-मंजूषा मन
लॉक डाउन को अभी
पाँच -छह दिन ही हुए थे। बच्चे रिया और ऋषभ दोनों ही मोबाइल में गेम खेल खेल कर
बोर हो गए थे। कहाँ दोनों बच्चे मोबाइल चलाने के लिए जिद करते थे। पर इस लॉक डाउन
में जब कुछ और करने को नहीं है तो दिन भर मोबाइल भी कितना चलाते। दोनों बच्चों ने
अब मोबाइल साइड में रख दिए।
कार्टून नेटवर्क और
पिक्चर देखने के लिए टीवी के पास पहुँचे तो पापा ने डाँट दिया –‘अरे बच्चों जाओ मुझे न्यूज देखने दो,
दुनिया की हालत कितनी खराब हो गई है। तुम दोनों को अभी कार्टून
देखने नहीं मिलेगा।’
बच्चों ने उदास
होकर कहा – ‘अब हम क्या
करें?’
तभी रिया ने कहा –‘भैया! चलो दादा जी के पास चलते हैं।’
ऋषभ ने कहा –‘दादा जी के पास क्या करेंगे’
‘अरे भैया... याद
है बचपन में दादा जी कितनी सारी कहानियाँ सुनते थे।’ -रिया ने याद
दिलाते हुए कहा।
ऋषभ अभी भी यही सोच
रहा था कि टाइम पास करने के लिए कौन-सा खेल खेलें।
‘चलो न भैया...
कुछ तो टाइम पास होगा।’ रिया ने उसे फिर कहा।
ऋषभ ने कहा – ‘चलो चलते हैं... अब घर से बाहर तो जा नहीं
सकते... तो चलो... दादा जी के पास ही बैठते हैं।’
दोनों बच्चे दादा
जी के कमरे में पहुँचे तो बच्चों को देखते ही दादा जी का चेहरा खिल उठा। वे बिस्तर
छोड़कर उठ बैठे। वरना रोज दोपहर को खाना खाने के बाद दो-तीन घण्टे बिस्तर पर ही
सोने की कोशिश करते हुए बीत जाते हैं।
रिया दादा जी के
पलंग पर चढ़ कर बैठ गई और बोली –‘दादा जी... हम बोर हो गए हैं... ये क्या है कि बच्चे खेलने भी नहीं जा
सकते? उसने मुँह बनाते हुए कहा।
ऋषभ ने कहा –‘दादा जी... आपको तो बहुत सारी कहानियाँ आतीं हैं न?’ तो
हमें सुनाइए न... जैसे बचपन में सुनाते थे....
इतना सुनना था कि
दादा जी मे गजब की फुर्ती आ गई... जैसे कोई ताकत का इंजेक्शन मिल गया हो।
दादा जी झट से
भूमिका बाँधकर बच्चों को कहानी सुनाने लगे। कहानी के साथ -साथ कई शिक्षाप्रद बातें
भी बताते जाते।
बच्चों का पूरा दिन
कहानियाँ सुनते आराम से बीत गया। इस बीच
मम्मी आकर दादा जी को कॉफी और बच्चों को मिल्क शेक दे गईं। जिससे कहानी का मजा और
कई गुना बढ़ गया।
मम्मी ने बीच मे
थोड़ा डाँटा भी- ‘बच्चो!!
दादा जी को ज्यादा परेशान मत करना... आराम करने देना।’
‘अरे बहू! मैं
परेशान नहीं हो रहा; बल्कि बहुत खुश हूँ’ दादा
जी ने कहा –‘अब तक बच्चों को समय ही कहाँ मिलता था कि ऐसे
कहानियाँ सुन सकें... बेचारों का स्कूल
फिर ट्यूशन में ही दिन बीत जाता था। बस गुड मॉर्निंग और गुडनाइट ही कर पाते थे।’
शाम को ऋषभ ने कहा –‘दादा जी... आपके पास तो किस्से कहानियों का
भंडार है... अब हम रोज आप से कहानी, कविता और पुराने जमाने
के किस्से सुना करेंगे।’
रिया ने गले से
लिपटते हुए कहा –‘दादा
जी लॉक डाउन खुलने पर भी मैं आपसे कहानी सुनूँगी।’
उसकी इस बात पर ऋषभ
बोला –‘दादा जी आप इस अकेले को कहानी मत सुनाना...
मैं भी सुनूँगा... हम दोनों सुनेंगे।’
दादा जी ने दोनों
बच्चों को गले लगा लिया.. वे नम आँखों से बोले –‘हाँ बाबा... अब मैं तुम दोनों
को रोज कहानी सुनाऊँगा...’
रिया ने चहकते हुए
कहा –‘लॉक डाउन खुलने के बाद हम गार्डन भी चलेंगे
और खूब खेलेंगे।’
दादा जी ने कहा –‘हाँ बच्चों... हम खूब खेलेंगे।’
सम्पर्कः अम्बुजा सीमेंट फाउंडेशन- भाटापारा , ग्राम - रवान (Rawan)
जिला- बलौदा बाजार (Baloda Bazar), राज्य- छत्तीसगढ़ , पिन- 493331
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