देश धर्म से भी ऊपर एक उदात्त और उदार भाव है, जिसमें अनेक धर्म समाहित हैं। यह उस विरासत का प्रतीक है, जिसे हमारे पुरखों ने सहेजा, सँवारा और हमें समर्पित किया,एक आनंददायी वातावरण में सुख प्राप्त करने के लिए। न तो गाँव, शहर या संसद, सड़क या आयोगों का नाम है तथा न ही मकान, क्लब, बंदूक या फिर फौज। इसकी परिकल्पना से हाल ही में मेरा साक्षात्कार हुआ सुधा मूर्त्ति के संस्मरण से ,जब वे मास्को प्रवास पर थीं तथा रविवार की एक सर्द सुबह पार्क में रिमझिम फुहारों के बीच एक छाते के साथ बैठीं थीं।
अचानक पार्क में एक नवविवाहित जोड़ा प्रकट हुआ। सुंदर दुल्हन मोती तथा रेशमी डोरी से सुसज्जित श्वेत परिधान में। आकर्षक नौजवान भी सैनिक वर्दी में एक छाते के साथ ,ताकि न तो वधू भीग सके और न उसका परिधान । दुल्हन अपने हाथों में एक भव्य गुलदस्ता लिये हुए थी। दोनों एक प्लेटफार्म के समीप पहुँचे। कुछ पल शांत भाव से खड़े रहे और फिर बुके स्मारक पर चढ़ाकर लौट गए।
मेजबान को एकटक आश्चर्यसहित निहारते देख, एक बुजुर्ग सज्जन जो पास ही टहल रहे थे, आगे आए । उन्होंने पूछा –क्या आप भारतीय हैं। और इस तरह बातचीत का क्रम आरंभ हुआ।
मेहमान ने पूछा-
आपको अंग्रेजी कैसे आती है।
उत्तर मिला –मैंने कुछ समय विदेशों में बिताया है।
अब अगला प्रश्न था –तो फिर मुझे बताइए कि अपनी शादीवाले दिन यह जोड़ा इस युद्ध स्मारक पर क्यों आया।
इस पर जवाब था –हमारे यहाँ यह प्रथा है कि हर नौजवान कुछ समय सेना में रहकर देश की सेवा करता है। मौसम की परवाह किए बिना हर नवविवाहित जोड़ा सर्व प्रथम युद्ध स्मारक पहुँचता है अपनी कृतज्ञता उन सैनिकों के प्रति व्यक्त करनेकेलिए , जिनकी बदौलत देश आज़ाद हुआ। उसे यह भली-भाँति ज्ञात है कि उसकी पुरानी पीढ़ी को देश के लिए कई युद्ध लड़ना पड़े,जिनमें से कुछ में वे विजयी रहे, तो कुछ में पराजित। आज का रूस उनके बलिदान की अमिट कहानी है;अत: उनकी याद तथा आशीर्वाद नई पीढ़ी का पावन कर्तव्य है, जिसे वे पूरी ईमानदारी से निभाते हैं।
है न अचरज की बात। अब इसकी तुलना हमारे यहाँ से कीजिए। क्या हम एक पल के लिएभी प्रसन्नता के पलों में अपने शहीदों की याद करते हैं। हमारे यहाँ तो सारा ध्यान साड़ी, जेवरात खरीदने तथा पूर्व की तैयारियों पर केन्द्रित रहता है। शामियाना कैसा हो, खाने के मीनू में क्या क्या हो। आपसी लेने- देन क्या, कैसे और कितना है। कितनी विचित्र बात है। एक सीमित और स्वार्थी सोच, जिसमें न तो देश है, न उसके प्रति प्रेम का भाव और न ही जिनके बलिदान से हम बलवान हैं उनके प्रति कृतज्ञता का भाव। यह आत्मा और आत्म विश्लेषण दोनों का विषय है।
देश नहीं क्लब, जिसमें बैठ करते रहें सदा हम मौज
देश नहीं केवल बंदूकें, देश नहीं होता है फौज
हम पहले खुद को पहचानें फिर पहचानें अपना देश
एक दमकता सत्य बनेगा, नहीं रहेगा सपना शेष (चेतक सेतु के पास)
सम्पर्कः 8/ सेक्टर-2, शांति निकेतन (चेतक सेतु के पास), भोपाल- 462023, मो.
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