नेह की डोर
-कमला निखुर्पा
ढूँढे बहिन
भैया की कलाइयाँ
नेह की डोर
बाँधती चहूँ ओर
छूटा पीहर
बसा भाई विदेश
सूना है देश
आओ घटा पुकारे
राह निहारे
गाँव की ये गलियाँ
नीम की छैयाँ
गर्म चूल्हे की रोटी
गागर-जल
आँगन की गौरैया
बहना तेरी
लगे सबसे न्यारी
सोनचिरैया
पुकारे भैया-भैया !!
सज-धजके
रँगी चूनर लहरा
घर भर में
पैंजनिया छनका
बिजुरी बन
ले हाथों में आरती
रोली-तिलक
माथे लगा अक्षत
भाई दुलारे
डबडबाए नैन
छलक जाए
पाके एक झलक
जिए युगों तलक !!!
प्राचार्या, केन्द्रीयविद्यालय, पिथौरागढ़ (उत्तराखण्ड)
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