हमें इस बात पर शक्ति केन्द्रित करनी होगी कि गाँव स्वावलम्बी बनें और अपने उपयोग के लिये अपना माल स्वयं तैयार करें। अगर कुटीर उद्योग का यह स्वरूप कायम रखा जाए तो ग्रामीणों को आधुनिक यन्त्रों और औजारों को काम में लेने के बारे में मेरा कोई ऐतराज नहीं...। ‘मैं यंत्रों का विरोधी नहीं, मैं तो उनके पागलपन का विरोधी हूँ। मानव के लिये उस यंत्र का क्या काम जिससे हजार-हजार व्यक्ति बेकार होकर भूख से सड़कों पर मारे-मारे फिरे।’
-महात्मा गाँधी
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