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Apr 16, 2014

वो लम्हें

 वो लम्हें
-श्याम सुंदर दीप्ति 
 









घर की बालकोनी में
हाथ में चाय का प्याला हो
पत्तों की सरसराहट हो
तैरते हुए बादलों में
तेरा झांकना देख ही लूँगा मै
पर ऐसी घड़ी फिर आये तो।
समंदर का किनारा हो
हाथ में बर्फ का गोला हो
लहरें छू रही  हों पैरों को
डूबते सूरज की लाली से
तेरी तस्वीर बना ही लूँगा मै
पर वह पल लौट के आये तो।
बैठ पहाड़ से गिरते झरने के पास
दूर बर्फ से ढके पर्वतों की
हवा में जरा सी ठिठुरन हो
' चमचमाती धूप में
तेरा साया पा ही लूँगा मै
काश ! वो लम्हें फिर मिल पायें तो..  

Email- drdeeptiss@gmail.com

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