एक दिन, अफ्रीका
के मैदानों में रहने वाले एक शिशु गौर (जंगली भैंसा) ने अपने पिता के पूछा,
मुझे किस चीज से सँभलकर रहना चाहिए?
तुम्हें सिर्फ शेरों से बचकर रहना चाहिए,
मेरे बच्चे, पिता ने
कहा।
जी हाँ, उनके बारे
में मैंने भी सुना है। अगर मुझे कभी कोई शेर देखा तो वहाँ से झटपट भाग लूँगा,
शिशु गौर ने कहा।
नहीं बच्चे, उन्हें
देखकर भाग लेने में समझदारी नहीं है, पिता गौर
ने गंभीरता से कहा।
ऐसा क्यों? वे तो
बहुत भयानक होते हैं और मुझे पकड़कर मार भी सकते है!
पिता गौर ने मुस्कुराते हुए अपने पुत्र को समझाया,
बेटे, यदि तुम
उन्हें देखकर भाग जाओगे तो वे तुम्हें पीछा करके पकड़ लेंगे। वे तुम्हारी पीठ पर
चढ़कर तुम्हारी गर्दन दबोच लेंगे। तुम्हारा बचना तब असंभव हो जाएगा।
तो ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए?
शिशु गौर ने पूछा।
जब तुम किसी शेर को देखो तो अपनी जगह पर अडिग रहकर उसे
यह जताओ कि तुम उससे भयभीत नहीं हो। यदि वह वापस नहीं जाए तो उसे अपने पैने सींग
दिखाओ और अपने खुरों को भूमि पर पटको। यदि इससे भी काम न चले तो उसकी ओर धीरे-धीरे
बढऩे लगो। यह भी बेअसर हो जाए तो उस पर हमला करके किसी भी तरह से उसे चोट पहुँचाओ।
यह आप कैसी बातें कर रहे हैं?
मैं भला ऐसा कैसे कर सकता हूँ? उन क्षणों
में तो मैं डर से बेदम हो जाऊँगा। वह भी मुझ पर हमला कर देगा,
शिशु गौर ने चिंतित होकर कहा।
घबराओ नहीं, बेटे।
तुम्हें अपने चारों ओर क्या दिखाई दे रहा है?
शिशु गौर ने अपने चारों ओर देखा। उनके झुँड में लगभग 200
भीमकाय और खूँखार गौर थे जिनके कंधे मजबूत और सींग नुकीले थे।
बेटे, जब कभी
तुम्हें भय लगे तो याद करो कि हम सब तुम्हारे समीप ही हैं। यदि तुम डरकर भाग जाओगे
तो हम तुम्हें बचा नहीं पाएँगे, लेकिन यदि
तुम शेरों की ओर बढ़ोगे तो हम तुम्हारी मदद के लिए ठीक पीछे ही रहेंगे।
शिशु गौर ने गहरी साँस
ली और सहमति में सर हिलाया। उसने कहा, आपने सही
कहा, मैं समझ गया हूँ।
हमारे चारों ओर भी सिंह घात लगाए बैठे हैं।
हमारे जीवन के कुछ पक्ष हमें भयभीत करते हैं और वे यह
चाहते हैं कि हम परिस्तिथियों से पलायन कर जाएँ। यदि हम उनसे हार बैठे तो वे हमारा
पीछा करके हमें परास्त कर देंगे। हमारे विचार उन बातों के अधीन
हो जाएँगे जिनसे हम डरते हैं और हम पुरुषार्थ खो बैठेंगे। भय हमें हमारे सामर्थ्य
तक नहीं पहुँचने देगा। (हिन्दी ज़ेन)
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