-सुमित प्रताप सिंह
लोकप्रिय
लोकसेवक एवं युवा कवि शैलेन्द्र कुमार भाटिया जी का हाल ही में प्रकाशित कविता
संग्रह 'सफेद
कागज’ को
आज मैंने पढ़कर समाप्त किया है। इसमें संकलित 152 कविताएँ
विभिन्न विषयों पर केंद्रित हैं। कवि ने स्त्री, पिता व माँ पर अधिक कविताओं का सृजन
किया है,
जिससे ये भली-भाँति
समझा जा सकता है कि कवि के हृदय में स्त्री, पिता व माँ के प्रति आदरभाव व श्रद्धा
का कितना समावेश है। इस कविता संग्रह में
लगभग सभी कविताएँ पठनीय हैं। निर्भया, चाँद सुन लेगा, तुम
युक्ति हो मेरी,
फाइलें, गंगा: एक
जीवन जीने की विधि,
गन्ने का जूस, गाँव
क्यों उदास हो,
फिर बचपन क्यों याद है, चीटियाँ
व मैं कॉन्वेंट स्कूल हूँ इत्यादि कविताओं को बार-बार
पढऩे का मन करता है। कवि की भाषा शैली प्रभावशाली है।
जहाँ
'गन्ने
का जूस’
कविता में कवि ने लिखा है
'लोहे
के दो गोलों के बीच
पिसना
नियति है
दूसरों
को रस व
मिठास
देने के लिए
ये
गन्ने
अपनी
बूँद-बूँद
देना
अपना
कर्तव्य समझते हैं
वैसे
ही जैसे
दो
देशों की
सीमा
पर तैनात सैनिक
अपने
रक्त की एक-एक
बूँद
दे
देते हैं
अपने-अपने
देशों में
जीवन
की मिठास का
रस
भरने के लिए।‘
वहीं
कविता 'चीटियाँ’ में
कवि ने कहा है
'जीवन
में ऊँच-नीच
उतार-चढ़ाव-ठहराव
को
लाँघती
चीटियाँ
आज
फिर से आँगन में
अपने
अंडे लेकर निकलीं हैं
यह
संकेत है
प्रस्थान
का
परिवर्तन
का
प्रकृति
के बदलाव को
आत्मसात
करने का
और
एक नए पराक्रम का
अपनी संतति और
अस्तित्व को
कायम
करने के लिए।‘
तथा
'मैं
कॉन्वेंट स्कूल हूँ’
में कवि की लेखनी कहती है
'समाजवाद
से छूटा हूँ
पूँजीवाद
का पोषक हूँ
किसानों
और गरीबों से दूर
कुछ
अतिविशिष्ट
जनों
के लिए ही
उपलब्ध
हूँ
मैं
कॉन्वेंट स्कूल हूँ।‘
कुल
मिलाकर कवि का यह प्रथम प्रयास सराहनीय है। अभी लेखन जगत को उनसे काफी उम्मीदें
हैं और उन उम्मीदों पर कवि का खरा उतरना तय है। कवि शैलेन्द्र कुमार भाटिया जी को
सफेद कागज हेतु हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। ईश्वर करे कि उनकी सफेद कागज पुस्तक
उनके साहित्यिक जीवन का सुनहरा अध्याय लिखे। एवमस्तु!
पुस्तक:
सफेद कागज (कविता
संग्रह), लेखक
:
शैलेन्द्र कुमार भाटिया, समीक्षक: सुमित
प्रताप सिंह, प्रकाशक-
पी.एम. पब्लिकेशंस,
नई दिल्ली, पृष्ठ
:
224, मूल्य
-
145/- रुपये
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