है। अपने-परायों का मतलब समझा दिया है। रोज़ी-रोटी के लिए शहर से दूर गए लोगों को भी यह समझा दिया है कि दूसरे शहर में
रहकर पेट तो भरा जा सकता है, पर दिल का सुकून नहीं पाया जा
सकता। वह सुकून तो उन्हें अपनी जन्म भूमि पर ही मिलेगा;
इसीलिए लोग अपने पाँवों पर भरोसा कर सैकड़ों किलोमीटर के सफ़र
पर निकल पड़े थे। सभी के दु:ख-दर्द एक हो गए थे। इसके पहले सबकी अपनी दुनिया थी,
जिसमें से वे कभी बाहर नहीं निकलना चाहते थे। कोरोना ने सबको एक कर
दिया। 2020 की कई यादों के साथ कोरोना ने हमें बता दिया कि
जीवन कितना कठिन है, इसे संघर्ष से ही बचाया जा सकता है।
जीवन बचा रहे और चलता रहे, इन्हीं कामनाओं के साथ नए वर्ष की
अनंत शुभकामनाएँ ...
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