उदंती.com को आपका सहयोग निरंतर मिल रहा है। कृपया उदंती की रचनाओँ पर अपनी टिप्पणी पोस्ट करके हमें प्रोत्साहित करें। आपकी मौलिक रचनाओं का स्वागत है। धन्यवाद।

Nov 24, 2012

दीपावली अभिनंदन



आज हाई टेक के इस नए युग में दीपावली और नववर्ष के अवसर पर कार्ड भेजने की परंपरा लगभग समाप्त होते जा रही है। परंतु एक वह भी समय था जब इन अवसरों पर दूर बसे अपने आत्मीय को शुभकामना कार्ड भेज कर हम अपनी भावनाओं का इजहार करते थे। कार्ड भेजने वाले की भावनाएं जब कार्ड में लिखे शब्दों के माध्यम से हम तक पँहुचती थी तो हमारी खुशी दोगुनी हो जाया करती थी। ऐसे ही कुछ दीपावली कार्ड मुझे अपने पिटारे में से भी मिले हैं। छत्तीसगढ़ के वरिष्ट साहित्यकार और व्यंग्यकार लतीफ घोंघी तथा ईश्वर शर्मा जी संयुक्त रूप से 80- 90 के दशक में प्रति वर्ष कविता के रूप में अभिनंदन पत्र भेजा करते थे।  लतीफ घोंघी जी आज हमारे बीच नहीं हैं, उन्हें सादर नमन करते हुए मैं उदंती के इस अंक में दीपावली अभिनंदन के रूप में भेजी गईं उनकी कुछ कविताओं का प्रकाशन कर रही हूं- 

रोशनी के लिए

            (1)
अंधकार घना
और दीपक की बाती छोटी है,
फिर भी
बाती पर विश्वास
सबल है।
सच है,
परत-दर-परत फैला अंधेरा            
नहीं मिटेगा एकाएक
लेकिन यह भी सच है,
दीपक अकेला ही सही
अंधेरे में मार्ग दिखाता है।
जरूरत है आज
इस बाती को जलाए रखने की,
कभी तो जुड़ेगी बाती से बाती
और आगे बढ़ेगा प्रकाश,
अंधेरे को चीरते हुए।

               (2)
आरक्षण, आन्दोलन,
असंतोष और सांप्रदायिकता के
इस अटूट अंधकार में
टिमटिमाती आस्था और विश्वास की बाती
आज भले ही अकेली है,
लेकिन कमजोर नहीं।
हमें यह नहीं सोचना है,
कितना गहरा है अंधेरा
हमारी कोशिश हो-
रोशनी की यह लकीर जलती रहे।
बाती छोटी ही सही
लेकिन जलती रहे..
बस जलती रहे।
(3)
दीपक,
परम्परा के लिए नहीं
रोशनी के लिए जले।
रोशनी,
वैभव-प्रदर्शन के लिए नहीं
अन्धकार मिटाने के  लिए हो।
आईए
इस बार चुनाव में,
रोशनी और दीपक को
सही अर्थो में परिभाषित करें,
अपने अन्दर आस्था और विश्वास का
दीपक जलाएं।
और एक नये संकल्प के साथ
यह दीपावली मनाएं ।
अपने विवेक को प्रज्वलित करें,
अन्धकार के लिए नहीं,
रोशनी के लिए मतदान करें।

No comments: