मैं बैठी हूँ सात
समंदर पार...
- कृष्णा वर्मा
समंदर पार...
- कृष्णा वर्मा
काव्य संग्रह- ज़रा
रोशनी मैं लाऊँ -डॉ. भावना कुँअर, प्रकाशक- अयन प्रकाशन, 1/20 महरौली नई दिल्ली -110020, मूल्य:, पृष्ठ:132, वर्ष:2018
बहुमुखी रचना सम्पन्न
डॉ. भावना कुँअर की जापानी विधाओं में कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ’ज़रा रोशनी मैं लाऊँ’ उनका पहला कविता संकलन है।
सरल भाषा में रची काव्य रचनाएँ अपने आसपास से गहरा सरोकार रखती हैं। दुख-सुख, संघर्ष, रिश्ते-नाते, यादों की परछाइयाँ, या निजी जीवन इन सबके गहरे अनुभवों से गुज़र कर उन्होंने अपने हर अहसास को शब्दों के माध्यम से बखूबी इस
संग्रह की 66
छोटी बड़ी कविताओं में प्रस्तुत किया है।
पुरुष के कपट का दंश
सहता मन कैसे पीड़ा में छटपटाता है ,जब उसके सपने पूर्ण होने से पहले कुचल दिए जाते हैं। भावना जी ने इस पीड़ा को अपनी
कविता ’बड़े-बड़े
सपने’ में
कुछ यूँ अभिव्यक्त किया है-
बड़े-बड़े सपने, / जो अचानक / दिखाए थे तुमने
वो सब सपने / दिल की
दहलीज पर आकर
खुशी में बरसे /
आँसुओं की झड़ी में / फिसल कर रह गए।
चिड़िया, मछली तथा तितली आदि के
माध्यम से कवयित्री ने मानव मन के दुख-सुख
को उकेरा है। दीन दुखियों की तड़प को महसूस करती, उनकी घुटन को रेखांकित करती उनकी रचनाएँ ‘दुखों की बस्ती’, ‘मासूम बच्चे’ बहुत भावपूर्ण हैं।
माँ पर लिखीं आपकी
कविताओं ने मन को कहीं गहरे छू लिया। प्रवासी बेटी की मजबूरी, उसका दुख माँ-बेटी के अनुपम
रिश्ते, सखी-सहेली
की भाँति पल-पल संग बिताती जीवन और अचानक ब्याह कर साथ छूटने की वेदना को सहन करती
बेटी, माँ
को मिलने को छटपटा उठता है उसका मन। माँ के चौके की सुगंध को याद करती कवयित्री
कहती है-
मैं बैठी हूँ सात
समंदर पार / ढूँढती हूँ उस खुशबू को
जो दब गई है कभी धूल
में।
सूनी कलाई, रिश्ते-नाते में जीवन में
बदलती भूमिकाओं में संबंधों का धागा कैसे चटकता जाता है। जीवन में बनने वाले मतलबी रिश्तों का कटु सत्य मर्म को छूने वाला
हैं-
रिश्तों की बात करने
के बाद एक ऐसा कोण ,जहाँ छिपी होती है निजता; जिसमें रागात्मक तंत्र के गुम होने की
टीस है,
अभिलाषाओं का हाथ छूट
जाने का दर्द कवयित्री ने इन पंक्तियों में व्यक्त किया है-
दुनिया ने जब भी दर्द
दिया / तुमने सँभाला मुझे
तोहफ़ा, दर्द, प्यार, समेटे हैं अब सिलवटें, स्याह धब्बे आदि छोटी-छोटी
कविताओं में सामान्य बोल-चाल की भाषा में जो आहत अनुभूतियों को अभिव्यक्त किया है, वह जिए- भोगे अतीत की
खरोंचें और भावों की तिरछी रेखाएँ हैं।
कवयित्री की रचनाओं में सहज ही भावों के समूचे रंग छलछलाए हैं।
काव्य संग्रह- घुँघरी
-डा० कविता भट्ट, प्रकाशक- अयन प्रकाशन, 1/20 महरौली, नई दिल्ली -110020, मूल्य: 260 रूपये, पृष्ठ: 128, वर्ष: 2018
डा० कविता भट्ट का
नवप्रकाशित काव्य संग्रह मनमोहक कलेवर में विविध रंगों से सजा 48 कविताओं तथा काव्य की अन्य
विधाओं का यह संकलन कवयित्री के अनुभवों की विविधता से संपन्न है। पहाड़ी जीवन के
पोर-पोर से वाकिफ़ कविता जी ने विषम पहाड़ी जीवन, उसके दुख, उल्लास,
जीने की विवशता स्त्री मन में बहते दर्द की भावधारा को बड़े
सुंदर ढ़ंग से व्यक्त किया है।
’पहाड़ी नार’, ’घुँघरी’, ’कौन -सी चर्चा चलती
है’,
’काँच की चूड़ियाँ’, ’प्रिय
यदि तुम पास होते’ में नारी मन में करवट लेती धाराएँ,
अंतर्मन की पीड़ा का
सुंदर चित्रण किया है-
'चम्पा की कली', सामाजिक विडंबनाओं को बखानती रचना। 'फूलदेई' में कवयित्री वर्तमान की
आँधी में लुप्त होते लोकपर्व, फूलों -सा मुरझाता बचपन, संस्कृति और संस्कारों को समाप्ति की ओर जाते देख कर व्यथित है।
'बंद दरवाज़ा' में गाँव में होते बदलाव, पलायन का दुख दिखता है। बंद दरवाज़ों और खिड़कियों की गहन उदासियों के बीच
उजालों की इंतज़ार में कहीं एक आस का जुगनू चमकता दिखाई देता है। इस कविता में
दरवाज़ों और खिड़कियों का बोलना यह सिद्ध करता है कि मन में किसी शुभ की आशा
अभी जीवित है।
'बुराँस की नई कली'में वसंत आगमन की मोहक प्राकृतिक छटा। इस कविता की गेयता
में एक गति है, जो थिरकने के लिए बाध्य करती
है-
बुराँस की नई कली
किवाड़ खोल कर चली
सखी बसंत आ गया, दिशा-दिगंत छा गया
’मैतियों के आर्से-रुटाने’ कविता में इतनी ख़ूबसूरती से कवयित्री ने हिंदी के
संग लोकभाषा को पिरोया है कि आंचलिक शब्दों के बावजूद इनके भाव अपने संग बहा ले
गए।
संग्रह में कविताओं
के साथ-साथ क्षणिकाएँ, मुक्तक, दोहे, हाइकु, ताँका, चोका मन को सतम्भित करती एक
से बढ़ कर एक सुंदर रचनाएँ। काव्य की इन विधाओं में इनकी रचनात्मक ऊर्जा देखते बनती
है।
क्षणिका-‘प्रणय निवेदन’ देखिए -
जिस उम्मीद से /
किसान देखता है /आकाश की ओर
उसी उम्मीद-सा है, प्रिय!/तुम्हारा
प्रणय-निवेदन।
गहन अनुभूति एवं
दिल को छूने वाली भाषा में एक ताँका देखिए--
कभी पसारो / बाहें
नभ-सी तुम /मुझे भर लो /आलिंगन में प्रिय
अवसाद हर लो।
कविता भट्ट के हाइकु
के तेवर कुछ अलग ही अनुभव से उत्पन्न हैं ।
भाव और भाषा नूतनता लिये हुए कुछ
उदाहरण देखिए -1-तुम
प्रणव / मैं श्वासों की लय हूँ / तुम्हें ही जपूँ।
2-पाहन हूँ मैं / तुम हीरा कहते / प्रेम तुम्हारा।
3-तुम हो शिल्पी / प्रतिमा बना डाली / मैं पत्थर थी।
नीरव घाटी, चाय-चुस्की सा।, पथराई आँखें, मैं हूँ उद्गीत, तुम प्रणव, तुम हो शिल्पी, जैसे प्रयोग अर्थ में नई
ऊर्जा भर देते हैं। उत्कृष्ट सृजन के लिए
बधाई एवं शुभकामनाएँ।
No comments:
Post a Comment