अहमदाबाद अब विश्व धरोहर शहर
- जाहिद खान
किसी
भी देश की पहचान उसकी संस्कृति और सांस्कृतिक, प्राकृतिक
व ऐतिहासिक धरोहरों से होती है जो उसे दूसरे देशों से अलग दिखलाती हैं। हमारे देश
में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक ऐसी सांस्कृतिक, प्राकृतिक
और ऐतिहासिक छटाएँ बिखरी पड़ी हैं कि विदेशी पर्यटक उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो जाएँ।
प्राचीन स्मारक,
मूर्ति शिल्प, पेंटिंग, शिलालेख, प्राचीन
गुफाएँ,
वास्तुशिल्प, ऐतिहासिक
इमारतें,
राष्ट्रीय उद्यान, प्राचीन
मंदिर,
अछूते वन, पहाड़, विशाल
रेगिस्तान,
खूबसूरत समुद्र तट, शांत
द्वीप समूह और भव्य किले। यह धरोहर सचमुच बेमिसाल है।
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अहमदाबाद
शहर को विश्व धरोहर की फेहरिस्त में शामिल करने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें
बीते सात साल से लगातार कोशिश कर रहे थे। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद को वर्ल्ड
हैरिटेज सिटी का दर्जा प्रदान करने के लिए 31 मार्च, 2011 में
इस शहर का विस्तृत विवरण तैयार कर एक प्रस्ताव विश्व विरासत केन्द्र को भेजा था।
प्रस्ताव में अहमदाबाद के अभूतपूर्व सार्वभौम मूल्यों का उल्लेख करते हुए पिछली कई
सदियों से इस शहर की अनोखी बसाहट, आर्थिक, वाणिज्यिक
और सांस्कृतिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ विभिन्न समुदायों के लोगों के बीच
सहअस्तित्व की भावना का खास तौर से उल्लेख था। यही नहीं प्रस्ताव में अहमदाबाद के
परकोटा क्षेत्र में बने ओटले (चबूतरे), पोल और उनकी गलियाँ, पोलों
में रहने वाले लोगों के रहन-सहन को भी शामिल
किया गया था। लकड़ी व स्थानीय ईंटों से तैयार किए गए पोल के मकान अपनी बनावट और
नक्काशी के लिए अनूठी पहचान रखते हैं। इन मकानों के आँगन की खासियत है कि ये
वातावरण को नियंत्रित करने में मददगार साबित होते हैं। पोलों की गलियों का आपसी
जुड़ाव भी अनूठा है।
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अहमदाबाद
शहर की स्थापना तत्कालीन मुगल शासक अहमद शाह अब्दाली ने आज से छह सदी पहले 1411 में
की थी। ज़ाहिर है कि उन्हीं के नाम पर बाद में इस शहर का नाम अहमदाबाद पड़ा।
अहमदाबाद
न सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थापत्य कला
के लिहाज़ से भी इसकी एक अलग अहमियत है। चारों ओर दीवारों से घिरे इस ऐतिहासिक शहर
में दस दरवाज़े हैं और 29 ऐतिहासिक महत्व के
स्मारक हैं,
जिनके संरक्षण की ज़िम्मेदारी भारतीय
पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) पर
है। देश के दीगर ऐतिहासिक शहरों की बनिस्बत इन स्मारकों के संरक्षण का काम यहाँ
बेहतरीन है। इस शहर के स्मारकों की नक्काशी व बनावट लाजवाब है। इनको देखकर अतीत का
पूरा परिदृश्य साकार हो जाता है। जामा मस्जिद, रानी
रूपमती की मस्जिद, झूलती मीनारें, हट्टी
सिंह का जैन मंदिर, शाही बाग पैलेस, कांकरिया
झील,
भद्र का किला, सीदी
सैयद की मस्जिद,
साबरमती आश्रम, लोथल, अदलज
की बाव,
मोढेरा का सूर्य मंदिर, तीन
दरवाज़ा,
सीदी बशीर मस्जिद, नल
सरोवर,
विजय विलास पैलेस आदि सांस्कृतिक
विविधता को प्रदर्शित करने वाले ये स्थल और स्मारक देशी-विदेशी
सैलानियों को अपनी खूबसूरती से अचंभित कर देते हैं।
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![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjSvdas90WKOU9i_9rZVwgMX82bc1Bh3t5RpZv6-GCQq7nec5Q6Eaes87K7wSaC3njFoeKWOcZQy7sGqWHiQP2zb-3XzN-PopNMUKe0n2z8LVL2N3t1MHGQ6KVdkg8ckrUwbnG_fC1YAEvR/s200/kankariya-lake-ahmedabad-edt.jpg)
अब
जबकि अहमदाबाद को विश्व धरोहर का दर्जा मिल गया है, तो
केंद्र व राज्य सरकार दोनों की ये सामूहिक ज़िम्मेदारी बनती है कि वे इस शहर के
ऐतिहासिक स्मारकों और पर्यटक स्थलों को और भी ज़्यादा बेहतर तरीके से सहेजने और
संवारने के लिए एक व्यापक कार्ययोजना बनाएँ ताकि ये अनमोल धरोहर हमारी आने वाली पीढ़ियों के
लिए भी सुरक्षित रहें। विश्व विरासत की सूची में शामिल होने के बाद, निश्चित
तौर पर ज़िम्मेदारियों में भी इजाफा होता है। ज़िम्मेदारियाँ न सिर्फ सरकार की बढ़ी
हैं,
बल्कि हर भारतीय नागरिक की यह
ज़िम्मेदारी बनती है कि वह अपनी इन अनमोल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजे।
(स्रोत
फीचर्स)
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