हर शहर में एक न एक सीनियर राइटर जरूर होता है। वह लेखन के क्षेत्र का डॉन अथवा सरगना होता है। जिस शहर में यह डॉन नहीं होता वह शहर दो कौड़ी का होता है। सीनियर राइटर नगर की शान होता है। वह नगर की साहित्यिक गोष्ठियों और सभाओं का स्थाई अध्यक्ष होता है।
सीनियर राइटर को हिन्दी में वरिष्ठ साहित्यकार कहते हैं। वह लेखक के अलावा कवि भी हो सकता है और आलोचक तो वह होता ही है। दरअसल उम्र के साथ वह विधाओं की संकीर्णता से ऊपर उठ जाता है और जरूरत तथा मौसम के हिसाब से सभी विधाओं को ओढ़ता बिछाता रहता है।
सीनियर राइटर ज्यादातर बूढ़े होते हैं उनका बुढ़ापा दरिद्र और असहाय नहीं होता। वे अपनी वृद्धावस्था को एक तरह का रौब और रेस्पेक्टेबिलिटी दिए हुए रहते हैं, तथा जमाने पर लगभग थूकते हुए जमाने को तुच्छ और हेय दृष्टि से देखते हैं। हर शहर में एक न एक सीनियर राइटर जरूर होता है। वह लेखन के क्षेत्र का डॉन अथवा सरगना होता है। जिस शहर में यह डॉन नहीं होता वह शहर दो कौड़ी का होता है। सीनियर राइटर नगर की शान होता है। वह नगर की साहित्यिक गोष्ठियों और सभाओं का स्थाई अध्यक्ष होता है। यदि किसी गोष्ठी में उसे न बुलाया जाए तो उस गोष्ठी को वह निकृष्ट एवं फूहड़ घोषित कर देता है।
कतिपय शहरों में एक के बजाए दो-तीन सीनियर राइटर होते हैं। आयोजनकर्ताओं और संयोजकों को प्राय: मुसीबत में डाल देते हैं। आयोजनकर्ता आखरी तक तय नहीं कर पाते कि सबसे ज्यादा सीनियर कौन है। एकदम वरिष्ठतम!! किससे अध्यक्षता कराएं? शर्माजी से या वर्माजी से?? वैसे दिखने में शर्माजी ज्यादा वरिष्ठ हैं। उनके दांत भी गिर गए हैं। मुंह भी एकदम पोपले टाइप का है। बोलते हैं- तो मुंह से हवा निकल जाती है। लेकिन वरिष्ठ वे फिर भी नहीं हैं। असली 'वरिष्ठ' वर्माजी हैं। खाते-पीते घर के हैं इसीलिए कृशकाय नहीं दिखते। लेकिन शर्माजी पर भारी पड़ते हैं। कारण कि परसों उनको कलेक्टर ने शांति समिति की मीटिंग में बुलाया था। ऐसा करो!! एक से अध्यक्षता करो लो, दूसरे को (साले को) मुख्य अतिथि बना दो। फिर नगर के विधायक क्या भूट्टे सेंकेंगे?? वरिष्ठ साहित्यकारों के कारण आयोजनकर्ताओं की जान सांसत में रहती है।
स्थानीय स्तर पर वरिष्ठ साहित्यकारों के आपसी रिश्ते प्राय: ईष्र्यापूर्ण रहते हैं। वे अमूमन एक दूसरे की हत्या करने की फिराक में रहते हैं। लेकिन आपस में मिलने पर बहुत सौहार्दपूर्ण व्यवहार करते हैं।
'कैसे हैं??'
'इधर कई दिनों से दिखाई नहीं दिए??'
सीनियर राइटर ज्यादातर बूढ़े होते हैं उनका बुढ़ापा दरिद्र और असहाय नहीं होता। वे अपनी वृद्धावस्था को एक तरह का रौब और रेस्पेक्टेबिलिटी दिए हुए रहते हैं, तथा जमाने पर लगभग थूकते हुए जमाने को तुच्छ और हेय दृष्टि से देखते हैं। हर शहर में एक न एक सीनियर राइटर जरूर होता है। वह लेखन के क्षेत्र का डॉन अथवा सरगना होता है। जिस शहर में यह डॉन नहीं होता वह शहर दो कौड़ी का होता है। सीनियर राइटर नगर की शान होता है। वह नगर की साहित्यिक गोष्ठियों और सभाओं का स्थाई अध्यक्ष होता है। यदि किसी गोष्ठी में उसे न बुलाया जाए तो उस गोष्ठी को वह निकृष्ट एवं फूहड़ घोषित कर देता है।
कतिपय शहरों में एक के बजाए दो-तीन सीनियर राइटर होते हैं। आयोजनकर्ताओं और संयोजकों को प्राय: मुसीबत में डाल देते हैं। आयोजनकर्ता आखरी तक तय नहीं कर पाते कि सबसे ज्यादा सीनियर कौन है। एकदम वरिष्ठतम!! किससे अध्यक्षता कराएं? शर्माजी से या वर्माजी से?? वैसे दिखने में शर्माजी ज्यादा वरिष्ठ हैं। उनके दांत भी गिर गए हैं। मुंह भी एकदम पोपले टाइप का है। बोलते हैं- तो मुंह से हवा निकल जाती है। लेकिन वरिष्ठ वे फिर भी नहीं हैं। असली 'वरिष्ठ' वर्माजी हैं। खाते-पीते घर के हैं इसीलिए कृशकाय नहीं दिखते। लेकिन शर्माजी पर भारी पड़ते हैं। कारण कि परसों उनको कलेक्टर ने शांति समिति की मीटिंग में बुलाया था। ऐसा करो!! एक से अध्यक्षता करो लो, दूसरे को (साले को) मुख्य अतिथि बना दो। फिर नगर के विधायक क्या भूट्टे सेंकेंगे?? वरिष्ठ साहित्यकारों के कारण आयोजनकर्ताओं की जान सांसत में रहती है।
स्थानीय स्तर पर वरिष्ठ साहित्यकारों के आपसी रिश्ते प्राय: ईष्र्यापूर्ण रहते हैं। वे अमूमन एक दूसरे की हत्या करने की फिराक में रहते हैं। लेकिन आपस में मिलने पर बहुत सौहार्दपूर्ण व्यवहार करते हैं।
'कैसे हैं??'
'इधर कई दिनों से दिखाई नहीं दिए??'
स्वास्थ्य तो ठीक है?? इत्यादि!
सीनियर राइटर अनुभव से पका होता है इसलिए प्राय: अडिय़ल होता है, तथा नई पीढ़ी के पिछवाड़े पर हमेशा लात जमाने को उद्यत रहता है। यह अलहदा बात है कि वक्त पडऩे पर वह नए लेखकों की किताबों के ब्लर्ब और भूमिकाएं आदि लिखता है तथा उनका विमोचन भी करता है। विमोचनार्थ प्रस्तुत की गई कृतियों के रैपर खोलने में उसकी निर्बल उंगलियां बहुत प्रवीण होती हैं। नए लेखकों की कहानियों और कविताओं पर वह धारा प्रवाह बोलता है, देर तक बोलता है और तब तक बोलता है जब तक कि पीछे से कोई उसका कुर्ता अथवा धोती न खींच ले। नए लेखकों, कवियों तथा खासतौर से नई उम्र की कवियत्रियों को आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के कार्यक्रम दिलाने में भी सीनियर राइटर मदद करता है।
आओ शालिनी तुम्हारी कविताएं रेडियो से प्रकाशित करवा दें!!
पिछली दफे सरिता की करवाई थी!!
सीनियर राइटर संस्मरण सुनाने, लिखने आदि की कला में बहुत पारंगत होता है। हर सीनियर राइटर अपने जीवन में एकाधिक बार पंत, प्रसाद अथवा निराला जी से जरूर मिला होता है। अपने संस्मरणों में वह विस्तार से बताता है, कि कब कहां और कैसे वह उपरोक्त साहित्यकारों से मिला और देर तक बातें की। वह यह भी बताता है कि निरालाजी ने या पंत जी ने उससे क्या कहा- कितनी देर तक कहा और तब तक कहा जब तक कि उस साहित्यकार विशेष की गाड़ी नहीं निकल गई। ज्यादातर सीनियर राइटर पंत, प्रसाद, बच्चन आदि महामना साहित्याकारों के साथ खिंचाई गई तथा एनलार्ज की गई ब्लैक एंड व्हाइट फोटो अपनी बैठक में लगाकर रखते हैं ताकि वक्त जरूरत काम आ सके। फोटो उस स्थान पर लगाई जाती है जहां से सबको दिखाई दे सके। कोई मूरख यदि फिर भी न देखे, तो सीनियर राइटर स्वयं भी बता देता है कि 'ये बच्चन जी हैं और उनके बाजू में 'मैंÓ हूं!!
सीनियर राइटर यदि गंजा हो (जो कि प्राय: होता ही है) तो अधिक ग्रेसफुल और विद्वान दिखाई पड़ता हैं। कुछ सीनियर राइटर अपने कपाल पर तीन-चार सलवटें बनाकर रखते हैं जिनकी वजह से वे अधिक विद्वान और चिंतनशील दिखाई देते हैं। सीनियर राइटर यदि दाढ़ी बढ़ा ले तो वह सोने में सुहागा जैसा हो जाता है। सुहागा किस वस्तु को कहते हैं इस बावत मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है। इसके बारे में किसी सीनियर राइटर से ही पूछा जा सकता है।
सीनियर राइटर अक्सर ढीली पैंट पहनता है जो बार-बार फिसलती है लेकिन इतनी भी ढीली नहीं पहनता कि कमर से नीचे ही फिसल जाए। पैंट के मामले में वह सावधान रहता है। सीनियर राइटर के टेलर्स और नाई आदि फिक्स रहते हैं। ज्यादातर मामलों में नाई उसकी कटिंग करने घर पर ही आता है।
सीनियर राइटर कभी नाई की दुकान पर नहीं जाता। कटिंग कराने के दौरान वह नाई से बातचीत करते रहता है। वह नाई की बातों में कविता तलाशता है। पक्का साहित्यकार नाई से भी कविता झटक लेता है। देखने में यह भी आया है कि सीनियर राइटर प्राय: गर्म पानी से नहाता है और यदि गर्म पानी नहीं मिले तो कई-कई दिनों तक नहीं नहाता। उनके बदन से अक्सर वरिष्ठता की बदबू आती रहती है।
सीनियर राइटर का एकांत बहुत भयावह होता है। बात-बात पर उपदेश देने वाली आदत के कारण लोग प्राय: उससे बिदकते हैं। सीनियर राइटर अमूमन अकेला ही रहता है, तथा अपने घरेलू किस्म के अकेलेपन को पत्नी से लड़ते हुए काटता है। सार्वजनिक जीवन में सीनियर राइटर आदर्शवादी होता है तथा अकेले में वह इन आदर्शों को तोड़ता जाता है। सुबह के नाश्ते के वक्त जो सीनियर राइटर परंपरा का पुजाती होता है, लंच तक आते-आते वह उन परंपराओं का भंजक बन जाता है। परंपरा भंजन की कला, साहित्य में क्रांतिकारिता कहलाती है। सीनियर राइटर एक दिन में चार पांच बार क्रांति करता है। खटिया पर पड़ा हुआ, बीमार और जर्जर साहित्यकार अधिक क्रांतिकारी
होता है।
वरिष्ठ साहित्यकारों को अपनी षष्ठीपूर्ति अथवा नागरिक अभिनंदन करवाने में बहुत चिंता रहती है। षष्ठीपूर्ति के दौरान यदि अभिनंदन ग्रंथ भी छप जाए तो फिर कहने ही क्या। नागरिक अभिनंदन करवाने के लिए वरिष्ठ साहित्यकारों ने अनेक तरीके ईजाद किए हैं। सबसे उत्तम तरीका है कि हर मिलने जुलने वालों से कहो कि यह नगर मेरा, (अर्थात सीनियर राइटर का) नागरिक अभिनंदन करना चाहता है। धीरे-धीरे इस मिथ्या प्रचार के भपके में नगर की कोई संस्था सचमुच उनका अभिनंदन करवा डालती है। कतिपय सीनियर राइटर अपने अभिनंदन का खर्चा उठाने को भी तैयार रहते हैं। ये लोग अभिनंदन ग्रंथ की सामग्री भी आनन फानन जुटा देते हैं।
ऐसे भी सीनियर राइटर देखने में आए हैं जो अपनी टांग साहित्य में तथा दूसरी समाज सेवा के क्षेत्र में डाले रखते हैं। समाजसेवा का क्षेत्र बाज- दफे साहित्य की सेवा से ज्यादा व्यापक होता है। आदमी कालोनी की नाली सुधारते-सुधारते देश की नदियों को जोडऩे की बात करने लगता है। इस क्रिया को राष्ट्रीय चेतना का विकास होना कहते हैं। ज्यादातर राष्ट्रीय चेतना वार्ड की गटर से शुरु होती है। कतिपय सीनियर राइटर राजनीति के फटे में भी पांव फंसाना चाहते हैं। कई सीनियर राइटर सरकारी पदों, पीठों अथवा समितियों के मानद सदस्य बनकर गौरवान्वित हो लेते हैं। मैं एक ऐसे साहित्यकार को जानता हूं जो रेल्वे की राजभाषा सलाहकार समिति के सदस्य थे। वे जिंदगी भर बिना टिकट रेल में सपरिवार सफर करते रहे। जब भी टीटी उनसे टिकट मांगता, वे चिरौरी करते हुए कहते - 'मैं एडवाइजरी कमेटी में हूं। ये मेरी बीवी हैं। वे साहित्य का 'अमृत' छोड़कर जिंदगी भर प्लेटफार्म की गंदी चाय पीते रहे।
वरिष्ठ साहित्यकार, साहित्यिक मूल्यों में गिरावट, देश की गरीबी, भ्रष्टाचार तथा हिंसा आदि के लिए चिंतित दिखाई देते हैं लेकिन उनकी असली चिंता, ज्ञानपीठ और पद्मश्री पुरस्कारों के लिए होती है। दरअसल सीनियर राइटर कबीर के ब्रह्म की तरह होता है, वह चाहे तो 'पुहुपवास' से पातरा होकर सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो जाए। और चाहे तो नई पौध के सिर पर लादकर गुरुडम के बोझ से उसे रसातल में बिठा दे। सीनियर राइटर का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
कैलाश मंडलेकर
अमूमन लेखक अपने कथ्य के आधार पर ऊंचाई को प्राप्त करता है। पर ऐसे भी लेखक महत्वपूर्ण हैं जो अपनी भाषा और शैली के आधार पर साहित्य में अपनी जगह बना लेते हैं। हमारी पीढ़ी के लेखकों में कैलाश मंडलेकर हैं जिनसे कथ्य के आधार पर और भी कुछ कहे जाने की अभी प्रतीक्षा है लेकिन भाषा के स्तर पर हिंदी व्यंग्य साहित्य में उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कर ली है और अच्छे से दर्ज की है। यह कमाल उन्होंने अपने पहले ही संग्रह 'सर्किट हाउस में लटका चांद' से ही कर दिखाया और व्यंग्य के अपने पाठक व लेखक संसार का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींच लिया है। कैलाश मंडलेकर के पास बड़ी आत्मीय और घरेलू किसम की भाषा है जिनसे वे अपने पाठकों के साथ आत्मीय सम्बंध बना लेते हैं और पाठक को बड़ी निजता सें बांधे रखते हैं। उनकी रचनाएं इस तरह झरती हैं जैसे वे पाठकों को कोई कहानी सुना रहे हों। या प्रेम से किसी घटना का बयान कर रहे हों। उनके इस प्रेमपूर्ण बयान को यहां उनकी प्रस्तुत व्यंग्य रचना 'सीनियर राइटर्स' में भी देखा जा सकता है। जिसमें कस्बे में रहने वाले अहमक किस्म के स्वनामधन्य लेखकों की खिंचाई की गई है। सार्थक और सक्रिय लेखन से परे रहकर वरिष्ठता बोध से ग्रसित और अपना मिथ्या प्रचार कर हरदम अभिभूत रहने वाले लेखकों का बढि़या खाका खींचा गया है।
सीनियर राइटर अनुभव से पका होता है इसलिए प्राय: अडिय़ल होता है, तथा नई पीढ़ी के पिछवाड़े पर हमेशा लात जमाने को उद्यत रहता है। यह अलहदा बात है कि वक्त पडऩे पर वह नए लेखकों की किताबों के ब्लर्ब और भूमिकाएं आदि लिखता है तथा उनका विमोचन भी करता है। विमोचनार्थ प्रस्तुत की गई कृतियों के रैपर खोलने में उसकी निर्बल उंगलियां बहुत प्रवीण होती हैं। नए लेखकों की कहानियों और कविताओं पर वह धारा प्रवाह बोलता है, देर तक बोलता है और तब तक बोलता है जब तक कि पीछे से कोई उसका कुर्ता अथवा धोती न खींच ले। नए लेखकों, कवियों तथा खासतौर से नई उम्र की कवियत्रियों को आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के कार्यक्रम दिलाने में भी सीनियर राइटर मदद करता है।
आओ शालिनी तुम्हारी कविताएं रेडियो से प्रकाशित करवा दें!!
पिछली दफे सरिता की करवाई थी!!
सीनियर राइटर संस्मरण सुनाने, लिखने आदि की कला में बहुत पारंगत होता है। हर सीनियर राइटर अपने जीवन में एकाधिक बार पंत, प्रसाद अथवा निराला जी से जरूर मिला होता है। अपने संस्मरणों में वह विस्तार से बताता है, कि कब कहां और कैसे वह उपरोक्त साहित्यकारों से मिला और देर तक बातें की। वह यह भी बताता है कि निरालाजी ने या पंत जी ने उससे क्या कहा- कितनी देर तक कहा और तब तक कहा जब तक कि उस साहित्यकार विशेष की गाड़ी नहीं निकल गई। ज्यादातर सीनियर राइटर पंत, प्रसाद, बच्चन आदि महामना साहित्याकारों के साथ खिंचाई गई तथा एनलार्ज की गई ब्लैक एंड व्हाइट फोटो अपनी बैठक में लगाकर रखते हैं ताकि वक्त जरूरत काम आ सके। फोटो उस स्थान पर लगाई जाती है जहां से सबको दिखाई दे सके। कोई मूरख यदि फिर भी न देखे, तो सीनियर राइटर स्वयं भी बता देता है कि 'ये बच्चन जी हैं और उनके बाजू में 'मैंÓ हूं!!
सीनियर राइटर यदि गंजा हो (जो कि प्राय: होता ही है) तो अधिक ग्रेसफुल और विद्वान दिखाई पड़ता हैं। कुछ सीनियर राइटर अपने कपाल पर तीन-चार सलवटें बनाकर रखते हैं जिनकी वजह से वे अधिक विद्वान और चिंतनशील दिखाई देते हैं। सीनियर राइटर यदि दाढ़ी बढ़ा ले तो वह सोने में सुहागा जैसा हो जाता है। सुहागा किस वस्तु को कहते हैं इस बावत मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है। इसके बारे में किसी सीनियर राइटर से ही पूछा जा सकता है।
सीनियर राइटर अक्सर ढीली पैंट पहनता है जो बार-बार फिसलती है लेकिन इतनी भी ढीली नहीं पहनता कि कमर से नीचे ही फिसल जाए। पैंट के मामले में वह सावधान रहता है। सीनियर राइटर के टेलर्स और नाई आदि फिक्स रहते हैं। ज्यादातर मामलों में नाई उसकी कटिंग करने घर पर ही आता है।
सीनियर राइटर कभी नाई की दुकान पर नहीं जाता। कटिंग कराने के दौरान वह नाई से बातचीत करते रहता है। वह नाई की बातों में कविता तलाशता है। पक्का साहित्यकार नाई से भी कविता झटक लेता है। देखने में यह भी आया है कि सीनियर राइटर प्राय: गर्म पानी से नहाता है और यदि गर्म पानी नहीं मिले तो कई-कई दिनों तक नहीं नहाता। उनके बदन से अक्सर वरिष्ठता की बदबू आती रहती है।
सीनियर राइटर का एकांत बहुत भयावह होता है। बात-बात पर उपदेश देने वाली आदत के कारण लोग प्राय: उससे बिदकते हैं। सीनियर राइटर अमूमन अकेला ही रहता है, तथा अपने घरेलू किस्म के अकेलेपन को पत्नी से लड़ते हुए काटता है। सार्वजनिक जीवन में सीनियर राइटर आदर्शवादी होता है तथा अकेले में वह इन आदर्शों को तोड़ता जाता है। सुबह के नाश्ते के वक्त जो सीनियर राइटर परंपरा का पुजाती होता है, लंच तक आते-आते वह उन परंपराओं का भंजक बन जाता है। परंपरा भंजन की कला, साहित्य में क्रांतिकारिता कहलाती है। सीनियर राइटर एक दिन में चार पांच बार क्रांति करता है। खटिया पर पड़ा हुआ, बीमार और जर्जर साहित्यकार अधिक क्रांतिकारी
होता है।
वरिष्ठ साहित्यकारों को अपनी षष्ठीपूर्ति अथवा नागरिक अभिनंदन करवाने में बहुत चिंता रहती है। षष्ठीपूर्ति के दौरान यदि अभिनंदन ग्रंथ भी छप जाए तो फिर कहने ही क्या। नागरिक अभिनंदन करवाने के लिए वरिष्ठ साहित्यकारों ने अनेक तरीके ईजाद किए हैं। सबसे उत्तम तरीका है कि हर मिलने जुलने वालों से कहो कि यह नगर मेरा, (अर्थात सीनियर राइटर का) नागरिक अभिनंदन करना चाहता है। धीरे-धीरे इस मिथ्या प्रचार के भपके में नगर की कोई संस्था सचमुच उनका अभिनंदन करवा डालती है। कतिपय सीनियर राइटर अपने अभिनंदन का खर्चा उठाने को भी तैयार रहते हैं। ये लोग अभिनंदन ग्रंथ की सामग्री भी आनन फानन जुटा देते हैं।
ऐसे भी सीनियर राइटर देखने में आए हैं जो अपनी टांग साहित्य में तथा दूसरी समाज सेवा के क्षेत्र में डाले रखते हैं। समाजसेवा का क्षेत्र बाज- दफे साहित्य की सेवा से ज्यादा व्यापक होता है। आदमी कालोनी की नाली सुधारते-सुधारते देश की नदियों को जोडऩे की बात करने लगता है। इस क्रिया को राष्ट्रीय चेतना का विकास होना कहते हैं। ज्यादातर राष्ट्रीय चेतना वार्ड की गटर से शुरु होती है। कतिपय सीनियर राइटर राजनीति के फटे में भी पांव फंसाना चाहते हैं। कई सीनियर राइटर सरकारी पदों, पीठों अथवा समितियों के मानद सदस्य बनकर गौरवान्वित हो लेते हैं। मैं एक ऐसे साहित्यकार को जानता हूं जो रेल्वे की राजभाषा सलाहकार समिति के सदस्य थे। वे जिंदगी भर बिना टिकट रेल में सपरिवार सफर करते रहे। जब भी टीटी उनसे टिकट मांगता, वे चिरौरी करते हुए कहते - 'मैं एडवाइजरी कमेटी में हूं। ये मेरी बीवी हैं। वे साहित्य का 'अमृत' छोड़कर जिंदगी भर प्लेटफार्म की गंदी चाय पीते रहे।
वरिष्ठ साहित्यकार, साहित्यिक मूल्यों में गिरावट, देश की गरीबी, भ्रष्टाचार तथा हिंसा आदि के लिए चिंतित दिखाई देते हैं लेकिन उनकी असली चिंता, ज्ञानपीठ और पद्मश्री पुरस्कारों के लिए होती है। दरअसल सीनियर राइटर कबीर के ब्रह्म की तरह होता है, वह चाहे तो 'पुहुपवास' से पातरा होकर सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो जाए। और चाहे तो नई पौध के सिर पर लादकर गुरुडम के बोझ से उसे रसातल में बिठा दे। सीनियर राइटर का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
कैलाश मंडलेकर
अमूमन लेखक अपने कथ्य के आधार पर ऊंचाई को प्राप्त करता है। पर ऐसे भी लेखक महत्वपूर्ण हैं जो अपनी भाषा और शैली के आधार पर साहित्य में अपनी जगह बना लेते हैं। हमारी पीढ़ी के लेखकों में कैलाश मंडलेकर हैं जिनसे कथ्य के आधार पर और भी कुछ कहे जाने की अभी प्रतीक्षा है लेकिन भाषा के स्तर पर हिंदी व्यंग्य साहित्य में उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कर ली है और अच्छे से दर्ज की है। यह कमाल उन्होंने अपने पहले ही संग्रह 'सर्किट हाउस में लटका चांद' से ही कर दिखाया और व्यंग्य के अपने पाठक व लेखक संसार का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींच लिया है। कैलाश मंडलेकर के पास बड़ी आत्मीय और घरेलू किसम की भाषा है जिनसे वे अपने पाठकों के साथ आत्मीय सम्बंध बना लेते हैं और पाठक को बड़ी निजता सें बांधे रखते हैं। उनकी रचनाएं इस तरह झरती हैं जैसे वे पाठकों को कोई कहानी सुना रहे हों। या प्रेम से किसी घटना का बयान कर रहे हों। उनके इस प्रेमपूर्ण बयान को यहां उनकी प्रस्तुत व्यंग्य रचना 'सीनियर राइटर्स' में भी देखा जा सकता है। जिसमें कस्बे में रहने वाले अहमक किस्म के स्वनामधन्य लेखकों की खिंचाई की गई है। सार्थक और सक्रिय लेखन से परे रहकर वरिष्ठता बोध से ग्रसित और अपना मिथ्या प्रचार कर हरदम अभिभूत रहने वाले लेखकों का बढि़या खाका खींचा गया है।
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