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Sep 9, 2018

श्रद्धांजलि….

श्रद्धांजलि…. 
- डॉ. रत्ना वर्मा
16 अगस्त 2018 को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का 93 साल की उम्र में निधन हो गया। उनके जाने से पूरा देश शोक में डूब गया। अटल जी हमारे देश के ऐसे अनुपम नेता थे कि लोग उन्हें किसी पार्टी के नेता प्रधानमंत्री या सांसद के रूप में नहीं; बल्कि उनके सम्पूर्ण प्रभावशाली व्यक्तित्व के साथ याद करते हैं। चाहे उनका कवि रूप हो चाहे उनके बोलने की अद्भूत क्षमता हो, अथवा काम करने की उनकी अनोखी शैली। वे हर मामले में अनूठे थे।
उनकी वाक्पटुता और भाषण देने का अंदाज तो जग जाहिर है, यही वजह है कि चाहे वे सत्ता में रहे हों या विपक्ष में; लेकिन जब बोलना शुरू करते थे ;तो सभा में सन्नाटा छा जाता था। उन्हें शब्दों का जादूगर कहा जाता था। उनके शब्दों में ऐसी चुम्बकीय शक्ति होती थी कि सभी उन्हें शांतिपूर्वक सुनते थे। विरोधी भी उनकी वाक्पटुता व तर्कों के कायल थे। 1994 में केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने के लिए प्रतिनिधिमंडल की बागडोर अटल जी हाथों सौंपी थी। किसी सरकार का एक विपक्षी नेता पर इस हद तक भरोसे को पूरी दुनिया ने तब आश्चर्य के साथ देखा था।
इसी प्रकार हिन्दी के प्रति उनका प्रेम न सिर्फ भारत के लोग जानते हैं, बल्कि पूरी दुनिया को उन्होंने बता दिया था अपनी मातृभाषा से बढ़कर कुछ भी नहीं है। विश्व स्तर पर हिन्दी को प्रतिष्ठित करने का उनका प्रयास किसी से छुपा नहीं है। संयुक्त राष्ट्रसंघ में हिन्दी में दिया गया उनका भाषण तो भारत के लिए मिसाल ही बन गया, यह पहला मौका था जब इतने बड़े अतंराष्ट्रीय मंच पर हिन्दी की गूंज सुनने को मिली थी। तब दुनिया भर के प्रतिनिधियों ने खड़े होकर अटल जी के लिए तालियाँ बजाई। वसुधैव कुटुंबकम्का संदेश देते अपने भाषण में उन्होंने मूलभूत मानव अधिकारों के साथ- साथ रंगभेद जैसे गंभीर मुद्दों का जिक्र किया था।
अटल जी के सम्पूर्ण जीवन पर नजर डालें, तो देश के प्रति उनका समर्पण उनके द्वारा किए गए कुछ कामों से स्पष्ट उजागर हो जाता है। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने बहुत कम समय में देश को ऐसी- ऐसी सौगाते दी हैं, जो दशकों तक सत्ता में रहते हुए लोग नहीं कर पाए। उनके द्वारा शुरू की गई कुछ ऐसी योजनाएँ थीं जिसने देश की तस्वीर ही बदल दी।
स्वर्णिम चतुर्भुज योजना और प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना दो ऐसी ही योजना थीं। देश के बड़े शहरों को सड़क मार्ग से जोडऩे की शुरूआत अटल जी के शासनकाल के दौरान हुई। 5846 किमी. की 'स्वर्णिम चतुर्भुज योजना’  को तब विश्व के सबसे लम्बे राजमार्गों वाली परियोजना माना गया था। दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई व मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया। उन्हीं के शासनकाल के दौरान 'प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना’  की शुरूआत हुई थी। इसी योजना की बदौलत आज लाखों गाँव सड़कों से जुड़ पाए हैं। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य था, ग्रामीण इलाकों में 500 या इससे अधिक आबादी वाले (पहाड़ी और रेगिस्तानी क्षेत्रों में 250 लोगों की आबादी वाले गाँव) सड़क-संपर्क से वंचित गाँवों को मुख्य सड़कों से जोडऩा है।
उन्होंने डरना नहीं सीखा था उनके 'अटलइरादों का एक उदाहरण था पोखरण परमाणु परीक्षण- वे अटल बिहारी बाजपेयी ही थे ,जिनके प्रधानमंत्री रहते हुए भारत ने 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था। तब उन्होंने कहा  था कि- भारत मजबूत होगा तभी आगे जा सकता है, कोई उसे बेवजह तंग करने का साहस न कर सके इसलिए ऐसा कर दिखाना जरूरी है। भारत के इस कदम से पूरा विश्व आश्चर्यचकित था। इस परीक्षण के बाद दुनिया के शक्तिशाली देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए। अमेरिका जैसे देश इसलिए और नाराज थे, क्योंकि भारत ने उनके विकसित सूचना तंत्र को ध्वस्त करते हुए अपना सफल परीक्षण कर लिया था।
बाजपेयी जी के शासनकाल में ही भारत में टेलीकॉम क्रांति की शुरूआत हुई। टेलीकॉम से संबंधित कोर्ट के मामलों को तेजी से निपटाया गया और ट्राई की सिफारिशें लागू की गईं। स्पैक्ट्रम का आवंटन इतनी तेजी से हुआ कि मोबाइल के क्षेत्र में क्रांति की शुरूआत हुई।
कारगिल युद्ध में भारत की जीत का पूरा श्रेय अटल बिहारी बाजपेयी को ही जाता है। जब पाकिस्तानी घुसपैठियों ने 1999 में कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर भारत के बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, तो भारतीय सेना और वायुसेना ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाली जगहों पर हमला किया और एक बार फिर पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी थी। इसके बाद भी वे अटल बिहारी बाजपेयी ही थे, जिन्होंने भारत पाकिस्तान के रिश्तों को सुधारने की पहल की, दिल्ली- लाहौर बस सेवा का शुभारंभ भी अटल जी के प्रयासों का नतीजा है।
ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं, जो बाजपेयी जी के ऊँचे कद को और ऊँचा करते हैंयही वजह है कि हर भारतीय को उनपर गर्व है। 
निसंदेह अटल जी का जाना राष्ट्रीय क्षति है। हमारे पड़ोसी देशों ने भी उनके निधन पर जैसा शोक व्यक्त किया, वैसा संभवत: आज तक किसी भी पूर्व प्रधानमंत्री के लिए नहीं किया गया है। उनके लिए यह शोक मात्र एक पूर्व प्रधानमंत्री के लिए नहीं था, बल्कि एक ऐसे उदारवादी विलक्षण व्यक्ति के लिए था, जो अपनी सोच अपने खुले विचार और अपने विलक्षण व्यक्तित्व के कारण जाने जाते रहे हैं। 
                               उन्हें शत शत नमन...

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