वर्ष 2004 में जर्नल ऑफ दी अमेरिकन कॉलेज ऑफ न्यूट्रिशन में एक अध्ययन में 1950 से 1999 के बीच प्रकाशित यूएस कृषि विभाग के डैटा के आधार पर बताया गया था कि 43 फसलों में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, राइबोफ्लेविन, विटामिन सी जैसे 13 पोषक तत्वों में परिवर्तन दिखे थे। कमी कितनी हुई यह हर पोषक तत्व और फल-सब्ज़ी के प्रकार पर निर्भर है। लेकिन सामान्यत: प्रोटीन में 6 प्रतिशत से लेकर राइबोफ्लेविन में 38 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई है। खासकर ब्रोकली, केल (एक तरह की गोभी) और सरसों के साग में कैल्शियम में सबसे अधिक कमी आई है। वहीं चार्ड, खीरे और शलजम में आयरन की मात्रा में काफी कमी हुई है। शतावरी, कोलार्ड (एक अन्य तरह की गोभी), सरसों का साग और शलजम के पत्तों में विटामिन सी काफी कम हो गया है। इसके बाद हुए अन्य अध्ययनों में भी इसी तरह के परिणाम देखने को मिले हैं।
अनाजों में भी इसी तरह की कमी देखने को मिली है। 2020 में साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया था कि 1955 से 2016 के बीच गेहूंँ में प्रोटीन की मात्रा 23 प्रतिशत कम हो गई है, साथ ही आयरन, मैंग्नीज़, जस्ता और मैग्नीशियम भी घटे हैं।
मांसाहारी भी कम पोषक तत्व वाले भोजन की समस्या से अछूते नहीं हैं। पशु अब कम पौष्टिक घास और अनाज खा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप मांस और अन्य पशु उत्पाद अब पहले की तुलना में कम पौष्टिक हो गए हैं।
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के भू-आकृति विज्ञानी डेविड आर. मॉन्टगोमेरी और जलवायु परिवर्तन एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञ क्रिस्टी एबी बताते हैं कि इस समस्या के लिए कई कारक ज़िम्मेदार हैं। इनमें एक है फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए अपनाई गईं आधुनिक कृषि पद्धतियां।
पौधों को शीघ्र और बड़ा उगाने के लिए अपनाए गए तरीके में पौधे मिट्टी से पर्याप्त पोषक तत्व नहीं सोख पाते या उन्हें संश्लेषित नहीं कर पाते हैं।
फिर अधिक उपज से यह भी होता है कि मिट्टी से अवशोषित पोषक तत्व अधिक फलों में बंट जाते हैं, नतीजतन फल-सब्ज़ियों में पोषक तत्व कम होते हैं।
उच्च पैदावर के कारण होने वाली मृदा की क्षति भी इस समस्या का एक कारण है। गेहूँ, मक्का, चावल, सोयाबीन, आलू, केला, रतालू और सन सभी फसलों की जड़ें कवक के साथ साझेदारी करती हैं जिससे पौधों द्वारा मिट्टी से पोषक तत्व और पानी लेने की क्षमता बढ़ती है। उच्च पैदावार वाली खेती से मिट्टी खराब हो जाती है जिससे कुछ हद तक कवक और पौधों की साझेदारी प्रभावित होती है।
कार्बन डाईऑक्साइड का बढ़ता स्तर भी हमारे खाद्य पदार्थों की पौष्टिकता कम कर रहा है। पौधे वायुमंडल से कार्बन डाईऑक्साइड लेते हैं, और वृद्धि के लिए इसके कार्बन का उपयोग करते हैं। लेकिन जब गेहूँ, चावल, जौं और आलू समेत बाकी फसलों को उच्च कार्बन डाईऑक्साइड मिलती है तो उनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाती है। इसके अलावा, जब पौधों में कार्बन डाईऑक्साइड अधिक मात्रा में होती है तो ये मिट्टी से कम पानी खींचते हैं, जिसका अर्थ है कि वे मिट्टी से सूक्ष्म पोषक तत्व भी कम ले रहे हैं।
2018 में साइंस एडवांसेज़ में प्रकाशित नतीजे बताते हैं कि उच्च कार्बन डाईऑक्साइड के कारण 18 किस्म की धान में प्रोटीन, आयरन, ज़िंक और कई बी विटामिन कम पाए गए थे।
यदि इन पोषक तत्वों में और कमी आई तो पोषक तत्वों की कमी से होने वाले रोगों का खतरा बढ़ सकता है या जीर्ण रोगों के प्रति जोखिमग्रस्त हो सकते हैं। और इसका असर उन लोगों पर, खासकर निम्न और मध्यम आय वाले लोगों पर, अधिक होगा जो ऊर्जा और पोषण के लिए मुख्यत: चावल- गेहूँ जैसे अनाजों पर निर्भर हैं और पोषण के अन्य स्रोतों का खर्च वहन नहीं कर सकते।यह तो सुनने में आता रहता है कि अब सब्ज़ियों या फलों में वो स्वाद नहीं रहा। देखा गया है कि कई सारे पोषक तत्व फल-सब्ज़ियों और अनाज के स्वाद में इजाफा करते हैं। इनकी कमी फल-सब्ज़ियों के स्वाद को भी प्रभावित करेंगे।
बुरी खबर यह है कि कई अनुमान मॉडलों का कहना है कि आगे भी आलू, चावल, गेहूंँ और जौं के प्रोटीन में 6 से 14 प्रतिशत की कमी आ सकती है। नतीजतन भारत समेत 18 देशों के आहार से 5 प्रतिशत प्रोटीन घट जाएगा।
तो इस समस्या से कैसे निपटा जाए? मिट्टी में सुधार के लिए एक तरीका है संपोषी खेती। पीअरजे: लाइफ एंड एनवायरनमेंट पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि संपोषी खेती से फसलों में कुछ विटामिन, खनिज और पादप-रसायनों का स्तर बढ़ता है, मिट्टी का जैविक स्वास्थ्य बेहतर होता है। इसके लिए पहला कदम यह है कि जितना संभव हो सके मिट्टी को खाली छोड़ दिया जाए और जुताई कम कर दी जाए। मिट्टी को ढंकने वाली तिपतिया घास, राई घास, या वेच लगाकर मिट्टी का कटाव और खरपतवार की वृद्धि रोकी जा सकती है। और खेत में बदल-बदल कर फसलें लगाने से पोषक तत्व में फायदा हो सकता है।लेकिन जब तक पैदावार में पोषण बहाल नहीं होता तब तक क्या करें?
पहले तो इस खबर से घबराकर लोग फल-सब्जियाँ खाना छोड़ या कम कर पोषण पूरकों का रुख न करें। बल्कि इससे वाकिफ रहें कि उनका भोजन कैसे उगाया जा रहा है। हम क्या खा रहे हैं यह पता होना जितना महत्त्वपूर्ण है उतना ही महत्त्वपूर्ण यह जानना भी है कि हम जो खा रहे हैं वह कैसे उगाया जा रहा है। और पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति के लिए अलग-अलग तरह और रंग की फल-सब्जियाँ आहार में शामिल करें। पृथ्वी पर मौजूदा सबसे स्वास्थ्यवर्धक खाद्य फल, सब्जियाँ और अनाज ही हैं। (स्रोत फीचर्स)
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