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Jun 13, 2009

वे इंसानों का खून पीते थे!!!

वे इंसानों का खून पीते थे!!!
वेनिस में एक कब्र की खुदाई करने पर एक ऐसा कंकाल मिला है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह एक वैम्पायर का है। वैम्पायर युरोप में बहुत प्रसिद्घ रहे हैं और उनके बारे में माना जाता था कि वे इंसानों का खून पीते थे। मध्य युग में जब युरोप में प्लेग फैला था तो हजारों लोग मारे गए थे। कई जगहों पर इन्हें सामूहिक रूप से दफनाया गया था। इटली के फ्लोरेंस विश्वविद्यालय के मैटियो बोरिनी वेनिस में लैजरेटो नुओवो द्वीप पर ऐसी ही सामूहिक कब्र खोद रहे थे। यहां से उन्हें एक महिला का कंकाल मिला जिसके मुंह में एक ईंट फंसी हुई है। यह ईंट फंसा कंकाल एक दंतकथा का प्रमाण पेश करता है। जिस समय इस महिला की मृत्यु हुई थी, उस समय कई लोग मानते थे कि प्लेग वैम्पायरों द्वारा फैलाई जाने वाली बीमारी है। ये वैम्पायर लोगों का खून पीने की बजाय मरने के बाद अपने कफन को चबाते हैं और बीमारी को फैलाते हैं। प्रचलित मान्यता के चलते कब्र तैयार करने वाले ऐसे संदिग्ध वैम्पायरों के मुंह में एक ईंट फंसा देते थे ताकि वे कफन न चबा सकें।
वैम्पायरों के बारे में इस मान्यता का आधार शायद यह था कि कभी-कभी शव के मुंह से खून टपकता है जिसकी वजह से कफन अंदर की ओर धंस जाता है और फट जाता है। इस संबंध में बोरिनी ने अपना शोध पत्र अमेरिकन एकेडमी ऑफ फॉरेंसिक साइंस की एक बैठक में प्रस्तुत करते हुए बताया कि संभवत: यह पहला 'वैम्पायर' है जिसकी अपराध वैज्ञानिक जांच हुई है। यह कंकाल वेनिस में 1576 में फैले प्लेग के मृतकों की एक कब्र में से निकाला गया है। बोरिनी का दावा है कि यह खोज उस समय प्रचलित मान्यता का एक पुरातात्विक प्रमाण है। अलबत्ता, कुछ अन्य वैज्ञानिकों का मत है कि यह खोज रोमांचक जरूर है मगर इसे प्रथम वैम्पायर कहना थोड़ी ज्यादती है।
शरीर की गर्मी से बनेगी बिजली 
बहुत कम बिजली पर चलने वाले उपकरण भविष्य में हमारे शरीर की गर्मी से चल सकेंगे। जर्मनी
 में एरलांगन के एक संस्थान के शोधकों ने रेत के दाने जितना बड़ा एक ऐसा सूक्ष्म यंत्र बनाया है, जो गर्मी को बिजली में बदलने वाले मात्र डाक टिकट जितने बड़े एक थर्मो-जनरेटर की मदद से बहुत कम वोल्टेज की बिजली पैदा करता है।    
कानों की मशीन चलेगी शरीर की गर्मी से!!! 
 इस बिजली से, उदाहरण के लिए, ऊंचा सुनने वाले अपने कान में लगे श्रवणयंत्र को चला सकते हैं। इस मिनी जनरेटर के लिए बाहरी हवा और शरीर की गर्मी के बीच मात्र दो डिग्री अंतर होना भी पर्याप्त है। चलिए इंसान के शरीर की गर्माहट कुछ तो काम आएगी। संभवत: एक दिन ऐसा भी आएगा कि उसके शरीर की गर्मी से वह अपनी रोजमर्रा के कार्यों को भी कर सकेगा जैसे खाना पकाना, कार या मोटर साइकिल चलाना।

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