भ्रष्ट ही हर सकते हैं कष्ट
- हरि जोशी
मुझे अब यह स्वीकार करने में कोई
संकोच नहीं है, कि
हिन्दुस्तान में आम आदमी के तारणहार आदरणीय भ्रष्टजी ही हो सकते हैं कोई अन्य नहीं, यहां तक
कि भगवान भी नहीं। भगवान भी इनके आगे हाथ ही नहीं घुटने तक टेकते देखे गए हैं। सही
रूप में भ्रष्टजन ही पूज्य और वंदनीय हैं। मुझे जो सुखानुभूति, परमानंद
की प्राप्ति इनके आशीर्वाद से प्राप्त हुई है वह अवर्णनीय है। भ्रष्टजी नहीं मिलते
तो मेरी जीवन की यह यात्रा अधूरी ही रहती। इस एक अनुभव ने मुझे उनका जीवनपर्यंत
आभारी बना दिया है।
हुआ यह कि मुझे मजबूरी में भोपाल से
मुंबई जाना था, कई
ट्रेनों में आरक्षण की स्थिति देखी। शरणागत होने का प्रयत्न किया, परिणाम
में क्षरण ही क्षरण हुआ रक्षण कहीं नहीं पाया। थक हार कर कुछ रेलगाडिय़ों हेतु पैसे भरे, ई टिकिट
कराये, सभी
में प्रतीक्षा सूची को प्राप्त। अपना पूर्व का अनुभव वैसे तो कभी अलग नहीं रहा था।
हर जगह अपना भाग्य प्रतीक्षा पंक्ति में बहुत पीछे खड़ा मिलता रहा। आशावादी होने के कारण सोचा था इस बार शायद ऐसा
न हो किन्तु कहाँ इस बार भी भाग्य ने आदत नहीं छोड़ी?
दिनांक 4 को जब
चार्ट तैयार हुआ तो पाया कि हम पुन: धराशायी हैं। पंद्रह दिन पहले प्रतीक्षा सूची
में क्रमांक बारह पर थे आज आठ पर टिके हैं। हमने एक मित्र से बात की तो वह बोले और
करो भगवान का जाप भगवान के इस अंधविश्वास ने ही आपके बारह बजाये हैं। भ्रष्ट और
भगवान की राशि भले ही एक हो अधिक ताकतवर तो भ्रष्ट ही सिद्ध होगा। भगवान की तुलना
में भ्रष्ट के पास राशि भी अधिक ही होगी।
किन्तु क्या हमारी श्रद्धाभावना
प्रशंसनीय नहीं थी अभी भी हम डिगे नहीं थे प्रभु के चरणों में आज भी यथावत पड़े
हुए थे ताकि तारीख पांच को तो स्पष्ट आरक्षण मिल जाय। दिनांक चार को भले ही गाड़ी
छूट गई हो, पांच
को तो ट्रेन पकड़ ही लेंगे।
अत: सुबह से ही भगवान की आराधना में
लीन हो गए। स्नान किया, पूजा की, दान किया दक्षिणा भी चढाई, भगवान को
प्रसन्न करने के लिए ट्रेन के चार्ट बनने तक सब कुछ किया। लगभग चार घंटे साष्टांग
दंडवत की मुद्रा में भगवान के सामने पड़े रहे। इतने भावविभोर होकर पूर्व में हमने
शायद ही कभी पूजा की हो आखिर प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त भी हो गई। अब क्या है तीन
घंटे बाद मुझे ट्रेन में बैठना ही है, चार्ट भी तैयार हो ही चुका होगा। चार छ: बार
तो रेल विभाग यात्रियों के टेलीफोनों पर ध्यान ही नहीं देता, अपने साथ
भी पहले तो वही हुआ फिर एक दयालु कर्मचारी ने दया दिखाई। उत्तर तो सुन लिया पर हाय
री किस्मत पुन: उसने मुझे धोखा दिया। उस दिन भी वेट लिस्ट से बाहर न निकल सका। तीन
दिन से पूरे उत्साह से जो तैयारी चल रही थी, बेकार हो गई। उस दिन भी निराशा ने मेरा
भरपूर साथ दिया। पल भर के लिए भी अकेला न छोड़ा। हारकर भगवान की ओर से मुंह मोड़कर
मैंने एजेंट की ओर कदम बढ़ाए। मरता क्या न करता रेलवे आरक्षण एजेंट को अपनी समस्या
बताई। मेरे लिए जो समस्या पहाड़वत थी उस महापुरूष के लिए वह कोई समस्या ही नहीं
थी। उसने मुझे समझाया ट्रेन के रिजर्वेशन
के मामले में जो काम हम कर सकते हैं भगवान भी नहीं कर सकता। भरपूर एहसान बताते हुए
मुझसे उन्होंने टिकिट किराये के अतिरिक्त प्रति टिकिट मात्र दो हजार रूपयों की
मांग की, साथ
ही यह भी कहा कि जब भी आरक्षण न मिले मुझसे संपर्क करें। किसी भी श्रेणी के कितने
भी टिकिट मैं आसानी से उपलब्ध करा दूंगा। हमारी ऊपर तक सैटिंग है। मुझे लगा किशन
भगवान ने तभी गीता में लिख दिया है कि सामान्य जन के कष्ट हरने भगवान मनुष्य के
रूप में धरती पर जन्म ले लिया करते हैं।
संपर्क: 3-32 छत्रसाल
नगर, फेज-2, जे के रोड, भोपाल
(मप्र) 462022
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