औरत
- हरकीरत हीर
कोई बादल
फटा
उड़ते
पक्षी की आह थी धरती पर
और आसमाँ
में गूँजती उसकी चीख
जि़न्दगी
से खेला गया मौत का खेल
भीड़ जुटी
थी ...
अचानक देह
से चादर हटी
पैरों में
पड़ी झाँझरे
मुजरा करने
लगीं
भीड़ मूक
थी .....
पत्थर
.....
मैं पत्थर
थी
अनछपे
सफहों की
इक नज़्म
उतरी
कानों में
सरगोशियाँ की
कुछ शब्दों
को मेरी हथेली पे रखा
और ले उड़ी
मुझे
आसमा की
ऊँचाइयों पर
जि़न्दगी
से मिलवाने
मैंने
शब्दों के सहारे
उड़ारियाँ
भरी
और टहनियों
पर टाँक दी
कई सारी
दर्द की नज्में
पत्थर से
दो बूँद आँसू गिरे
और मैं
जि़न्दा हो गई ...!
मुस्कराहट
.......
वह
मुस्कुराता है
एक खोखली सी
मुस्कराहट
मैं भी पहन
लेती हूँ
इक नकली सी
हँसी
बल्कि उससे
भी ज्यादा शिद्दत से
होंठो को
फैलाकर
जतलाती हूँ
अपनी खुशी
पर भीतर
कुछ तिड़कता है
बिलख उठता
है
शायद वह
प्रेम था
जो कभी
हमारे बीच
पनप के मौन
हो गया था ...!
दम तोड़ता
प्रेम ..
अक्सर ...
सवालों और
जवाबों के बीच का समां
मेरे लिए
बहुत कठिन होता
मैं खामोशी
की लिपि में लिखती
अपने जवाब
और वह
अग्नि की ताप पर
रख देता
अपने सवाल
मूक बना
प्रेम
धीरे-धीरे
दम तोड़ता रहता ...!
अर्ध ....
आखिर क्यों
गुम नहीं
जाती
चीख बनकर
मेरी नज़्म ..?
आसमां में
घुल नहीं जाते
दर्द के
सारे रंग ...?
मैं आसमां
को
आँसुओं का
अर्ध देती रही
और वह मेरी
झोली में
स्याह बादल
भरता रहा ...!
लेखक के
बारे मे- जन्म 31 अगस्त, शिक्षा एम.ए (हिन्दी), डी.सी.एच, संप्रति-
महिला उत्पीडऩ गैर सरकारी संस्था का संचालन (एन. जी. ओ.), सृजन- हिन्दी
तथा पंजाबी काव्य, आलेख, कहानियों
का लेखन व पंजाबी व असमिया से अनुवाद। विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय
पत्र-पत्रिकाओं हंस, वर्तमान साहित्य, नया ज्ञानोदय, पर्वत राग, सरस्वती
सुमन, साहित्य अमृत, समकालीन भारतीय
साहित्य, वागार्थ, द फर्स्ट न्यूज, अभिनव
प्रयास, हिन्दी चेतना, पुष्प गंधा, नव्या, गर्भनाल, साहित्य-सागर, आदि में निरन्तर प्रकाशन।
सम्पर्क- 18 ईस्ट लेन, सुन्दरपुर, हॉउस न- 5, गुवाहाटी-
781005, मो. 9864171300,
Email- harkirathaqeer@gmail.com
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