-सुदर्शन रत्नाकर
रात का घना अंधकार जब विश्व को अपने आँचल में समेट लेता
है तो वे क्षण कितने कठिन, कितने निराशाजनक होते हैं ; लेकिन प्रात:काल जब सूरज उगता है, तो
उसकी लालिमा सारी सृष्टि को भी अपने रंग से भर देती है, तब
प्रकृति मुस्कुरा उठती है। एक नए दिन का आरंभ मुस्कान से होता है। शुभ्र -धवल
हिमाच्छादित पर्वतों के उत्तुंग शिखर सूर्योदय की सुनहरी किरणों का स्पर्श पाकर
पीतवर्णी हो शोभाएमान हो जाते हैं। यह अद्भुत दृश्य कल्पनातीत होता है। सागर जब
मुस्कुराता है, तो उसकी लहरें लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती
है उनमें आशा का संचार करती हैं। हवा जीवन देती है ,धूप ऊर्जा देती है। कलियाँ मुस्कुराती
हुई खिलती हैं, तो अपनी सुंदरता से लोगों को अपने आकर्षण के
बंधन में बाँध लेती हैं। सोचो,
यदि वे न खिलें तो क्या होगा! सुंदरता उनके भीतर ही सिमटकर
रह जाएगी। न तितलियाँ आएँ गी,
न भँवरें मँडराएँगे। वे बिन खिले ही मुरझा जाएँगी। प्रकृति
की तरह ही हमारा जीवन भी किस काम का जो दुनिया को अपना कुछ दे न सके। हम वीर सैनिक
नहीं बन सकते महान व्यक्तित्त्व नहीं बन सकते , दानी बनकर किसी को धन-दौलत नहीं दे सकते पर दूसरों को ख़ुशी
तो दे सकते हैं और ऐसी ख़ुशी जिसके लिए आपको कुछ खर्च नहीं करना होता। समय नहीं,
पैसा नहीं बस आपकी एक मुस्कान,
केवल एक मुस्कान किसी दूसरे को अपार प्रसन्नता दे सकती है।
उसका दृष्टिकोण बदलकर जीवन भी बदल सकती है।
यूँ तो विज्ञान ने
हमें बहुत कुछ दिया है-
विशेषकर पिछली आधी शताब्दी से इतना कुछ देकर हमारी जीवन शैली ही बदल दी है। जहाँ
एक ओर जीवन सुविधाजनक बना है, तो दूसरी ओर भेंट में हमें
तनाव भी मिला है। हर व्यक्ति इन सुविधाओं को पाने के लिए भाग रहा है। मृगतृष्णा है,
मिटती ही नहीं। मुखौटे लगाए लोग क्षितिज को छूने की प्रतिस्पर्धा में लगे हुए हैं।
हमारा चेहरा हमारे
मन का आईना होता है। चेहरे की मुस्कान हमारे मन की भावना होती है। अर्थात् मन के
हाव-भाव हमारे चेहरे पर स्वतः आ जाते हैं; इसलिए मन को ही तो मनाना है कि मुस्कुराना है।
मुस्कुराता चेहरा हमारे व्यक्तित्व को दर्शाता है। हमारा सपाट चेहरा हमें घमंडी
होने का तगमा देता है, वहीं चेहरे पर खिली मुस्कान हमें शालीन और हँसमुख बनाती है।
अनजान जगह,
अनजान लोगों के बीच एक मीठी सी मुस्कान देकर जान-पहचान बढ़ा सकते हैं। कितना सुंदर
परिचय है न। मुस्कान की उपयोगिता हम कुछ उदाहरण से भी समझ सकते हैं- एक दुकानदार
अपनी मुस्कान से ग्राहकों को फाँसकर बेकार वस्तुओं की बिक्री बढ़ा लेता है, वहीं दूसरी ओर अपने रूखे व्यवहार के कारण
सस्ते दाम पर भी अच्छी वस्तु को नहीं बेच पाते। कार्यालय में कभी ऐसे बॉस भी होते
हैं, जो ऑफिस में अनुशासन बनाए रखने के लिए अथवा अपने पद को
दर्शाने के लिए अपना चेहरा सपाट बनाए रखते हैं ; लेकिन
उन्हें यह समझना चाहिए कि यदि वे अपने अधीनास्थ लोगों से, चेहरे पर मुस्कान लाकर बात करेंगे, तो इसमें अपनत्व झलकता है, कर्मचारी पर कोई तनाव नहीं होगा और वह प्रसन्नतापूर्वक
कार्य करेगा। यह प्रबंधन का एक फ़ंडा है।
1 comment:
बहुत ही सुन्दर तथा सकारात्मकता से परिपूर्ण दर्शन युक्त आलेख। हार्दिक बधाई। सादर
Post a Comment