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Jul 14, 2019

गोकुल-सा बन जाता है


गोकुल-सा बन जाता है

 सुशील भोले


चलो गाँव की ओर जहाँ सूरज गीत सुनाता है
तारों के घुँघरू बाँध, चंद्रमा नृत्य दिखाता है...

अल्हड़ बाला-सी इठलाती, नदी जहाँ से बहती है
मंद महकती पुरवाई, जहाँ प्रेम की गाथा कहती है
बूढ़ा बरगद पुरखों की, झलक जहाँ दिखलाता है...

रिश्ते-नाते जहाँ अभी भी मन को पुलकित करते हैं
दादी-नानी के नुस्खे, जीवन में रस-रंग भरते हैं
पूरा कस्बा परिवार सरीखा जहाँ अभी भी रहता है...

भाषा जिसकी भोली-भाली, तुतलाती बेटी-सी प्यारी
जहाँ संस्कृति पल्लवित होती जैसे मालिन की फुलवारी
धर्म जहाँ हिमालय जैसा, अडिग आशीष लुटाता है...

साँझ ढले जब ग्वाले की, बंशी की तान बजती है
गो-धूली गुलाल सरीखी, जब माथे पर सजती है
तब पूरा परिवेश जहाँ का, गोकुल-सा बन जाता है...

सम्पर्कः संजय नगर, रायपुर (..), मो.नं.  98269 92811, -मेल- sushilbhole2@gmail.com

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