आवारा सड़क पे
-डॉ. जया 'नर्गिस’
नए दर्द के कपड़े पहने
फिरता है आवारा सड़क पे
भर-भर धूप का प्याला पीकर
गिरता है आवारा सड़क पे
शाम ढले जब पंछी लौटें
दिल उसका रोता है
तारों के पंडाल तले
बीज आँसू के बोता है
घर तो उसका कोई नही
सोता है आवारा सड़क पे
बादल का गमछा है गले में
भरी हवा से जेबें
मन मतवाला स्वप्न सँजोए
खाकर सौ-सौ चोटें
धूल की लहरों पर कश्ती -सा
बहता हूँ आवारा सड़क पे
जी नहीं करता
रात की थाली में
परोसा हुआ
पूरा चाँद
चखने का आज
जी नहीं करता
मन पहले ही
अघाया हुआ है
दिन भर तोड़ी
सूरज की गर्म रोटी से।
बनाएँ रंग ऐसा
आओ चुल्लू भर पानी में
घोलें
बादल और धूप
बनाएँ रंग ऐसा
हालात हो कैसे भी
जिंदगी को जो
न होने दे बदरंग।
स्वाद वाली चटनी
माँ पीसती थी
सिल बट्टे पर
लाल मिर्च और प्याज के साथ
अपना दर्द
बनाती थी इनसे
ऐसी स्वादिष्ट चटनी
कि आँखों में आँसू
और जीभ पर स्वाद के
फूल खिल उठते थे
एक साथ।
कोई जान नहीं पाता था
स्वाद में बेमिसाल क्यों है
माँ की बनाई चटनी
अगली बार
जब फिर होती फर्माइश
'माँ बनाओ न लाल चटनी’
तो माँ चुपचाप
अपना दर्द पीसने बैठ जाती
और बनाती
फिर एक बार
अनोखे स्वाद वाली चटनी।
आसान नहीं होता
जो पहचान बनाई
खून-पसीने से
कैसे रख दूँ उसे गिरवी
जो खुद्दारी
पाई सौगात कुदरत से
उस पर
धूल कैसे जमने दूँ
जीने का मतलब तलाशने के बाद
मरना आसान नहीं होता
और
कौन सा मसला है ऐसा
जिंदगी के पास
जिसका हल नहीं होता
लेखक के बारे में- शिक्षा-पीएचडी, विधा-कविता, ग़ज़ल, कहानी, उपन्यास, बाल साहित्य, व्यंग्य, अब तक 15 पुस्तकें प्रकाशित। सम्मान- हिन्दी सेवी सम्मान, प्रथम विपिन जोशी प्रतिभा सम्मान। सम्प्रति-नेशनल इन्स्टीट्यूट आफ टेक्निकल टीचर्स ट्रेनिंग एंड रिसर्च भोपाल में म्यूजिक प्रोफेशनल के पद पर कार्यरत। सम्पर्क: इलेक्ट्रानिक डिपार्टमेंट, N ITTTR, शामला हिल्स भोपाल- 462002, मो. 9827624212, email- jayanargis@gmail.com
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