सीधे सरल सच्चे इंसान
वाणी के धनी पूर्व
प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से जुड़े कुछ बेहद दिलचस्प किस्से हैं जो बाजपेयी
जी के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को दर्शाते हैं। गंभीर से गंभीर परिस्थिति में भी वे
शांत बने रहते थे।
और वे दोबारा सो गए...
- अटल बिहारी वाजपेयी की जीवनी 'हार नहीं मानूँगा’ में पत्रकार विजय त्रिवेदी एक किस्सा बयान करते
हैं- एक बार हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी सभा को संबोधित करने के लिए एक छोटे
विमान से वाजपेयी धर्मशाला जा रहे थे। उनके साथ वरिष्ठ पत्रकार और राज्यसभा सांसद
रहे बलबीर पुंज भी सफर कर रहे थे। यात्रा के दौरान वाजपेयी सो गए। इसी बीच विमान
का सह-पायलट कॉकपिट से बाहर आया और उसने पुंज से पूछा कि क्या वे इससे पहले कभी
धर्मशाला आए हैं? पुंज द्वारा ऐसा पूछने की वजह पूछे जाने पर सह-पायलट ने कहा कि एयर ट्रैफिक
कंट्रोल से हमारा संबंध टूट गया है और हमें धर्मशाला मिल नहीं रहा है। विमान
चालकों के पास बहुत पुराना नक्शा था और नीचे जो दिख रहा था, वह उस नक्शे से मेल नहीं खा रहा था। इतने में
बाजपेयी जी की आँख खुली। जब पुंज ने उन्हें सारी बात बताई तो अटल जी बोले 'अगर जागते हुए क्रैश होगा तो
बहुत तकलीफ होगी इसलिए फिर से सो जाता हूँ।‘यह कहकर वे दोबारा
सो गए। बाद में इस विमान का संपर्क इंडियन एयरलाइंस के एक विमान से हुआ और उसकी
मदद से उसे धर्मशाला की जगह कुल्लू में सुरक्षित उतार लिया गया।
फटा हुआ कुर्ता
दूसरा दिलचस्प किस्सा उन दिनों का है जब अटल बिहारी बाजपेयी
राजनीति की शुरुआत कर ही रहे थे। 1953 में उन्हें मुम्बई में जनसंघ की एक जनसभा को संबोधित करना था। जब वे
सभा के लिए तैयार हुए तो देखा कि जो कुर्ता उन्होंने पहना है ,वह आस्तीन के पास से फटा हुआ था। उन्होंने अपना दूसरा कुर्ता निकाला। लेकिन वह
भी गले के पास फटा हुआ निकला। वाजपेयी बस दो ही कुर्ते लेकर बंबई गए थे और वे
दोनों के दोनों फटे हुए थे। अब कोई रास्ता नहीं था;लेकिन अटल जी की
त्वरित बुद्धि ने वहाँ काम किया उन्होंने फटे हुए कुर्तों में से एक के ऊपर जैकेट
पहन ली। इसके बाद सभा में फटे कुर्ते के बारे में किसी को पता तक नहीं चला।
नेहरू की तस्वीर फिर से लगाने का आदेश
आपातकाल के बाद 1977 में बनी मोरारजी देसाई की
सरकार में अटल बिहारी बाजपेयी विदेश मंत्री बने थे। विदेश मंत्री बनने के बाद जब
वे पहले दिन विदेश मंत्रालय पहुँचे तो उन्होंने देखा कि दफ्तर की एक दीवार से कुछ
गायब है। बाजपेयी ने अपने सचिव से कहा कि यहाँ तो पंडित जवाहरलाल नेहरू की तस्वीर
लगी होती थी। पहले भी कई बार मैं इस दफ्तर में आया हूँ, अब कहाँ गई? पता चला कि जब गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो विदेश
मंत्रालय के अफसरों को लगा कि जनसंघ से आने वाले नए विदेश मंत्री को नेहरू की
तस्वीर अच्छी नहीं लगेगी, इसलिए उन्हें खुश करने के लिए अधिकारियों ने नेहरू की तस्वीर हटा दी थी। इसके
बाद बाजपेयी ने विदेश मंत्रालय के अफसरों को जितनी जल्दी हो सके उस तस्वीर को फिर
से लगाने का आदेश दिया।
मोरारजी सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर बाजपेयी
पाकिस्तान में भी बेहद लोकप्रिय थे। मोरारजी सरकार बहुत दिनों तक चल न सकी। सरकार
गिरने के कुछ दिनों बाद की बात है- बाजपेयी जी अपने घर पर चाय की चुस्कियाँ ले रहे
थे। तभी पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल सत्तार उनके यहाँ एक तोहफा लेकर पहुँचे।
सत्तार ने बाजपेयी जी को कहा कि आप तो पाकिस्तान में इतने लोकप्रिय हैं कि वहाँ से
चुनाव लड़ें तो दूसरों की जमानत जब्त हो जाएगी। सत्तार ने बाजपेयी को बताया कि यह
उपहार जनरल जिया उल हक ने उनके लिए भेजा है। उस पैकेट में एक पठानी सूट था।
बाजपेयी पैकेट लेकर अंदर गए और कुछ ही देर में पठानी सूट पहनकर बाहर निकले और
सत्तार को कहा कि जनरल साहब को बता देना कि मैंने उनका तोहफा पहन लिया है।
ग्वालियर में उन्हें गाड़ी की जरूरत नहीं
पड़ती...
ग्वालियर से
बाजपेयी का बड़ा गहरा नाता रहा है। बाजपेयी अक्सर दिल्ली से ग्वालियर बिना किसी को
कुछ बताए चले जाते थे और वहाँ की सड़कों पर यहाँ-वहाँ घूमते रहते थे। यह बात उन
दिनों की है जब राजमाता सिंधिया बाजपेयी की पार्टी में आई ही थीं। एक दिन उन्हें
खबर मिली कि अटल जी छाता लगाए ग्वालियर के पाटनकर बाजार से गुजर रहे हैं। यह सुनते
ही राजमाता सिंधिया ने एक स्थानीय नेता को फोन लगाकर कहा कि कैसी पार्टी है आपकी,
पार्टी के सबसे बड़े नेता
सड़क पर पैदल घूम रहे हैं, क्या उनके लिए गाड़ी का इंतजाम नहीं हो सकता? थोड़ी देर बाद राजमाता सिंधिया के पास उस नेता का
फोन आया। उसने उन्हें बताया कि बाजपेयी जी ने गाड़ी सधन्यवाद वापस भेज दी है और
कहा है कि ग्वालियर में उन्हें गाड़ी की जरूरत नहीं पड़ती।
इंदिरा को व्यंग्य में दिया जवाब
1971 में एक सभा में उन्होंने कहा था कि इंदिरा गाँधी
आज कल मेरी तुलना हिटलर से करती हैं। एक दिन उन्होंने इंदिराजी से पूछा कि वो उनकी
तुलना हिटलर से क्यों करती हैं।
तो इंदिरा गाँधी ने जवाब दिया कि आप बाँह उठा उठाकर सभाओं
में बोलते हैं, इसलिए मैं आपकी तुलना नाजी से करती हूँ।
इस पर वाजपेयी जी ने टिप्पणी की और लोगों ने खूब ठहाका
लगाया। उन्होंने कहा कि तो क्या मैं पैर उठा उठाकर भाषण दूँ।
ये उनके व्यंग्य का तरीका था। इस तरह के व्यंग्य उनके भाषण
को रोचक बनाता था। उनके भाषण में रोचकता के साथ-साथ गंभीर मुद्दे होते थे, चिंताएँ होती थी, जो किसी भी राष्ट्रीय नेता
के भाषण में होना चाहिए।
1957 की बात है। दूसरी लोकसभा में भारतीय जन संघ के सिर्फ़
चार सांसद थे। इन सासंदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन से कराया
गया।
तब राष्ट्रपति ने हैरानी व्यक्त करते हुए कहा कि वो किसी
भारतीय जनसंघ नाम की पार्टी को नहीं जानते। अटल बिहारी वाजपेयी उन चार सांसदों में
से एक थे।
इस घटना को याद करते हुए कहते
उन्होंने कहा था कि आज भारतीय जनता पार्टी के सबसे ज़्यादा सांसद हैं और शायद ही
ऐसा कोई होगा जिसने बीजेपी का नाम न सुना हो।
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