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Apr 10, 2011

दो लघुकथाएँ

1.प्रॉब्लम चाइल्ड
- शेफाली पाण्डेय
एक सरकारी इंटर कॉलेज का प्रार्थना स्थल। प्रार्थना का समय। पच्चीस अध्यापक एवं लगभग पाँच सौ छात्र एकत्र हैं। सर्वधर्म प्रार्थना के उपरांत राष्ट्रगान शुरू हुआ। कतिपय छात्र हमेशा की तरह देर से आ रहे हैं और राष्ट्रगान सुनकर भी चलना बंद नहीं कर रहे हैं। कुछ अपनी नाक में उंगली डालने में असीम आनंद अनुभव कर रहे हैं। किसी के सिर में ठीक इसी समय खुजली लग रही है।
बच्चों की इन हरकतों से नवनियुक्त प्रधानाचार्य का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया, 'यह क्या हो रहा है? बिना हिले- डुले खड़े नहीं हो सकते हो? इतनी जल्दी राष्ट्रगान खत्म कर दिया। हारमोनियम के साथ सुर क्यों नहीं मिलाते? जानते हो यह राष्ट्रगान का अपमान है, इसका अपमान करने पर जेल हो जाती है।'
एक वरिष्ठ अध्यापक ने साहब का समर्थन किया, 'साहब ये तो कुत्ते की पूँछ हैं, कितनी भी सीधी करो टेढ़ी ही रहती हंै। लाख समझाओ पर 'गुजरात' को 'गुज्राष्ट्र' ही कहेंगे, 'बंग' को 'बंगा' ही कहेंगे। हम लोग तो कहते- कहते थक गए हैं, अब आप ही कुछ कीजिए।' 'आप लोग चिंता मत कीजिए। आज पूरा दिन इनको यहीं अभ्यास करवाया जायेगा। जब तक बिना हिले सही उच्चारण करके नहीं गा लेंगे, घर नहीं जा पायेंगे', प्रधानाचार्य ने कड़क स्वर में आदेश सुनाया।
कक्षा बारह का एक छात्र उठकर बोला, 'माफ कीजिए सर, मेरा एक सुझाव है। यदि आप लोग भी हमारे साथ रोज राष्ट्रगान गायेंगे तो हमें जल्दी समझ में आ जाएगा।'
'जुबान लड़ाता है कमबख्त। क्या नाम है तेरा? चल, किनारे जाकर खड़ा हो जा। अभी तुझे ठीक करता हूँ',। प्रधानाचार्य को मानो बिच्छू ने डंक मार दिया हो।
दो तीन और वरिष्ठ अध्यापक भी मैदान में आ गए, 'साहब, यह प्रॉब्लम चाइल्ड है। इसने हमारी भी नाक में दम कर रखा है। हमसे कहता है की मेरी कॉपी रोज जाँच दिया कीजिए। अरे, हम लोग लेक्चरर लोग हैं, हमारा एक स्टैण्डर्ड है। हम क्या एल.टी.वालों की तरह कॉपियां जाँचते रहेंगे?'
और कोई दिन होता तो इसी बात पर एल.टी. वालों और लेक्चररों के बीच महाभारत छिड़ जाती, परन्तु आज अद्भुत एकता स्थापित हो गयी। सभी एक स्वर से बोल पड़े, 'हाँ, हाँ, बिल्कुल। टीचरों से राष्ट्रगान गाने के लिए कहता है। सारे स्कूल का अनुशासन बिगाड़कर रख दिया है। इसे आज अच्छा सबक सिखाइए, ताकि आगे से किसी की इतनी हिम्मत न पड़े।'
सारा स्टाफ उसे सबक सिखाने में जुट गया। कभी किसी बात पर एकमत न होने वाले गुरुजनों में आज गजब की एकता आ गयी थी।
2. सच
'यह मेरे साइन नहीं हैं, बोलो तुमने ही किए हैं ना मेरे साइन'। सुमन ने कड़क कर पूछा।
'नहीं मैडम'। तथाकथित अंग्रेजी माध्यम में, कक्षा तीन में पढऩे वाली रेखा ने डरते हुए जवाब दिया। 'झूठ बोलती हो, हाथ उल्टा करके मेज पर रखो'।
रेखा ने सहमते हुए हाथ आगे किए। 'तड़ाक', सुमन ने लकड़ी के डस्टर से उसके कोमल हाथों पर प्रहार किया। रेखा रोने लगी। 'अगर तुम सच बोल दोगी तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगी। 'बोलो, तुमने ही किए हैं ना मेरे साइन, हैं ना।'
'नहीं मैडम, मैं सच कह रही हूँ।'
सुमन गुस्से से पागल हो गई। 'तड़ाक, तड़ाक, तड़ाक... उसने मासूम हाथों पर अनगिनत प्रहार कर डाले।
रेखा से दर्द सहन नहीं हुआ तो उसने स्वीकार कर लिया कि साइन उसने ही किए थे। सुमन के चेहरे पर विजयी मुस्कुराहट तैर गयी। 'आखिरकार, सच उगलवा ही लिया।'
शाम को घर पहुँच कर सुमन ने कॉपियों का बंडल जांचने के लिए बैग से निकाला ही था कि उसका नन्हा बेटा खेलता हुआ वहां आ गया, 'मम्मी, मुझे तुम्हारी तरह कॉपी चेक करना बहुत अच्छा लगता है। प्लीज, एक कॉपी मुझे भी दे दो।'
सुमन का माथा ठनका, 'तूने कल भी यहाँ से कॉपी उठाई थी क्या?'। 'हाँ मम्मी, बहुत मजा आया। बिल्कुल तुम्हारी तरह कॉपी चेक की मैंने।' सुमन ने अपना माथा पकड़ लिया।
उधर, रेखा के माँ- बाप उसका सूजा हुआ हाथ देख कर सन्न रह गए। दिन- रात खेतों में कड़ी मेहनत करने वाले उसके माता- पिता का एकमात्र उद्देश्य यही था कि उनकी बेटी कुछ पढ़-
लिख जाए।
'आग लगे ऐसे स्कूल को। कल से मेरे साथ खेत पर काम करने चलेगी, समझ गई। बड़ी आई स्कूल जाने वाली।' माँ उसके नन्हे हाथों पर हल्दी लगाती जा रही थी और साथ ही रोए भी जा
रही थी।
पता- द्वारा प्रो. हरी कुमार पन्त
छोटी मुखानी, निकट सिंथिया स्कूल,
हल्द्वानी-263139 उत्तरांचल
मोबाइल-09897559986

1 comment:

सहज साहित्य said...

शेफाली पाण्डेय की दोनों लघुकथाएँ स्कूली शिक्षा की खामियों को उजागर करती हैं । बच्चों को पढ़ाना कोई मशीनी काम नहीं , वरन् बालमन को समझना है। शिक्षकों का नकारात्मक दृष्टिकोण सबसे बड़ी बाधा है ।