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Mar 1, 2025

जीवन दर्शनः भूलने का विज्ञान- छिपा हुआ वरदान

  - विजय जोशी 

- पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक, भेल, भोपाल (म. प्र.)

   उपरोक्त शीर्षक कुछ अटपटा सा लगता है। पर इसका भी निहितार्थ है। सतही तौर पर इस कथन से सहमत नहीं हुआ जा सकता, किंतु उचित परिप्रेक्ष्य में देखें तो सब समझ में आ जाएगा। तो आइए देखें इसका सकारात्मक पहलू।
    दिल और दिमाग मनुष्य को ईश्वर की अद्भुत देन है। दिल जहाँ हमारे संवेदना समायुक्त पहलू को संवारता है, वहीं मस्तिष्क तौल मोल कर उचित निर्णय में सहायक होता है। मस्तिष्क में सारी जानकारी सीमा रहित संग्रहित होती है। यह तो हुआ सुखद पक्ष, लेकिन अति मात्रा में संग्रहित डेटा उसे बोझिल करने का सबब भी बनता है। इसके निराकरण हेतु हमें भूलने की सुविधा उपलब्ध है।
कई बार हम उस व्यक्ति का नाम भूल जाते हैं जिससे हम कुछ दिन पहले मिले थे। स्मृति अनुभूति की आधारशिला है, जो हमें स्मृति को संग्रहीत कर पुनः प्राप्त करने की अनुमति देती है। फिर भी स्मृति के पार्श्व में एक बेहद आकर्षक अवयव भी छुपा है : भूल जाना।
  जिस तरह बेतरतीब कार्य प्रणाली से सफलता संदिग्ध हो जाती है, उसी तर्ज पर आँकड़ों से बोझिल अप्रासंगिक जानकारी मस्तिष्क की गति को कुंद कर देता है। इनके हटने पर ही सब कुछ सुव्यवस्थित होकर नई जानकारी की जगह बनाई जा सकती है।
 वास्तविक प्रसंग : न भूल पाने का दर्द कैसा होता है यह मुझे ज्ञात  हुआ  एक पूर्व वरिष्ठतम पद से सेवानिवृत्त हुए उच्च अधिकारी से जिनकी याददाश्त अद्भुत थी। सब कुछ संग्रहित, लेकिन दुर्भाग्य यह कि जैसे ही कोई व्यक्ति उनके समक्ष किसी कार्य से उपस्थित होता था उनके मानस पटल पर उस व्यक्ति का विगत का पूरा इतिहास स्वयमेव उपस्थित हो उचित निर्णय लेने के मार्ग में अवरोध बनकर आ खड़ा होता था। नीतिगत सापेक्ष (Objective) निर्णय पर  व्यक्तिगत जानकारी के परिप्रेक्ष्य में विषय परक (Subjective) दुविधा का असमंजस। सोचिए कितनी दुविधा और सोच का संकट। 
   सभी आयु समूहों में भूलने का एक मुख्य कारण ध्यान न देना भी है। जानकारी को विश्लेषित कर बनाए रखने की हमारी क्षमता हमारी मानसिकता पर भी निर्भर करती है। जब हम किसी विशेष उत्तेजना या कार्य पर अपना ध्यान केंद्रित करने में विफल होते हैं, तो उससे जुड़ी जानकारी स्मृति में ठीक से उभर नहीं पाती है, जिससे भूलने की स्थिति पैदा हो जाती है। उदाहरण के लिये यदि आप किसी परिचित मार्ग पर चले हैं और आपको स्थलों को पार करने या कुछ निश्चित मोड़ों को याद नहीं कर पा रहे हैं, तो यह संभवतः इसलिए है क्योंकि आपका ध्यान कहीं और था। नकारात्मक विचार या दर्दनाक घटनाएँ अपनी भावनात्मक प्रबलता के कारण स्मृति से मिटने का विरोध कर सकती हैं, जिससे आगे बढ़ने के प्रयासों के बावजूद भूलना चुनौतीपूर्ण हो जाता है
 भूलना अक्सर स्मृति की विफलता के रूप में भी देखा जाता है, जो कतई सही नहीं है। वास्तव में जिस तरह मृत शाखाओं को काटने से एक पेड़ को पनपने में मदद मिलती है, उसी तरह भूलने से हमारी स्मृति प्रणाली अवांछित जानकारी को त्यागने और बदलती  मांगों के अनुरूप ढलने में सक्षम होती है। अगली बार जब आप खुद को किसी जानकारी को याद करने में असमर्थ पाएँ तो उपरोक्त तथ्यों को याद रखें। 
    निष्कर्ष : इसे ही कहा जाता है भूलने का विज्ञान : छिपा हुआ वरदान, जो आपको मानसिक रूप से सक्रिय, सचेत और स्वस्थ रखता है। 

43 comments:

देवेन्द्र जोशी said...

भूलना एक प्रकार से मेमोरी खाली करने जैसा हैl जितनी मेमोरी खाली होगी मस्तिष्क उतना ही रचनात्मक अथवा प्रभावी तरीके से कार्य कर सकता हैl अवश्य ही इस परिपेक्ष में भूलना लाभ दायक ही हैl आप में नए नए विषयों को बहुत ही रोचक एवं सरल रूप में पेश करने की अद्भुत क्षमता हैl

विजय जोशी said...

आदरणीय
आपका आशीर्वाद जो प्राप्त है, सो यात्रा क्रम जारी है। हार्दिक आभार सहित सादर

कृष्ण प्रकाश त्रिपाठी said...

बहुत अच्छा लिखा है.हम सामान्यतः इनसे अनभिज्ञ रहते हैं

Mahesh Manker said...

आदरणीय सर,
एक नई ऊर्जा के साथ , आगे बढ़ने के लिए पुराने नकारात्म विचारों और दुखदाई घटनाओं को भूलना ही होगा।
अत्यंत प्रेरणादायक लेख ।
धन्यवाद।

Samar Roy said...

Dimentia can be avoided by reading books or getting in mental games. Whereas some people have this habit of forgetting names.Yes our brain rejects many of the information ! Quite a positive article!
S N Roy

Anonymous said...

ज्ञानवर्धक आलेख, सर तभी तो ईश्वर ने भूलने का बुद्धि दी नहीं तो इंसान का दिमाग अवांछित चीजों को याद रखकर कचरे का ढेर हो जाता। और हमारी स्मृति बाधित होकर हम रचनात्मक क्षमता खत्म हो जाती।

डी सी भावसार

Anonymous said...

भूलने की बीमारी उम्र के साथ होने वाली एक बीमारी परंतु व्यक्ति अपने मतलब की बात काम ही भूलता है। कई बात है व्यक्ति जानबूझकर भी भूलने का ढोंग भी होता है। राम गोपाल ठाकुर।

Anonymous said...

बहुत ही उत्तम विचार।सुनने में वाक़ई अटपटा लगता है। लेकिन यदि हम अपने पुराने दुःख। दूसरों के द्वारा किया गया छल यानी नकारात्मक बातें भुला सकें तो हमारे दिमाग़ का बहुत बड़ा बोझ कम हो जाएगा। और हमारे स्वास्थ के लिये भी बेहतर होगा।आपने बहुत सटीक प्रश्न उठाया है। साधुवाद।
अशोक कुमार मिश्रा

राजेश दीक्षित said...

भूलना‌ एक स्वाभाविक सी प्रक्रिया है हम‌ सब अनुभव करते है‌‌ पर इसका विज्ञान एक गूढ़ विषय है जो आपने बखूबी समझाने का‌‌ प्रयत्न किया है। कब क्या भूल जाते हैं कहना मुश्किल है और क्यों पता नहीं। फिलहाल तो कभी अभिशाप कभी वरदान लगता है। सादर
राजेश दीक्षित

Kishore Purswani said...

एकदम सही । यदि हम हर एक पिछले अनुभव को याद रखें, तो यह बहुत ज़्यादा सोचने और अनिर्णय की स्थिति पैदा कर सकता है। अनावश्यक विवरणों को भूलने से निर्णय लेने में आसानी होती है।

Anonymous said...

एक तरह से तो भूलना मानसिकता स्वास्थ्य के लिए अच्छा है । नकारात्मक बातें अगर भूलते रहेंगे तो सकारात्मक विचार स्वमेव आते रहेंगे। आपने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहुत अच्छी तरह से समझाया है आदरणीय।
शीला मिश्रा

Daisy C Bhalla said...

Nice one. I focussed on title n various aspects of memory. Forget n Forgive is oft quoted n self directed saying. On the lighter side RAM n ROM n later EPROM 🤩in electronics study appeared thru the subconscious🙏🏼

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार आदरणीय त्रिपाठी जी

विजय जोशी said...

प्रिय महेश
हार्दिक आभार। सस्नेह

विजय जोशी said...

Thanks very very much sir. Reading definitely helps in memorising positive thoughts

विजय जोशी said...

आदरणीय भावसार जी
असीमित याद भी बोझ ही होती है। हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

प्रिय मित्र राम गोपाल
यह बात भी सही है। ढोंगी तो ढोंगी ही होगा। हार्दिक आभार

विजय जोशी said...

प्रिय अशोक भाई
नकारात्मक से छुटकारा भी स्वस्थ तन मन की औषधि ही है। हार्दिक आभार सहित

विजय जोशी said...

प्रिय राजेश भाई
भूलना एक तरह से अभिशाप को वरदान में परिवर्तित करने का साधन है। हार्दिक आभार सहित

विजय जोशी said...

प्रिय किशोर भाई
सही समझा आपने। इसका सीधा संबंध हमारी निर्णय क्षमता से ही है। हार्दिक आभार सहित

विजय जोशी said...

आदरणीया
स्वस्थ तन और मन हेतु नकारात्मक यादों को भूलना यह सहायक ही है। हार्दिक आभार सहित

विजय जोशी said...

Dear Daisy
Forgive and forget is key to success in life. Thanks very much. Regards

Anonymous said...

सर भूलने की आदत पर आपका यह शानदार लेख है, जो वास्तविकता को जाहिर करता है। प्रकृति ने इंसान का दिमाग बनाया है तो उसमें भूलने के गुण स्वाभाविक रूप से शामिल हैं। भूलने की आदत का भी अपना एक अलग ही आनंद है, जो स्वास्थ्य के प्रति लाभकारी है। उस समय मनुष्य चित्त की चेतना को विराम देता है। जो स्वाभाविक है।

Dil se Dilo tak said...

अच्छी बात सुनहरी यादों को संजोना चाहिए और कड़वी व दुखद बातों को बिसार देना चाहिए. मानव सुख का यही मार्ग है.
धन्यवाद सर.. बधाई लेख हेतु 💐🌹

Anonymous said...

S k agrawal ,Gwalior
भूल जाना बहुत बड़ा वरदान
"भूली हुई यादें मुझे इतना न सताओ .."
भावुक व्यक्ति के लिये अमृत है यह...

dr.surangma yadav said...

शीर्षक को सार्थकता प्रदान करता हुआ सुंदर व व्यावहारिक लेख। बधाई आदरणीय।

Mukesh Shrivastava said...

Nicely written article.Sir you explain the things in a simple and interesting way.

Hemant Borkar said...

पिताश्री हमेशा कि तरह अप्रतिम व शीर्षक। यहाँ पर एक अंग्रेजी का छोटा से वाक्य है Forget and forgive. किसी अप्रिय बात या घटना को भूलना और माफ़ करके के आगे के कार्य के लिए तैयार होना। सादर प्रणाम व चरण स्पर्श 🙏

Mandwee Singh said...

सादर प्रणाम आदरणीय
इस आलेख का शीर्षक बहुत रोचक, प्रभावशाली और जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला है।भूलने का विज्ञान वास्तव में वरदान से कम नहीं है।यह भूलना बुढ़ापे का अल्जाइमर नहीं है बल्कि व्यक्तित्व का ऐसा सकारात्मक पहलू है जिससे हमारा वर्तमान व्यवस्थित रहता है। मन प्रफुल्लित रहता है। "भाड़ में जाए " कहने वाले और अमल करने वाले लोग भी इसी वरदान को प्राप्त किए होते हैं।
बहुत शानदार और अनुकरणीय आलेख। साधुवाद

Dr.Surinder kaur said...

Eye opening thought.Intentionally also we must try to delete unnecessary memories

nirdesh nidhi said...

बहुत सार्थक लिखा, सूचना की अधिकता भी इसका एक महत्वपूर्ण कारण है ही।

विजय जोशी said...

हार्दिक आभार मित्र

विजय जोशी said...

प्रिय रजनीकांत
हार्दिक आभार। सस्नेह

विजय जोशी said...

प्रिय डॉ. श्रीकृष्ण अग्रवाल
हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

आदरणीया
आपकी विद्वत्ता को नमन सहित हार्दिक आभार। सादर

विजय जोशी said...

My Dear Shri Mukesh
So nice of you. Thanks very much. Regards

विजय जोशी said...

प्रिय हेमंत
क्षमा वीरों का आभूषण है। हार्दिक आभार सहित। सस्नेह

विजय जोशी said...

आदरणीया
आपकी तो बात ही अद्भुत है। कितने मनोयोग से पढ़कर विचार को संवारने की कला ईश्वर ने आपको प्रदान की है। भूलना सदा दुर्गुण नहीं, सगुण भी हो सकता है, बशर्ते मस्तिष्क को सही सिग्नल दे सकें हम। हार्दिक आभार सहित सादर

विजय जोशी said...

Dear Dr Surinder
Thanks very much. Waiting to welcome you in bhopal during this June. Thanks very very much. Regards

विजय जोशी said...

आदरणीया
पहली बार आपसे लिंक पर साक्षात्कार हुआ। सो हार्दिक आभार सहित सादर

Anonymous said...

मानव मस्तिष्क में कुछ बातें भूलना ही उचित होता है। जैसे किसी प्रिय वस्तु का पिछोह भूलना हितकर होता अन्यथा आपके स्वास्थ्य पर उसका चिंतन लगातार नकारात्मक प्रभाव डालता है। आपके ले ख अत्यंत शिक्षाप्रद एवं मनन योग्य है। रामगोपाल

Anonymous said...

Excellent thought provoking writeup.At times we are ignorent of so many things.

K.P.Tripathi. said...

Excellent thought provoking write up. At times we are ignorent of so many things.