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Mar 14, 2014

दो ग़ज़लें

किस कदर

-ज़हीर कुरैशी

किस कदर अहतियात करते हैं,
कूट- भाषा में बात करते हैं!
दूसरों को परास्त करने में,
हम स्वयं को भी मात करते हैं।
ये गुरिल्लों की युद्ध-शैली है,
लोग पीछे से घात करते हैं!
ऐसे छाए हैं द्वंद्वके बादल,
दोपहर में ही रात करते हैं।
प्यार से बात भी नहीं करते,
प्यार अक्सर बलात् करते हैं।
चाह कर भी न झील कर पाई,
काम जो जल-प्रपात करते हैं!
हर सुबह सैर पर निकलते ही,
सबसे हम शुभ प्रभात करते हैं।

संहार
झूठ पर धार कर नहीं पाए,
सच का संहार कर नहीं पाए!
जो चमत्कार करने आए थे,
वो चमत्कार कर नहीं पाए।
बढ़ रही है दरार रिश्तों में,
ठोस आधार कर नहीं पाए।
लोग साँपों के साथ रह कर भी,
विष का व्यापार कर नहीं पाए!
मन में भाटा-सा उठ रहा है कहीं,
हम उसे ज्वार कर नहीं पाए।
कूप-मंडूक, चाह कर भी...कभी,
देहरी पार कर नहीं पाए।
मन के मंदिर में बैठी मूरत को,
हम निराकार कर नहीं पाए!
सम्पर्क: 108, त्रिलोचन टॉवर, संगम सिनेमा के सामने, गुरुबख्श की तलैया, स्टेशन रोड, भोपाल- 462001 (म.प्र.), मो.09425790565, Email- poetzaheerqureshi@gmail.com

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