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Apr 10, 2011

जज़्बा


रिक्शा चालक बना लेखक 
परिवार की आर्थिक हालत ठीक न होने के चलते रहमान को 10 वीं के दौरान स्कूल छोड़ आजीविका चलाने के लिए काम करना पड़ा, लेकिन वह लेखक बनना चाहते थे। वह कहते हैं कि पिता के निधन के बाद मेरे ऊपर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। उस समय लेखन के क्षेत्र में जाकर अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए न तो मेरे पास समय था और न ही संसाधन।
यूपी (बस्ती) के एक रिक्शा चालक की लिखी चार किताबें छप चुकी हैं, जिसमें विभिन्न मुद्दों पर आधारित करीब चार सौ कविताओं का संग्रह है। बस्ती जिले के बड़ेबन गांव निवासी रहमान अली रहमान (55) ने बताया कि कविता लेखन मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। बिना कविताओं के मैं अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता। कविता मुझे जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति देती है। रहमान के मुताबिक जब उन्हें सवारी नहीं मिलती तो वह अपने समय का उपयोग कविता लिखकर करते हैं।
परिवार की आर्थिक हालत ठीक न होने के चलते रहमान को 10 वीं के दौरान स्कूल छोड़ आजीविका चलाने के लिए काम करना पड़ा, लेकिन वह लेखक बनना चाहते थे। वह कहते हैं कि पिता के निधन के बाद मेरे ऊपर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। उस समय लेखन के क्षेत्र में जाकर अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए न तो मेरे पास समय था और न ही संसाधन।
कुछ समय बाद रहमान कानपुर जाकर एक सिनेमाघर में नौकरी करने लगे। रहमान याद करते हुए कहते हैं कि नौकरी के दौरान उन्हें फिल्मी गाने सुनने का मौका मिलता। बाद में वह खुद गीत लिखने की कोशिश करने लगे। अपने गीतों से रहमान कुछ दिनों में सिनेमाघर के कर्मचारियों के बीच खासे लोकप्रिय हो गए। रहमान जो अभी तक केवल गाने लिखते थे धीरे- धीरे समसामयिक मुद्दों पर लंबी कविताएं लिखने लगे।
इसी बीच उन्हें बस्ती जिले स्थित अपने गांव जाना पड़ा, जहां उनकी शादी हो गई। यहां उन्होंने अपनी आजीविका चलाने के लिए रिक्शा चलाने का फैसला किया। इस दौरान उन्होंने रिक्शा चलाते हुए कविताएं लिखना जारी रखा। रहमान के तीन बेटे और तीन बेटियां हैं।
साल 2005 रहमान के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया जब एक व्यक्ति की मदद से रहमान की पहली किताब का प्रकाशन हुआ। रहमान ने बताया कि आवास विकास कॉलोनी (बस्ती) के पास एक दिन मैं सवारी का इंतजार कर रहा था तभी एक व्यक्ति ने मुझसे कहीं छोडऩे के लिए कहा। उसने देखा मैं कागज पर कुछ लिख रहा हूं। रास्ते में बातचीत के दौरान उसे मेरे कविता लेखन के बारे में पता चला। उसने मुझे स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कानपुर जेल के एक कार्यक्रम में कविताएं सुनाने का मौका दिया। रहमान ने उस कार्यक्रम में हिस्सा लिया और इस दौरान उन्हें पता चला कि वह व्यक्ति मशहूर हास्य कवि रामकृष्ण लाल जगमग हैं।
बाद में रहमान का सामाजिक दायरा बढ़ा। एक कार्यक्रम में रहमान की मुलाकात कुछ शिक्षकों से हुई। वे कानपुर के एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) मानस संगम के सदस्य थे। इन लोगों की मदद से साल 2005 में रहमान की पहली किताब 'मेरी कविताएं ' का प्रकाशन हुआ। तब से रहमान की 'रहमान राम को', 'मत करो व्यर्थ पानी को' सहित तीन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।
एनजीओ मानस संगम के संयोजक बद्री नारायण तिवारी ने कहा कि रहमान हर मायने में अद्भुत हैं। विपरीत परिस्थितियों में कविता लेखन की निरंतर कोशिश का उनका जज्बा निश्चित तौर पर तारीफ के काबिल है।

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