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Mar 14, 2014

हास परिहास का लें आनंद

हास परिहास का लें आनंद
  - विजय जोशी
  जीवन एक बड़ी आनन्ददायक निधि है , जो ईश्वर ने हमें प्रदान की है। कितनी मधुर सेज सजाकर उसने हमें इस धरती पर भेजा। पालन -पोषण की अनेक वस्तुएँ, स्वाद के लिये जिह्वा, पक्षियों का कलरव सुनने के लिये कान, रीतिमा देखने के लिआँखें, फूलों की सुगन्ध रसपान हेतु नासिका। हमारे आनन्द, ऐशो आराम और ऐश्वर्य का सौ प्रतिशत पुख्ता इंतजाम करने के बाद ही उसने हमें भेजा, लेकिन दुर्भाग्य, हम इन सबका वह आनन्द लाभ नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं, जो उसका अभिप्राय था।
आज की इस आपाधापी और बेइंतहा महँगाई के दौर में आदमी आनन्दतो दूर किसी तरह किसी तरह जी पाने के लिए ही संघर्ष कर रहा है। पुराना दौर और था ,जब विलासिता की वस्तुएँ नदारद थीं ;पर आदमी आनन्द में था। अब अंदर का आनन्द गायब है। मोबाइल और मोटरबाइक अधिक आवश्यक हो गए हैं; बजाय परिवार के साथ बैठकर खुशियाँ मनाने के। कृत्रिम कॉस्मेटिक जीवन हमारी विवशता बनाता जा रहा है। यह त्रासदी सही भी है, क्योंकि अब तो सत्रह से सत्तर रुपये पहुँची दाल भी- दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ वाली उक्ति को असत्य साबित कर रही है।
तो फिर क्या किया जाए, यह प्रश्न हम सबके जेहन को झकझोरता है। बड़ी खुशी की तलाश में हम छोटी-छोटी खुशियों की उपेक्षा करते हैं। सुनहरे भविष्य की खोज में अपना वर्तमान मटियामेट कर देते हैं। इसका एक मात्र उपाय है जीवन में हास परिहास का महत्त्व स्वीकारें। खुशियाँ मिलकर बाँटें । निगेटिक को पॉज़ीटिव में रूपांतरित करें; तब तो बात बनेगी।
एक दौर में मेरी नौकरी बहुत कठिन थी। न्यूनतम बारह घंटे प्रतिदिन। घर के काम महीनों लंबित रहते थे, जिन्हें पत्नी प्रसन्नतापूर्वक अंजाम दिया करती थी। लेकिन सब्र की भी सीमा हुआ करती है। एक दिन वह दुर्वासा बन बिफर पड़ी?- न जाने किस अशुभ मुहूर्त्त में मेरा तुमसे विवाह संस्कार हुआ, जो तुम मिले और जिसे मैं आज तक भुगत रही हूँ।
बात सारगर्भित, सत्य और सटीक थी - पुनर्जन्म तो मानती हो न मैंने पूछा-
हाँ अवश्य। पर पूछा क्यों- पत्नी बोली।
मैंने कहा- मैंने इस जन्म में न सही पर पूर्वजन्म में अवश्य अच्छे कर्म किये होंगे, जिस कारण तुम जैसी सुघड़ सुंदर और सलोनी पत्नी प्राप्त हुई। तुम्हें पति इतना दुष्ट क्यों मिला ,इसका कारण तुम खुद ही खोज लो। मैं तो तुम्हारे पूर्वजन्म के कर्मों का फल मात्र हूँ।
सूरजमुखी से ज्वालामुखी बनी पत्नी तुरंत चंद्रमुखी बन खिलखिला उठी। वो दिन है कि आज का दिन वह संवाद पत्नी ने फिर कभी नहीं दोहराया।
यह है हास- परिहास की शक्ति का चमत्कार जो कठिन संग्राम को सरल और सुहाने पलों में बदल सकता है। अपने अंदर के अबोध बालक को मरने मत दीजिए। बाल कृष्ण की शरारतों के बाद की मासूमियत ही तो यशोदा का गुस्सा कफूर कर दिया करती थी। जीवन आनन्द का दूसरा नाम है। इसे भुनाइए। अपने अंतस् में आनन्द पैदा कीजिए। खुद भी खुश रहिए, दूसरों को भी रखिए। कठिन पलों में वाद-विवाद के बजाय स्वीकारोक्ति का भी एक आनंद है, जो रिश्तों में खाई नहीं जन्मने देती।

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