- दीपक मशाल
हॉस्टल से
निकलते हुए आज फिर उसकी अमर उम्मीद उसके साथ थी कि इस बार तो जरूर फ़ेलोशिप आ गई होगी। पिछले तीन महीने से
उसका अकाउंट लगभग खाली पड़ा था, जबकि अखबार में समाचार था कि एक महीने पहले
यूजीसी ने फ़ेलोशिप
सम्बन्धित विश्वविद्यालयों को भेज दी हैं। प्रयोगशाला जाने की बजाय वह पहले सीधे
बड़े बाबू के ऑफिस पहुँची- प्रणाम
बड़े बाबू, इस बार तो पैसा आ गया होगा ना?दिल्ली से तो कब का
रिलीज हो चुका है। -अरे कहाँ
आया मैडम जी, आया होता तो हम अकाउंट में पहुँचा न देते। अब आपको काहे जल्दी
पड़ी है, अच्छे खासे घर से हैं आपको काहे की कमी। - पर मुझे
बहुत लोगों का बकाया लौटाना हैं। आप यूजीसी के ऑफिस फोन करके पता क्यों नहीं करते
कि इतनी देर क्यों लग रही है?उसने हताश
होते हुए सवाल किया - करते तो
हैं; लेकिन कहाँ कोई फोन उठाता है जी, परसों हम
खुद ही जा रहे हैं दिल्ली, आप वहाँ के बाबू लोगों की मिठाई का कुछ
प्रबन्ध कर दें तो काम थोड़ा जल्दी हो जाएगा और क्या है। आपके पापा तो पीडब्ल्यूडी
में बड़े साहब हैं। सब समझती ही होंगी। बड़े बाबू ने बत्तीसी दिखाकर अपनी राय देते
हुए कह। लड़की अपना
आप खो बैठी- बड़े बाबू ये फ़ेलोशिप हमारी योग्यता की कमाई है, और हाँ
मेरे पापा पीडब्ल्यूडी में इंजीनियर जरूर हैं; लेकिन उन्होंने अपने मुँह कभी मिठाई का खून नहीं लगने
दिया, वरना हम अब तक किराए के घर मे ना रह रहे होते। अब आप काम
कराते हैं या मैं वी.सी. सर से मिलूँ? बड़े बाबू
कालरात्रि के दर्शन कर चुपचाप यूजीसी का नंबर लगाने में लग गए।
2. चूहे
चूहे आजकल
थोड़े निर्भीक हो चले थे। ऐसा तो न था कि आगे-पीछे के दस मोहल्ले की बिल्लियों ने
मांसाहार छोड़ दिया था, कारण बस इतना था कि चूहे-बिल्ली के इस खेल
में आजकल बाजी चूहों के हाथ थी। चूहे इतने चतुर और सक्रिय हो गए थे कि आसानी से
बिल्लियों के हाथ न आते। अब दूध- मलाई इतने महँगे हो गए थे कि इंसानों को ही नसीब
न थे, तो बिल्लियों को कहाँ से मिलते। नतीजा यह हुआ कि बिल्लियाँ
मरगिल्ली हो गईं। इन हालात से उबरने के लिए किसी विशेषज्ञ वास्तु-शास्त्री की राय
पर बिल्लियों ने विंड-चाइम बाँध लिए। वैसे बाँधना तो घर में था; लेकिन खुद की नज़र में कुछ ज़्यादा सयानी
बिल्लियों ने तुंरत फायदे की खातिर वो विंड-चाइम घंटियाँ अपने गले में ही बाँध
लीं। चूहे चकित थे कि जो प्लान उनके पुरखों ने सदियों पहले बनाया था, उसका
क्रियान्वयन बिना उनके तकलीफ उठाए अचानक कैसे हो गया! उन्होंने सोचा-जो हो सो हो
दुनिया में पहली बार चूहों के भागों छींका फूटा.. वो और भी निडर हो गए।
कुछ दिन तो
यूँ ही चला; लेकिन एक दिन चूहों के एक मुखिया को यह आज़ादी नागवार गुज़री।
उसे इस सबमें किसी भीषण षडय़ंत्र की बू आने लगी, चूहों का भविष्य
उसे खतरे में दिखा। उसने तुरन्त एक सभा बुलाई, ठीक वैसे ही जैसे
कई हज़ार साल पहले बिल्ली के गले में घंटी बाँधने के लिए बुलाई गई थी। गहन मंत्रणा
हुई और निर्णय निकाला गया- यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है, हम ऐसे
नहीं रह सकते। डर तो हमारा स्वाभाविक लक्षण है, वह कैसे छोड़ा
जाए.. अगर बिल्लियों से निडरता हमारे जीवन में आ गई तो गज़ब हो जाएगा।
किसी ने
सुझाव दिया कि उसी वास्तुशास्त्री की मदद ली जाए जिसके पास बिल्ली गई थी। सब उसी
रात वास्तुशास्त्री के पास पहुँचे.. अपनी शुल्क पहले झटकते हुए उसने निडरता दूर
करने का शर्तिया इलाज़ बता दिया। अब बिल्लियाँ फिर मोटी होने लगी थीं, उनके हाथ
अब पहले से भी आसानी से चूहे आने लगे थे। बिल्लियाँ अचम्भित थीं कि जिस भी चूहे को
मारतीं, उसके कानों में कॉर्क ठुँसे मिलते। उन्हें यह सब विंड-चाइम का
कमाल लगा। उधर चूहों की घट रही जनसंख्या ने फिर से उनके नैसर्गिक डर को लौटा दिया, आखिर वो
चूहे थे.. उन्हें चूहों की तरह ही रहना था।
- आज खा ले
मेरे राजा बेटा कल तेरे मन का बना दूँगी, अभी रात बहुत हो गई
ना। आजा तुझे अपने हाथ से छोटे-छोटे कौर करके खिलाती हूँ।
- नहीं नहीं
नहीं, मुझे अभी चाहिए, आलू के पराठे और बैंगन
का भर्ता कहकर उसने छन्न से तश्तरी, सब्जी भरी कटोरी और
पानी के गिलास को स्टूल से नीचे फेंक दिया।
- अरे मुन्ना
फेंक तो मत, जरा रुक जा अभी बनाए देती हूँ कहकर माँ आँख में आँसू लिये
फैली हुई सब्जी और रोटी समेटने लगी अभी माँ गई भी न थी कि उसे एक तेज दहाड़ सुनाई
दी।
- बाबू ये
क्या तरीका है?नहीं खाना तो ढंग से कहते नहीं बनता?
- अब खुद
समेटिएगा इसे सवेरे?बुढ़ापे में भी हर दिन पकवान चाहिए इनकी
चटोरी जीभ को।
डाँट सुनकर मुन्ना हड़बड़ाकर कोहनियों के सहारे
बिस्तर पर अधलेटा सा बैठ गया। फटी-फटी आँखों से बेटे और बहू को देखे जा रहा था, झपकी टूट
चुकी थी।
सम्पर्क:
श्री राम बिहारी चौरसिया
मालवीय नगर, बज़रिया, कोंच; जिला-जालौन उ.प्र.285205, मो.0033753742132, Email- mashal.com@gmail.com
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दिल के करीब महसूस होती लघुकथाएं
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