- श्रीमती रीता प्रसाद
घटा झुकी-झुकी जा रही है,
नभ भी नीचे आ रहा है,
बादलों के इस सफ़र में
स्वच्छ बूँदें आ रही हैं।
धरती की हरियाली पर यह,
कैसा करतब दिखा रही हैं ?
फसलें झूमती जा रही हैं ,
जैसे नीरव इस धरा पर
देव कोई आ रहे हैं .
बच्चों की खुशियों को देखो ,
कैसे उछले जा रहे हैं ?
पोखरों में नहा रहे हैं ,
जैसे बादलों के सफ़र को,
दिल से ये अपना रहे हैं ।
मन- मयूर अब नाचता है,
मन- मयूरी झूमती है,
गुन-गुन,गुन-गुन , भौरों की गुन,
सुमनों पर मँडरा रहा है,
सात रंगों का सफ़र है,
सतरंगी ही डगर है,
सात रंगों के किरण पर,
पगला मन उतरा रहा है।
छम-छम, छम-छम, घुँघरू की छम,
दूर वीराने में देखो,
क्या मधुरता छा रही है ?
कोई अल्हड़ नाचती है,
वह सलोनी गा रही है.
क्या यह नन्ही- सी कली है
या धरा पर एक परी है,
मगन होकर नाचती है,
मगन होकर गा रही है,
मन को यह भरमा रही है ।
विकल मन यह चाहता है,
तोड़ सारे बंधनों को,
बादलों में जाएँ खो,
काश! एक ऐसा दिन हो ।
No comments:
Post a Comment