जन्म स्थली निज भवन में, आए हैं श्री राम।
मुदित मन जग देखता, मूरत शुभ अभिराम।।
दिव्य ज्योत झिलमिल जली, राम लला के धाम।
निशितारों ने लिख दिया, कण कण पर श्री राम।।
स्वागत में मुखरित हुई, सरयू की जलधार।
पावन नगरी राम की , सतरंगी शृंगार।।
शंखनाद की गूँज में, गूंजित है इक नाम।
पहने अब हर भक्त ने, राम नाम परिधान।।
उत्सव मिथिला नगर में, सीता का घर द्वार।
रीझ-रीझ भिजवा दिया, मिष्टान्नों का भार।।।
प्रभु मूरत है आँख में, अधरों पे है नाम।
अक्षर अक्षर लिख दिया, मन पृष्ठों पे राम।।
आँखों में करुणा भरी, धनुष धरा है हाथ।
शौर्य औ संकल्प का, देखा अद्भुत साथ।।
वचनबद्ध दशरथ हुए, राम गए वनवास।
धरती काँपी रुदन से, बरस गया आकाश।।
राम लखन सीता धरा, वनवासी का वेश।
प्राणशून्य दशरथ हुए, अँखियाँ थिर अनिमेष।।
माताओं की आँख से अविरल झरता नीर।
कैसी थी दारुण घड़ी, कौन बँधाए धीर
पवन पुत्र के हिय बसे, विष्णु के अवतार।
पापी रावण का किया, लंका में संहार।।
जन- रक्षा ही धर्म है, दयावान श्री राम।
हितकारी हर कर्म है,जन सेवा निष्काम।।
अभिनन्दन की शुभ घड़ी, जन जन गाए गीत।
दिशा दिशा में गूँजता, मंगलमय संगीत।।
घर-घर मंदिर सा सजा, द्वारे वन्दनवार।
धरती से आकाश तक,लड़ियाँ, पुष्पित हार।।
वर्जिनिया, यूएसए
3 comments:
शशिजी के दोहे अप्रतिम
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर दोहे। हार्दिक बधाई सुदर्शन रत्नाकर
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