सुषमा स्वराज का यूएन की 72वीं आम सभा
में दिया गया भाषण
हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं
भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा
स्वराज आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कुछ ऐसी बातें हर किसी के मन मस्तिष्क पर छाई हुई हैं, जिनकी बदौलत वो हमेशा याद रहेंगी।
इनमें से ही एक है 23 सितंबर 2017 का वो भाषण जो उन्होंने बतौर विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र की 72वीं आम सभा में दिया था। आज वक़्त
है कि इस भाषण को दोबारा पढ़ा जाए। इस भाषण में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में
सुधार की जोरदार पैरवी करते हुए पाकिस्तान को भी लताड़ा था।आइए जानें उस दिन उन्होंने क्या
कुछ कहा:-
सभापति जी,
सबसे पहले तो संयुक्त राष्ट्र महासभा के 72वें सत्र के सभापति चुने जाने के लिए मैं आपको हृदय से बधाई देती हूँ । हमारे लिए यह गर्व और प्रसन्नता का विषय है कि हम विदेश मंत्रियों में से ही एक विदेश मंत्री आज इस उच्च पद पर आसीन है। सभापति जी,अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति को ‘लोक केन्द्रित’ बनाने के आपके प्रयासों की भारत सराहना करता है। इस सत्र के लिए आपने जो विषय चुना है- "Focusing on people : striving for peace and a decent life on a sustainable planet", उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूँ।
सबसे पहले तो संयुक्त राष्ट्र महासभा के 72वें सत्र के सभापति चुने जाने के लिए मैं आपको हृदय से बधाई देती हूँ । हमारे लिए यह गर्व और प्रसन्नता का विषय है कि हम विदेश मंत्रियों में से ही एक विदेश मंत्री आज इस उच्च पद पर आसीन है। सभापति जी,अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति को ‘लोक केन्द्रित’ बनाने के आपके प्रयासों की भारत सराहना करता है। इस सत्र के लिए आपने जो विषय चुना है- "Focusing on people : striving for peace and a decent life on a sustainable planet", उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूँ।
सभापति जी,
संयुक्त राष्ट्र का तो गठन ही इस पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के कल्याण के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए, उनके सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए और उनके अधिकारों के बचाव के लिए हुआ है; इसलिए इन सभी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आपको मेरे देश का पूरा-पूरा समर्थन मिलेगा।
संयुक्त राष्ट्र का तो गठन ही इस पृथ्वी पर रहने वाले लोगों के कल्याण के लिए, उनकी सुरक्षा के लिए, उनके सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए और उनके अधिकारों के बचाव के लिए हुआ है; इसलिए इन सभी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आपको मेरे देश का पूरा-पूरा समर्थन मिलेगा।
सभापति जी,
मैंने पिछले वर्ष भी इस सभा को संबोधित किया था। इस एक वर्ष के अन्तराल में संयुक्त राष्ट्र में और दुनियाभर में भी अनेक तरह के परिवर्तन हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र में एक नए महासचिव चुने गए हैं। वह संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए और एक सशक्त संस्था बनाने के लिए जो प्रयास कर रहे हैं, उन प्रयासों का भी हम स्वागत करते हैं और उन्हें परिवर्तन के एक पुरोधा के रूप में देखते हैं।
मैंने पिछले वर्ष भी इस सभा को संबोधित किया था। इस एक वर्ष के अन्तराल में संयुक्त राष्ट्र में और दुनियाभर में भी अनेक तरह के परिवर्तन हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र में एक नए महासचिव चुने गए हैं। वह संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए और एक सशक्त संस्था बनाने के लिए जो प्रयास कर रहे हैं, उन प्रयासों का भी हम स्वागत करते हैं और उन्हें परिवर्तन के एक पुरोधा के रूप में देखते हैं।
सभापति जी,
आज का विश्व अनेक संकटों से ग्रस्त है। हिंसा की घटनायें निरन्तर बढ़ रही हैं। आतंकवादी विचारधारा आग की तरह फैल रही है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती हमारे सामने मुंह बाये खड़ी है। समुद्री सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। विभिन्न कारणों से अपने देशों से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन वैश्विक चिन्ता का विषय बन गया है।विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी और भुखमरी से जूझ रहा है। बेरोजगारी से त्रस्त युवा अधीर हो रहा है। पक्षपात से पीड़ित महिलायें समान अधिकारों की माँग कर रही हैं। परमाणु-प्रसार का विषय पुनः सिर उठा रहा है। साइबर सुरक्षा पर खतरा मँडरा रहा है। इन संकटों में से बहुत से संकटों का समाधान करने के लिए हमने वर्ष 2015 में वर्ष 2030 तक का एजेंडा तय किया है। उसके 2 वर्ष बीत गए, 13 वर्ष बाकी हैं। यदि इन 13 वर्षों में वास्तव में हमें इन लक्ष्यों की प्राप्ति करनी है, तो यथास्थिति से बाहर निकलना होगा। यथास्थिति बनाए रखकर इन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। हमें अपनी निर्णय प्रक्रिया में तेजी लानी होगी और कठोर फैसले लेने का साहस जुटाना होगा।
आज का विश्व अनेक संकटों से ग्रस्त है। हिंसा की घटनायें निरन्तर बढ़ रही हैं। आतंकवादी विचारधारा आग की तरह फैल रही है। जलवायु परिवर्तन की चुनौती हमारे सामने मुंह बाये खड़ी है। समुद्री सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। विभिन्न कारणों से अपने देशों से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन वैश्विक चिन्ता का विषय बन गया है।विश्व की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी और भुखमरी से जूझ रहा है। बेरोजगारी से त्रस्त युवा अधीर हो रहा है। पक्षपात से पीड़ित महिलायें समान अधिकारों की माँग कर रही हैं। परमाणु-प्रसार का विषय पुनः सिर उठा रहा है। साइबर सुरक्षा पर खतरा मँडरा रहा है। इन संकटों में से बहुत से संकटों का समाधान करने के लिए हमने वर्ष 2015 में वर्ष 2030 तक का एजेंडा तय किया है। उसके 2 वर्ष बीत गए, 13 वर्ष बाकी हैं। यदि इन 13 वर्षों में वास्तव में हमें इन लक्ष्यों की प्राप्ति करनी है, तो यथास्थिति से बाहर निकलना होगा। यथास्थिति बनाए रखकर इन लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। हमें अपनी निर्णय प्रक्रिया में तेजी लानी होगी और कठोर फैसले लेने का साहस जुटाना होगा।
मुझे प्रसन्नता है कि भारत ने इस
सन्दर्भ में बहुत अभिनव पहल की है। बड़े-बड़े साहसिक निर्णय लिये हैं और टिकाऊ
विकास के लक्ष्य को केन्द्र में रखते हुए अनेक योजनाएँ बनाई हैं। गरीबी को दूर
करना टिकाऊ विकास का पहला और प्रमुख लक्ष्य है।सभापति जी, गरीबी को दूर करने के दो रास्ते
होते हैं। एक रास्ता है, आप उनका सहारा बनें और उनका हाथ पकड़कर उन्हें चलायें। दूसरा
रास्ता है, आप उन्हें ही इतना सशक्त कर दें कि उन्हें किसी के सहारे की
आवश्यकता ही ना पड़े और वो अपना सहारा आप बन जायें। हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी ने
गरीबी निवारण के लिए दूसरा रास्ता चुना है और इसीलिए वह गरीबों का सशक्तिकरण करने
में जुटे हैं। हमारी सारी योजनाएँ गरीब को शक्तिशाली बनाने के लिए चलाई जा रही
हैं। जैसे जन-धन योजना, मुद्रा योजना, उज्ज्वला योजना, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, क्लीन इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया। योजनाएँ तो अनेक हैं किंतु समय की कमी के कारण
मैं केवल तीन योजनाओं का ही उदाहरण यहाँ देना चाहूँगी।
भारत के कदमों की दी जानकारी
सबसे पहली योजना है जन-धन योजना, जिसके अन्तर्गत हमने विश्व का सबसे
बड़ा आर्थिक समावेश (Financial Inclusion) किया है। जिन गरीबों ने कभी बैंक का द्वार नहीं देखा था, ऐसे 30 करोड़ लोगों को हमने बैंक के अन्दर
पहुँचाया है और उनका खाता खुलवाया है। जिनके पास पैसे नहीं थे उनका बैंक अकाउंट
हमने ज़ीरो बैलेन्स से खुलवाया है। दुनिया में किसी ने यह नहीं सुना होगा की अकाउंट
में पैसा नहीं होते हुए भी लोगों के पास पासबुक है। यह असंभव काम भी भारत में संभव
हुआ है। 30 करोड़ की संख्या का अर्थ है अमेरिका जैसे देश की पूरी आबादी। 3 वर्षों में 30 करोड़ लोगों को बैंकों से जोड़ना
कोई आसान काम नहीं था ; किन्तु मिशन मोड में इसे किया गया। कुछ लोग अभी बचे हैं; किन्तु कार्य जारी है, क्योंकि हमारा लक्ष्य 100% जनसंख्या का आर्थिक समावेश करना
है।
दूसरी योजना है मुद्रा योजना जो
केवल Funding for the unfunded के लिए बनाई गई है। यानi जिसे कभी बैंक से कोई ऋण नहीं मिला, उसे मुद्रा योजना के अन्तर्गत ऋण देने की व्यवस्था की गई है और
मुझे यह बताते हुए खुशी है कि इस योजना के अन्तर्गत 70 प्रतिशत से अधिक ऋण केवल महिलाओं
को दिया गया है।बेरोजगारी गरीबी को जन्म देती है। इसीलिए स्किल इंडिया योजना के
अन्तर्गत गरीब और मध्यम वर्ग के युवाओं के लिए, उनकी रूचि और योग्यता के अनुसार कौशल देने के बाद मुद्रा योजना, स्टार्ट अप इंडिया योजना और स्टैंड
अप इंडिया योजना के अन्तर्गत ऋण देकर स्वरोजगार के काबिल बनाया जा रहा है। तीसरी योजना है उज्ज्वला योजना।
सभापतिजी, गरीब महिलाओं को हर रोज रसोई का ईंधन जुटाने के लिए बहुत मेहनत
करनी पड़ती है और उनकी आँखें धुएँ से अंधी हो जाती हैं। इन दोनों कष्टों का निवारण करने
के लिए उन्हें मुफ़्त गैस सिलेंडर दिया जा रहा है। महिला सशक्तीकरण की दिशा में
उठाया गया यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
नोटबंदी जैसे साहसिक फैसले ने
भ्रष्टाचार पर करारा प्रहार किया है। GST जैसे महत्वपूर्ण निर्णय ने एक राष्ट्र, एक कर की कल्पना को साकार करके व्यापार
में बार-बार टैक्स देने की असुविधा को समाप्त किया है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के अन्तर्गत लैंगिक
समानता जैसे विषयों पर जोर देकर और स्वच्छ भारत अभियान चलाकर भारत एक सामाजिक
क्रांति की ओर बढ़ रहा है। मैं यहाँ यह अवश्य कहना चाहूँगी कि समर्थ देश तो अपने बल-बूते पर
इन लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे लेकिन छोटे और अविकसित देशों की मदद हम सबको करनी
होगी। इसीलिए इन SDGs में Global Partnership का सिद्धांत रखा गया था। उस सिद्धांत के अनुरूप हम सभी उनकी मदद
करें ताकि छोटे देश भी 2030 तक इन लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें। मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता
है कि भारत ने इस वर्ष India-UNDevelopment
Partnership Fund की शुरुआत की है।
पाकिस्तान पर कड़ा प्रहार
सभापति जी,
हम तो गरीबी से लड़ रहे हैं किन्तु हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान हमसे लड़ रहा है। परसों इसी मंच से बोलते हुए पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म शाहिद खाकान अब्बासी ने भारत पर तरह-तरह के इल्ज़ाम लगाए। हमें state sponsored terrorism फैलाने का गुनहगार भी बताया और मानवाधिकार उल्लंघन का आरोपी भी। जिस समय वो बोल रहे थे तो सुनने वाले कह रहे थे–Look, who is talking. जो मुल्क हैवानियत की हदें पार करके दहशतगर्दी के जरिये सैकड़ों बेगुनाहों को मौत के घाट उतरवाता है, वो यहाँ खड़े होकर हमें इंसानियत का सबक सिखा रहा था और मानवाधिकार का पाठ पढ़ा रहा था?
हम तो गरीबी से लड़ रहे हैं किन्तु हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान हमसे लड़ रहा है। परसों इसी मंच से बोलते हुए पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म शाहिद खाकान अब्बासी ने भारत पर तरह-तरह के इल्ज़ाम लगाए। हमें state sponsored terrorism फैलाने का गुनहगार भी बताया और मानवाधिकार उल्लंघन का आरोपी भी। जिस समय वो बोल रहे थे तो सुनने वाले कह रहे थे–Look, who is talking. जो मुल्क हैवानियत की हदें पार करके दहशतगर्दी के जरिये सैकड़ों बेगुनाहों को मौत के घाट उतरवाता है, वो यहाँ खड़े होकर हमें इंसानियत का सबक सिखा रहा था और मानवाधिकार का पाठ पढ़ा रहा था?
पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म ने कहा
कि मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान को शांति और दोस्ती की विदेश नीति विरासत में
दी थी। मैं उन्हें याद दिलाना चाहूँगी कि जिन्ना साहब ने शांति और दोस्ती की नीति
दी थी या नहीं यह तो इतिहास बखूबी जानता है, लेकिन हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने तो शांति
और दोस्ती की नीयत जरूर दिखाई थी। हर तरह की रुकावटों को पार करते हुए
प्रधानमंत्री मोदी ने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया ; किन्तु कहानी बदरंग किसने की? इसका जवाब आपको देना है, हमें नहीं!
वो यहाँ खड़े होकर संयुक्त राष्ट्र
के पुराने प्रस्तावों की बात भी कर रहे थे। पर क्या उन्हें याद नहीं कि शिमला
समझौते और Lahore Declaration के अन्तर्गत हम दोनों देश अपने मसलों को आपस में बैठकर ही तय करने
का निर्णय कर चुके हैं। सच्चाई तो यह है कि पाकिस्तान के सियासतदानों को याद तो सब कुछ है ; लेकिन अपनी सुविधा के लिए वो जब चाहें तब उसे भूल जाने का नाटक
करते हैं।
पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म ने Comprehensive Dialogue की भी
बात की। मैं उन्हें याद दिला दूँ कि 9 दिसम्बर, 2015 को Heart of Asia के सम्मेलन के लिए जब मैं इस्लामाबाद गई थी ,तो उनके नेता, उस समय के वज़ीर-ए-आज़म नवाज़
शरीफ़ की सरपरस्ती में नए सिरे से dialogue
शुरू करने का फैसला हुआ था और उसे नया नाम भी दिया गया
था -comprehensive bilateral dialogue.
Bilateral शब्द सोच समझकर डाला गया था कि कोई
संदेह, कोई शक-शुबहा ही ना रहे कि बातचीत केवल दोनों देशों के बीच में
होनी है, किसी तीसरे की मदद लेकर नहीं। लेकिन वो सिलसिला आगे क्यों नहीं
बढ़ा, इसके लिए जवाबदेह आप हैं, हम नहीं।
पाकिस्तान से पूछे सवाल
सभापति जी,
आज इस मंच से मैं पाकिस्तान के सियासतदानों से एक सवाल पूछना चाहती हूँ कि क्या कभी अपने अंदर झाँककर यह सोचा है कि भारत और पाकिस्तान साथ-साथ आजाद हुए थे। दुनिया में आज भारत की पहचान IT के superpower के रूप में है और पाकिस्तान की पहचान एक दहशतगर्द मुल्क के रूप में है, एक आतंकवादी देश के रूप में है। इसकी वजह क्या है?
आज इस मंच से मैं पाकिस्तान के सियासतदानों से एक सवाल पूछना चाहती हूँ कि क्या कभी अपने अंदर झाँककर यह सोचा है कि भारत और पाकिस्तान साथ-साथ आजाद हुए थे। दुनिया में आज भारत की पहचान IT के superpower के रूप में है और पाकिस्तान की पहचान एक दहशतगर्द मुल्क के रूप में है, एक आतंकवादी देश के रूप में है। इसकी वजह क्या है?
वजह केवल एक है कि भारत ने
पाकिस्तान द्वारा दी गई आतंकवादी चुनौतियों का मुकाबला करते हुए भी अपने घरेलू
विकास को कभी थमने नहीं दिया। 70 वर्ष के दौरान भारत में बहुत सारे राजनैतिक दलों की सरकारें बनीं
लेकिन सभी ने विकास की गति को जारी रखा। हमने विश्व प्रसिद्ध Indian Institutes of Technology बनाए, Indian Institutes of
Management बनाए और All India Institute of Medical Science जैसे बड़े अस्पताल बनाए। लेकिन आपने क्या बनाया? आपने आतंकवादी ठिकाने बनाए, terrorist camps बनाए।
हमने scholars पैदा किए, engineers पैदा किए, doctors पैदा किए। आपने क्या पैदा किया? आपने दहशतगर्द पैदा किए, जेहादी पैदा किए। आपने लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हिजबुल मुजाहिदीन और हक्कानी
नेटवर्क पैदा किए। आप जानते हैं ना कि doctors
मरते हुए लोगों को बचाते हैं और आतंकवादी, जिन्दा लोगों को मारते हैं।
आपके ये आतंकवादी संगठन केवल भारत
के लोगों को ही नहीं मार रहे ;बल्कि दो और पड़ोसी देश अफगानिस्तान और बांग्लादेश के लोग भी उनकी
गिरफ्त में हैं। सभापति जी, UNGA इतिहास में यह पहली बार हुआ कि किसी देश को Right to reply माँग
कर एक साथ तीन-तीन देशों को जवाब देना पड़ा हो। क्या यह तथ्य पाकिस्तान की करतूतों
को नहीं दर्शाता? जो पैसा आप आतंकवादियों की मदद के लिए खर्च कर रहे हैं वही पैसा
यदि आप अपने मुल्क के विकास के लिए खर्च करें, अपने अवाम की भलाई के लिए खर्च करें,तो एक तो दुनिया को राहत मिल जाएगी
और दूसरा आपके अपने देश के लोगों का कल्याण भी हो पाएगा।
सयुंक्त राष्ट्र तलाश रहा समाधान
सभापति जी,
संयुक्त राष्ट्र आज जिन समस्याओं का समाधान ढूँढ रहा है, उसमें से सबसे प्रमुख हैं- आतंकवाद। भारत आतंकवाद का सबसे पुराना शिकार है। जिस समय हम आतंकवाद शब्द का प्रयोग करते थे,तो विश्व के बड़े-बड़े देश इसे कानून और व्यवस्था का विषय बताकर खारिज कर देते थे; किन्तु आज जब आतंकवाद ने चारों ओर अपने पैर पसार लिए ,तो सभी देश इसकी चिन्ता कर रहे हैं।मुझे लगता है कि इस विषय पर हमें अन्तर्मुखी होकर सोचने की जरूरत है यानी introspection की जरूरत है। हम सभी देश द्विपक्षीय वार्ताओं में, बहुपक्षीय वार्ताओं में जो भी संयुक्त वक्तव्य जारी करते हैं, सभी में आतंकवाद की भर्त्सना करते हैं और उससे लड़ने की एकजुटता का संकल्प भी लेते हैं; किन्तु सच्चाई यह है कि यह एक रस्म बन गई है, जिसे हम निभा तो देते हैं, किन्तु जब वास्तव में उस संकल्प को पूरा करने का समय आता है तो कुछ देश अपने-अपने हितों को सामने रखकर निर्णय करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र आज जिन समस्याओं का समाधान ढूँढ रहा है, उसमें से सबसे प्रमुख हैं- आतंकवाद। भारत आतंकवाद का सबसे पुराना शिकार है। जिस समय हम आतंकवाद शब्द का प्रयोग करते थे,तो विश्व के बड़े-बड़े देश इसे कानून और व्यवस्था का विषय बताकर खारिज कर देते थे; किन्तु आज जब आतंकवाद ने चारों ओर अपने पैर पसार लिए ,तो सभी देश इसकी चिन्ता कर रहे हैं।मुझे लगता है कि इस विषय पर हमें अन्तर्मुखी होकर सोचने की जरूरत है यानी introspection की जरूरत है। हम सभी देश द्विपक्षीय वार्ताओं में, बहुपक्षीय वार्ताओं में जो भी संयुक्त वक्तव्य जारी करते हैं, सभी में आतंकवाद की भर्त्सना करते हैं और उससे लड़ने की एकजुटता का संकल्प भी लेते हैं; किन्तु सच्चाई यह है कि यह एक रस्म बन गई है, जिसे हम निभा तो देते हैं, किन्तु जब वास्तव में उस संकल्प को पूरा करने का समय आता है तो कुछ देश अपने-अपने हितों को सामने रखकर निर्णय करते हैं।
यह सिलसिला अनेक वर्षों से चल रहा
है और यही कारण है कि 1996 में भारत द्वारा प्रस्तावित CCIT पर अभी तक संयुक्त राष्ट्र निर्णय नहीं ले सका। CCIT की सभी धाराओं पर सहमति बन गई है
सिवाय एक धारा के और वह है आतंकवाद की परिभाषा। परिभाषा ही तो जड़ है, उसी में से तो अच्छे और बुरे
आतंकवादी का अन्तर उभर कर आता है। यदि परिभाषा पर ही सहमति नहीं बनेगी ,तो हम एकजुट होकर कैसे लड़ेंगे।
यदि मेरे और तेरे आतंकवादी को हम अलग दृष्टि से देखेंगे तो एकजुट होकर कैसे
लड़ेंगे। यदि सुरक्षा परिषद् जैसी प्रमुख संस्था में आतंकवादियों की listing पर मतभेद उभरकर आएँगे तो हम एकजुट
होकर कैसे लड़ेंगे।
सभापति जी,
इसलिए आपके माध्यम से मेरा इस सभा से विनम्र अनुरोध है कि हम अलग-अलग नज़रिये से आतंकवाद को देखना बन्द करें। समदृष्टि बनायें और स्वीकार करें कि आतंकवाद, समूची मानवता के लिए खतरा है। कोई भी कारण कितना भी बड़ा क्यों ना हो, हिंसा का औचित्य नहीं बन सकता। इसलिए एकजुटता से लड़ने का संकल्प लें, तो उसे मानें भी और मानेंतो उसे अमली जामा भी पहनायें और इस वर्ष CCIT की परिभाषा पर सहमति बना कर उसे पारित कर दें।
इसलिए आपके माध्यम से मेरा इस सभा से विनम्र अनुरोध है कि हम अलग-अलग नज़रिये से आतंकवाद को देखना बन्द करें। समदृष्टि बनायें और स्वीकार करें कि आतंकवाद, समूची मानवता के लिए खतरा है। कोई भी कारण कितना भी बड़ा क्यों ना हो, हिंसा का औचित्य नहीं बन सकता। इसलिए एकजुटता से लड़ने का संकल्प लें, तो उसे मानें भी और मानेंतो उसे अमली जामा भी पहनायें और इस वर्ष CCIT की परिभाषा पर सहमति बना कर उसे पारित कर दें।
जलवायु परिवर्तन
सभापति जी,
एक संकट मैंने जलवायु परिवर्तन के बारे में बताया था। जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पैरिस समझौते की सफलता के लिए प्रतिबद्ध है। और यह प्रतिबद्धता किसी लोभ या भय के कारण नहीं है। यह प्रतिबद्धता हमारी 5000 वर्ष पुरानी संस्कृति के कारण है। इस विषय में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी ओर से एक अभिनव पहल करकेInternational Solar Alliance का गठन किया है।
एक संकट मैंने जलवायु परिवर्तन के बारे में बताया था। जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पैरिस समझौते की सफलता के लिए प्रतिबद्ध है। और यह प्रतिबद्धता किसी लोभ या भय के कारण नहीं है। यह प्रतिबद्धता हमारी 5000 वर्ष पुरानी संस्कृति के कारण है। इस विषय में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी ओर से एक अभिनव पहल करकेInternational Solar Alliance का गठन किया है।
हम समूचे विश्व की शांति की कामना
करते हैं और केवल प्राणियों की शांति की ही कामना नहीं करते। हम पृथ्वी की शांति
की भी कामना करते हैं, हम अन्तरिक्ष की शांति की भी कामना करते हैं, हम वनस्पति की शांति की भी कामना
करते हैं और हम प्रकृति की शांति की कामना भी करते हैं; क्योंकि प्रकृति को जब नष्ट किया
जाता है,तो प्रकृति अशांत होकर विरोध जताती है और यदि विनाश को न रोका जाए
तो रौद्र रूप धारण करके सर्वनाश कर देती है। कभी भूकम्प, कभी झंझावात, कभी भयंकर वर्षा, कभी बाढ़ और तूफान, सभी माध्यमों के जरिये ये प्रमाण
सामने आते रहते हैं।
हाल ही में आ रहे Hurricanes, मात्र
एक संयोग नहीं हैं। जिस समय संयुक्त राष्ट्र का ये सम्मेलन चल रहा है और विश्व का
समूचा नेतृत्व यहाँ न्यूयॉर्क में इकट्ठा है, उस समय प्रकृति द्वारा दी गई ये चेतावनी है। सम्मेलन शुरू होने से
चंद दिन पहले ही Harvey और Irma जैसे hurricane आने शुरू हो गए। सम्मेलन के चलते भी मैक्सिको में भूकम्प आया और
डोमिनिका में hurricane आया। इस चेतावनी को हम समझें और बैठकों में केवल चर्चा करके न उठ
जाएँ; बल्कि संकल्पशीलता से आगे बढ़ें और विकसित देश अविकसित देशों की
मदद के लिए Technology Transfer और Green Climate Financing की अपनी प्रतिबद्धता पूरी करें, ताकि हम अपनी भावी पीढ़ियों को सर्वनाश से बचा सकें।
सभापति जी,
हम विश्व की अनेक समस्याओं पर चर्चा कर रहे हैं लेकिन जो संस्था इन समस्याओं के समाधान के लिए बनी हैं, वो स्वयं भी समस्याग्रस्त है। अभी कुछ दिन पहले 18 तारीख़ को संयुक्त राष्ट्र में सुधारों के विषय में यहाँ एक बैठक बुलायी गयी थी जिसमे मैं भी उपस्थित थी।उस बैठक में मंच से किये गये भाषणों में सुधारों के ना होने के कारण एक वेदना झलक रही थी और सुधार करने के लिये संकल्पशीलता भी दिख रही थी;किंतु मैं याद कराना चाहूँगी कि वर्ष 2005 के विश्व सम्मेलन के दौरान यह सहमति बनी थी कि जब संयुक्त राष्ट्र में सुधारकी प्रक्रिया प्रारम्भ की जाएगी तो सुरक्षा परिषद् के सुधार और विस्तार को प्रमुख तत्व के रूप में शुरू किया जाएगा।
हम विश्व की अनेक समस्याओं पर चर्चा कर रहे हैं लेकिन जो संस्था इन समस्याओं के समाधान के लिए बनी हैं, वो स्वयं भी समस्याग्रस्त है। अभी कुछ दिन पहले 18 तारीख़ को संयुक्त राष्ट्र में सुधारों के विषय में यहाँ एक बैठक बुलायी गयी थी जिसमे मैं भी उपस्थित थी।उस बैठक में मंच से किये गये भाषणों में सुधारों के ना होने के कारण एक वेदना झलक रही थी और सुधार करने के लिये संकल्पशीलता भी दिख रही थी;किंतु मैं याद कराना चाहूँगी कि वर्ष 2005 के विश्व सम्मेलन के दौरान यह सहमति बनी थी कि जब संयुक्त राष्ट्र में सुधारकी प्रक्रिया प्रारम्भ की जाएगी तो सुरक्षा परिषद् के सुधार और विस्तार को प्रमुख तत्व के रूप में शुरू किया जाएगा।
सुरक्षा परिषद् के सुधारों के
संबंध में पिछले सत्र में Text based negotiation के प्रयास शुरू किए गए थे और 160 से अधिक सदस्यों ने उसके लिये समर्थन भी व्यक्त किया था। यदि हम इस
विषय पर गम्भीर रूप से चर्चा करना चाहते हैं तो Text
based negotiationका एक Text तो अवश्य होना ही चाहिए। सभापति जी, आपको इस सत्र में Text based negotiationप्रारंभ
करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करनी होगी। मैं आशा करती हूँ कि आपके
सभापतित्व में यह विषय एक प्राथमिकता बनेगा ताकि बाद में हम इसे आपकी एक उपलब्धि
के रूप में बदल सकें।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव से भी
हम सबको बहुत उम्मीदें हैं। यदि वे अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के ढांचे में
सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें UN
Peacekeeping से संबंधित मुद्दों का भी समाधान
करना होगा। UN Peacekeeping में सुधार के बिना यह कार्य संभव नहीं हो सकेगा।
सभापति जी,
विषय तो अनेक हैं, जिन पर इस मंच से बोला जाना चाहिए। मैंने वह विषय प्रारंभ में ही गिना भी दिए थे ; लेकिन समय की कमी के कारण उन पर विस्तार से बोला जाना संभव नहीं है। वैसे भी जो विषय आपने इस सभा के लिए चुना है, वो लोगों के द्वारा सभ्य जीवन जीने और शांति-पूर्वक जीवन जीने पर ही केंद्रित है। यह विषय संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के भी अनुरूप है और मेरे देश की संस्कृति के भी अनुरूप है।
विषय तो अनेक हैं, जिन पर इस मंच से बोला जाना चाहिए। मैंने वह विषय प्रारंभ में ही गिना भी दिए थे ; लेकिन समय की कमी के कारण उन पर विस्तार से बोला जाना संभव नहीं है। वैसे भी जो विषय आपने इस सभा के लिए चुना है, वो लोगों के द्वारा सभ्य जीवन जीने और शांति-पूर्वक जीवन जीने पर ही केंद्रित है। यह विषय संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के भी अनुरूप है और मेरे देश की संस्कृति के भी अनुरूप है।
सभापति जी,
मेरे देश की संस्कृति पूरी वसुधा
के लोगों के सुखों की कामना करने वाली संस्कृति है। हम वसुधैव कुटुम्बकम् कहकर
पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं और केवल अपनी नहीं सभी के सुख की कामना करते
हैं। उसी कामना के मंत्र के साथ मैं अपनी बात को समाप्त करना चाहूँगी। हम कहते
हैं-
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद्दु:खभाग्भवेत्।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद्दु:खभाग्भवेत्।
धन्यवाद।
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