बनने की कला
- डॉ. अर्पिता अग्रवाल
किसी
गाँव में एक गरीब ब्राह्मणी अपनी दो बेटियों के साथ रहती थी। ब्राह्मणी लोगों के
घर खाना पकाती थी और जो कुछ मिलता था उससे ही घर का गुजारा चलता था। दोनों बहनों
ने सोचा माँ कितनी मेहनत करती है, हमें भी कुछ करना चाहिए। लेकिन हम क्या
करें? इसी
उधेड़बुन में वह अपने घर के आँगन में बैठी थीं कि आसमान से एक कौआ उड़ता हुआ आया
और उनके आँगन के पेड़ पर बैठ गया। उस की चोंच में एक पका हुआ फल था। फल को देखकर
बहनों की के मुँह में पानी भर आया। संयोग
से कौए की चोंच से फल नीचे गिर गया। दोनों बहनें उसे उठाकर खा गयीं। कैसा मीठा
स्वाद और मनमोहक सुगंध थी। अद्भुत! बहनों ने कौए से पूछा, 'ऐसा फल कहाँ मिला?’ कौवे ने उनसे अपने पीछे आने को कहा। कौआ आगे-आगे उड़ चला। बहनें पीछे- पीछे चलती रहीं। गाँव से दूर जंगल के मध्य में
एक अनोखा पेड़ खड़ा था, वैसे ही अद्भुत फलों से लदा हुआ। बहनों ने खूब सारे फल
तोड़े और घर की ओर चल दी। घर पहुँचकर उन्होंने फलों
को एक सुंदर सी टोकरी में सजाया और मंदिर के बाहर बैठ गईं। उस दिन फल बेचकर
उन्होंने पैसे कमाए। लोगों ने ऐसे फल कभी नहीं खाए थे अत: उन
के फलों की माँग बढऩे लगी। इस तरह प्रतिदिन वह उस पेड़ से फल लातीं और उसे बेचकर पैसे कमातीं। अब उनके घर का गुजारा आराम से चलने
लगा। दोनों बहनें अब अधिक प्रसन्न रहने लगी थी।
एक
दिन बड़ी बहन ने छोटी बहन से कहा, 'सुनो, मैं पेड़ बनने की कला जानती हूँ। हमें
हर रोज जंगल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मुझे यह मंत्र एक जादूगरनी ने सिखाया था, लेकिन
मैं उसे भूल चुकी थी। आज अचानक याद
आ गया। कल सुबह अंधेरे में तुम कुएँ से दो घड़े पानी लाना, मैं आंगन में ध्यान लगाकर बैठूँगी। याद रहे
घड़े के पानी में तुम्हारी उँगलियाँ ना डूबें। जब मैं मंत्र पढूँ तो तुम एक घड़े
का पानी मुझ पर डाल देना। मैं पेड़ बन जाऊँगी। तुम उस
पर लगे फल ध्यान से तोडऩा कोई
पत्ती न टूटे ना टहनियाँ उखड़ें। जब तुम फल तोड़ लो, तब दूसरे घड़े का पानी मुझ पर डालना, मैं वापस अपने रूप में आ जाऊँगी।‘
अगले दिन सुबह अँधेरे में उसने अपनी छोटी बहन
को दो घड़े पानी लाने को कहा। छोटी बहन ने बड़ी बहन के कहे अनुसार किया पहले घड़े
का पानी डालने से बड़ी बहन फलों का पेड़ बन गई, छोटी बहन ने सारे फल तोड़ लिये और दूसरे घड़े
का पानी डालते ही वह अपने असली रूप में आ गई और अपने बालों से पानी झटककर उठ खड़ी
हुई। सुबह दिन निकलने पर दोनों बहनें फलों को बेचने चली गयीं। प्रतिदिन फल बेचने
से धीरे-धीरे उनके पास बहुत धन एकत्र हो गया।
ब्राह्मणी ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह बहुत धूमधाम से कर दिया। दोनों बेटियाँ खुशी- खुशी अपना जीवन व्यतीत करती रहीं।
(हमारी लोक कथाओं में हमें कोई ना कोई जीवन
मूल्य का संदेश मिलता है। घड़े के पानी में उँगलियाँ न डुबोना स्वास्थ्य की दृष्टि
से लाभदायक है। लड़की का पेड़ बन जाना दर्शाता है कि पेड़ हमारे बच्चों की तरह
महत्त्वपूर्ण होते हैं। फल बेचकर अमीर बनना यानि हमारे पेड़ हमारी आजीविका का साधन
हो सकते। बेवजह पत्तियाँ, टहानियाँ न तोडऩे की शिक्षा भी मिलती है। साथ
ही यह बात पता चलती है कि पक्षियों द्वारा फलों का बीज इधर- गिराने से ही फलों के पेड़ों का दूर-दूर तक विस्तार होता है। आज अंधाधुंध पेड़
काटने से पक्षियों की जातियाँ लुप्त हो रही है
जिसके कारण मानव अनेकों समस्याओं से जूझ रहा है। फलों के पेड़ कम हो रहे हैं। धरती
का तापमान बढ़ रहा है। जहाँ एक समय बाग हुआ करते थे वहाँ कंक्रीट की बहुमंजिला
इमारतें हैं। यदि हम खुशहाल रहना चाहते हैं तो हमें अपने पेड़-पौधों
का संरक्षण करना होगा।)
सम्पर्कः 'काकली भवन', 120B/2, साकेत, मेरठ- 250003, मो. 9410029500,
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प्रेरक लोककथा
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