छत्तीसगढ़ की साहित्यिक
यात्रा का सफल रेखांकन
'छत्तीसगढ़ के साहित्य साधक' प्रो.
अश्विनी केशरवानी की नवीनतम कृति है। इस पुस्तक में उन्होंने 31 साहित्य
साधकों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपनी लेखनी चलायी है। पुस्तक में संगृहीत
साहित्यकार आज हमारे बीच नहीं हैं। कुछ चर्चित थे और अधिकतर को बहुत कम लोग जानते
थे। इस पुस्तक के प्रकाशन से निश्चित रूप से उन्हें पढ़ा जाएगा। कदाचित् इसीलिए
डॉ. बाबूलाल शुक्ल ने भूले बिसरे साहित्यकारों को याद करना अपनी परंपरा की पहचान
के साथ ऋण शोध भी माना है। उनका यह भी मानना उचित है कि वर्तमान की सही पहचान के
लिए अतीत की साझेदारी आवश्यक है।
भारतेन्दुकाल में काशी एक साहित्यिक
केंद्र था और उसका नाभिकेंद्र भारतेन्दु हरिश्चंद्र थे। उन्होंने तब यहाँ 'भारतेन्दु मंडल' एक साहित्यिक संस्था बनायी थी। ठीक
इसी प्रकार दूसरा साहित्यिक केंद्र छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण में था जिसका
नाभिकेंद्र ठाकुर जगमोहन सिंह थे। वे न केवल भारतेन्दु हरिश्चंद्र के सहपाठी और
मित्र थे बल्कि एक उच्च कोटि के कवि, आलोचक और साहित्यकार थे। उन्होंने
शिवरीनारायण में 'भारतेन्दु
मंडल ' की तर्ज
में 'जगन्मोहन
मंडल' बनाकर यहाँ के बिखरे साहित्यकारों को
न केवल एकत्रित किया बल्कि उन्हें लेखन की दिशा भी दी। इसके पहले यहाँ साहित्यिक
प्रतिभाएँ राज्याश्रय में थी। पं. माखन मिश्र, बाबू रेवाराम, पं. प्रहलाद दुबे, पं.
मेदिनीप्रसाद पांडेय ऐसे कवि थे इसलिए उनकी रचनाओं में उन राज्यों की झलक दिखाई
देती है। अनेक साहित्यकारों ने स्वतंत्र लेखन किया है। इसलिए उनकी रचनाओं में
भक्ति रस, वीर
रस के साथ सौंदर्य रस का पान किया जा सकता है। कुछ साहित्यकारों ने लोक साहित्य और
वाचिक परंपरा को लिपिबद्ध किया है तो कुछ ने साहित्य, इतिहास और
पुरातत्व के क्षेत्र में भी लेखन किया है।
पुस्तक में छत्तीसगढ़ के
साहित्यकारों की हिन्दी साहित्य में उपेक्षा की चर्चा की गयी है। वाकई हिन्दी
साहित्य के इतिहास में यहाँ के कवियों का नामोल्लेख न होना दुखद तो है ही मगर इसके
लिए उनकी रचनाओं का हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखकों को उपलब्ध न होना प्रमुख कारण
माना जा सकता है। यह भी हो सकता है कि उन्हें छत्तीसगढ़ जैसे वनांचल और सर्वाधिक
पिछड़े प्रांत में ऐसे लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकारों के होने की सूचना नहीं रही होगी
और उन्होंने उनकी बिना खोज खबर किये हिन्दी साहित्य का इतिहास लिख डाला हो? लेकिन
पंडित लोचन प्रसाद पांडेय के प्रयास से अन्यान्य साहित्यकारों की रचना प्रकाशित हो
सकी थी। उन्होंने इतिहास, पुरातत्व और साहित्य की सभी विधाओं में लेखन
किया है। लेकिन उनका जीवन परिचय लिखने का सत्कार्य श्री प्यारेलाल गुप्त ने किया
है। पं. अमृतलाल दुबे ने वाचिक परंपरा के गीतों को सस्वर लेखबद्ध करने का स्तुत्य
कार्य किया है।
इस पुस्तक में छत्तीसगढ़ के
रीतिकालीन कवि पं. गोपाल मिश्र, बाबू रेवाराम और पंडित प्रहलाद दुबे, भारतेन्दु
कालीन रचनाकारों में ठाकुर जगमोहन सिंह, पं. अनंतराम पांडेय, पं.
मेदिनी प्रसाद पांडेय, पं. हीराराम त्रिपाठी, पं. मालिकराम भोगहा, पं.
पुरुषोत्तम प्रसाद पांडेय, जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' गोविंद साव और महावीर प्रसाद
द्विवेदी युग के अन्यान्य उच्च कोटि के साहित्यकारों के व्यक्तित्व और कृतिव को
रेखांकित किया है। प्यारेलाल गुप्त, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, द्वारिकाप्रसाद
तिवारी विप्र, राजा
चक्रधर सिंह चर्चित व्यक्तित्व थे लेकिन अपेक्षाकृत कम चर्चित कवियों में भवानी
शंकर षडंगी, डॉ.
लोचनप्रसाद शुक्ल,
चिरंजीव दास, कपिलनाथ कश्यप, पं.
किशोरीमोहन त्रिपाठी पर भी कलम चलायी गयी है। कुछ अन्यान्य साहित्यकारों को
सम्मिलित किया जाना उचित होता मगर लेखक के इस विचार से सहमत हुआ जा सकता कि पुस्तक
की सीमा को ध्यान में रखा गया है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस पुस्तक
के लेखक प्रो. अश्विनी केशरवानी महाविद्यालय में विज्ञान के प्राध्यापक हैं लेकिन
उनकी इतिहास, साहित्य
और छत्तीसगढ़ की परंपराओं में गहरी अभिरुचि के कारण अभी तक विभिन्न विधाओं में
उनकी छ: पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। इस पुस्तक के प्रकाशन में संस्कृति विभाग
छत्तीसगढ़ शासन का सहयोग मिलना सुखद है। कुल मिलाकर पुस्तक पठनीय और संग्रहणीय है।
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समीक्षक: प्रांजल कुमार
पुस्तक- छत्तीसगढ़ के साहित्य साधक
लेखक- प्रो. अश्विनी केशरवानी
प्रकाशक- श्री प्रकाशन, आदर्श नगर
दुर्ग
मूल्य - तीन सौ रुपये मात्र
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