परदेशीराम वर्मा लिखित छत्तीसगढ़ी उपन्यास आवा का यह द्वितीय संस्करण है। परदेशीराम वर्मा ने हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी में समान अधिकार के साथ लिखकर ख्याति अर्जित की है। छत्तीसगढ़ी भाषा में उपन्यास कम हैं ऐसे में उनका यह उपन्यास और भी महत्वपूर्ण बन जाता है। इस उपन्यास में स्वतंत्रता के लिए छत्तीसगढ़ का संघर्ष एवं स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान विशेषकर जातीय सौमनस्य और गांधीवादी आचरण को रेखांकित किया गया है। इसमें छत्तीसगढ़ की परंपरा एवं विशेषताएं कथा के माध्यम से उभर कर सामने आर्इं हैं। भिलाई इस्पात संयंत्र की आधारशिला रखी जाने तक की कहानी के साथ- साथ छत्तीसगढ़ में मंचीय कलाकारों ने आजादी की लड़ाई में जो योगदान दिया है उस पर इस उपन्यास में बेहद रोचक वर्णन है। इस उपन्यास को एम.ए. पूर्व के पाठ्यक्रम में भी शामिल किया गया है। आजादी के बाद का एक दशक इस उपन्यास में चित्रित है।
प्रकाशक- अगासदिया प्रकाशन दुर्ग, मूल्य- 150/-
प्रकाशक- अगासदिया प्रकाशन दुर्ग, मूल्य- 150/-
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