हाजिरजवाब अटल
अटल बिहारी बाजपेयी ने अपने राजनीतिक करियर के दौरान मीडिया को कई
बेहतरीन साक्षात्कार दिए। यहाँ प्रस्तुत है उनसे समय समय पर लिए गए साक्षात्कार के
कुछ ऐसे अंश जो अटल बिहारी वाजपेयी के व्यक्तिगत जीवन के साथ ही उनके राजनैतिक
जीवन के बारे में भी बताते हैं।
रजत शर्मा
के साथ
रजत शर्मा- अटल जी, आपके नाम में विरोधांतर है। जो अटल है वह बिहारी कैसे हो
सकता है?
अटल बिहारी वाजपेयी- मैं अटल भी हूँ और बिहारी भी हूँ। जहाँ
अटल होने की आवश्यकता है वहाँ अटल हूँ और जहाँ बिहारी होने की जरूरत है वहाँ बिहारी भी हूँ।
मुझे दोनों में कोई अंतर्विरोध दिखाई नहीं देता।
रजत शर्मा- अपने जब राजनीतिक करियर शुरू किया था तब आप
कम्युनिस्ट भी थे और आर्यसमाजी भी थे?
अटल बिहारी वाजपेयी- एक बालक के नाते मैं आर्यकुमार सभा का
सदस्य बना। इसके बाद मैं आरएसएस के संपर्क में आया। कम्युनिज्म को मैंने एक
विचारधारा के रूप में पढ़ा। मैं कभी कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य नहीं रहा लेकिन
छात्र आंदोलन में मेरी हमेशा रुचि थी और कम्युनिस्ट एक ऐसी पार्टी थी जो छात्रों
को संगठित करके आगे बढ़ती थी। मैं उनके संपर्क में आया और कॉलेज की छात्र राजनीति
में भाग लिया। एक साथ सत्यार्थ और कार्ल मार्क्स पढ़ा जा सकता है, दोनों में कोई अंतर्विरोध नहीं है।
रजत शर्मा- कवि
होकर आप कविता लिखते हैं फिर दूसरी तरफ राजनीति के कठोर रास्ते पर आप चलते हैं?
अटल बिहारी वाजपेयी- मैं इसे अंतर्विरोध नहीं मानता हूँ।
बचपन से मैंने कविता लिखना आरंभ किया। मैं पत्रकार बनाना चाहता था। लेकिन जब
श्रीनगर के सरकारी अस्पताल में नज़रबंदी की अवस्था में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी का निधन हो गया तो उनके
अधूरे काम को पूरा करने के लिए मैंने राजनीति के क्षेत्र में कूदने का फैसला किया.
राजनीति के रेगिस्तान में मेरी कविता की धारा सूख गयी है। कभी कभी मैं कविता लिखने
की कोशिश करता हूँ लेकिन सच्चाई यह है कि मेरा कवि मेरा साथ छोड़ गया है और मैं
कोरी राजनीति का नेता बनकर रह गया हूँ।
मैं उस दुनिया में लौटना चाहता हूँ लेकिन स्थिति वही है कि व्यक्ति कंबल
छोडऩा चाहता है लेकिन कंबल व्यक्ति को नहीं छोड़ता है। इस समय तो राजनीति को छोड़ा
नहीं जा सकता लेकिन राजनीति मेरे मन का पहला विषय नहीं है। राजनीति में जो कुछ हो
रहा है, मेरे मन में कभी-कभी
पीड़ा पैदा होता है। लेकिन इस समय छोड़कर जाना पलायन माना जाएगा और मैं पलायन का
दोषी नहीं बनना चाहता हूँ। कर्तव्य की पुकार है लड़ूँगा और संघर्ष करूँगा।
राजीव शुक्ला के साथ
राजीव शुक्ला- एक
भ्रम आप के बारे में ज़रूर है। आप उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं या मध्य प्रदेश
के रहने वाले हैं, कभी आप ग्वालियर से चुनाव लड़ते हैं, कभी लखनऊ से लड़ते हैं?
अटल बिहारी वाजपेयी- हमारा पैतृक गाँव उत्तर प्रदेश में है।
लेकिन पिताजी अंग्रेजी पढ़ऩे के लिए गाँव छोड़कर
आगरा चले गए थे, फिर उन्हें ग्वालियर में नौकरी मिल गई। मेरा जन्म ग्वालियर में हुआ था। इसलिए
मैं उत्तर प्रदेश का भी हूँ और मध्य प्रदेश का भी हूँ।
राजीव शुक्ला- तो आपके पिताजी सिंधिया दरबार में नौकरी करते
थे? तो उसी सिंधिया
परिवार के बेटे के खिलाफ आपने चुनाव लड़ा?
अटल बिहारी बाजपेयी- जी हाँ, राज्य की शिक्षा सेवा में थे और बहुत पराक्रमी पुरुष थे। बेटे को मैंने भारतीय
जनसंघ में शामिल भी करवाया था। बेटा पहले हमारे साथ था, माँ को छोड़कर बेटा चला गया तो बेटे के खिलाफ चुनाव
लड़ऩा जरूरी हो गया।
राजीव शुक्ला- आप अकेला महसूस करते हैं इसीलिए लिखते हैं?
अटल बिहारी वाजपेयी- हाँ, अकेला महसूस तो करता हूँ, भीड़ में भी अकेला महसूस करता हूँ।
राजीव शुक्ला- शादी क्यों नहीं की आपने?
अटल बिहारी वाजपेयी-
घटनाचक्र ऐसा ऐसा चलता गया कि मैं उसमें उलझता गया और विवाह का मुहूर्त
नहीं निकल पाया।
राजीव शुक्ला- अफेयर भी कभी नहीं हुआ ज़िदगी में?
अटल बिहारी वाजपेयी- अफेयर की चर्चा की नहीं जाती है
सार्वजनिक रूप से।
तवलीन सिंह के साथ
अटल बिहारी वाजपेयी- मैं जब लोकसभा के लिए पहली बार चुना
गया था तो उस समय अशोक होटल बनना था। लोकसभा में एक दिन बहस होने लगी और नेहरू जी
मौजूद थे। होटल बनाया जाए या न बनाया जाए, घाटे में रहेगा या फायदे में रहेगा। मैं खड़ा हो गया और
बोला, 'सरकार का काम होटल
बनाना नहीं, अस्पताल बनाना है।‘नेहरू जी नाराज़ हो गए और बोले यह नए मेंबर आए हैं, बातें समझते तो हैं नहीं। नेहरू जी बोले, हम होटल भी बनाएँगे और होटल से हुए फायदे से अस्पताल भी बनाएँगे लेकिन होटल
नुकसान में चल रहा है।’
तवलीन सिंह- आप क्या-क्या खाना बनाना पसंद करते हैं?
अटल बिहारी वाजपेयी- मैं खाना अच्छा बनाता हूँ, मैं खिचड़ी अच्छी बनाता हूँ,
हलवा अच्छा बनाता हूँ,
खीर अच्छी बनाता हूँ। वक्त
निकालकर खाना बनाता हूँ। इसके सिवा घूमता हूँ और शास्त्रीय संगीत भी सुनता हूँ,
नए संगीत में भी रुचि रखता
हूँ।
डॉ. प्रणय रॉय के साथ
अटल बिहारी वाजपेयी- अयोध्या में जो कुछ हुआ वह
दुर्भाग्यपूर्ण है। यह नहीं होना चाहिए था। हम उसे रोकना चाहते थे लेकिन रोक नहीं
पाए। हम उसके लिए माफी माँगते हैं।
डॉ. प्रणय रॉय- आप क्यों सफल नहीं हुए, क्या हुआ?
अटल बिहारी वाजपेयी- क्योंकि कुछ कारसेवक हमारे कंट्रोल से बहार
निकल गए। वह कुछ ऐसा कर गए जो नहीं करना चाहिए था। पूरी तरह साफ़ आश्वासन दिया गया था कि
किसी भी हालत में विवादित स्थल पर कोई भी तोडफ़ोड़ नहीं होने दी जाएगी ,लेकिन इस आश्वासन का पालन नहीं किया गया। इसलिए हम माफ़ी माँगते हैं।
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