शिक्षा हर नारी का अधिकार
- डॉ. प्रीत अरोड़ा
आज लगातार टी.वी.
चैनलों और अखबारों की सुर्खियों में नारी के साथ हो रहे हादसों को देखकर मन व्यथित
हो रहा है। नारी सरेआम घर और बाहर दोनों जगह
शोषित हो रही है। चाहे कितने ही संस्थाएँ बना दी जाए या नारी के हक लिए आन्दोलन
किए जाएँ
कहीं भी स्थिति में सुधार होता नज़र नहीं आ रहा। हम प्रत्येक वर्ष महिला-दिवस बहुत
धूमधाम और खुशी से मनाते हैं पर उस नारी-वर्ग की खुशियों का क्या जो अशिक्षा के
कारण अपने मानवीय अधिकारों से वंचित महिला-दिवस के दिन भी गरल के आँसू पीती है।
ऐसे समाज में पुरुष स्वयं को शिक्षित,
सुयोग्य एवं समुन्नत बनाकर
नारी को अशिक्षित, योग्य एवं परतंत्र रखना चाहता है। शिक्षा के
अभाव में भारतीय नारी असभ्य,
अदक्ष अयोग्य, एवं
अप्रगतिशील बन जाती है। वह आत्मबोध से वंचित आजीवन बंदिनी की तरह घर में बन्द रहती
हुई चूल्हे-चौके तक सीमित रहकर पुरुषों की संकीर्णता का दण्ड भोगती हुई मिटती चली
जाती है। पुरुष नारी को अशिक्षित रखकर उसके अधिकार तथा अस्तित्व का बोध नहीं होने
देना चाहता। वह नारी को अच्छी शिक्षा देने के स्थान पर उसे घरेलू काम-काज में ही
दक्ष कर देना ही पर्याप्त समझता है। मेरा मानना है कि अगर नारी को शोषण और
अत्याचारों के दायरे से मुक्त होना है तो सबसे पहले उसे शिक्षित होना होगा;
नही तो तब तक स्थिति ज्यों की त्यों ही बनी रहेगी। यहाँ शिक्षा का अर्थ केवल अक्षर
ज्ञान से नहीं, अपितु
शिक्षा का अर्थ जीवन के प्रत्येक पहलू की जानकारी से है व अपने मानवीय अधिकारों का
प्रयोग करने की समझ से है। इसके साथ ही साथ नारी को दो मोर्चोंपर भी
मुख्य रूप से संघर्ष करना होगा। एक मोर्चा तो परम्परागत व्यवस्था में अपनी भूमिका
निभाते हुए स्वाधीनता तथा अधिकारों की माँग के लिए योजनाबद्ध प्रयास करने से
सम्बन्धित है ;जबकि दूसरे मोर्चे द्वारा उस मानसिकता को बदलना
है, जो उसे आज भी भोग्या मानकर शोषण करना चाहता
है। तभी सही अर्थों में नारी शिक्षित कहलाएगी और अत्याचार के दलदल से बाहर निकलकर
खुले आसमान में विचरण कर पाएगी।
सम्पर्क: मकान नं. 405, गुरुद्वारे के
पीछे, दशमेश नगर, खरड़
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