सार सार को गहि रहै थोथा दे उड़ाय।। "
दरअसल जो लोग इस प्रकार की बयानबाजी कर रहे हैं, वे यह भूल रहे हैं कि इस धरती के हर मानव का सिर उठाकर स्वाभिमान से अपनी जीविका कमाना केवल उसका अधिकार नहीं है, जिसके लिए वे सरकार को जिम्मेदार मानते हैं; बल्कि यह तो उसका स्वयं अपने और अपने परिवार के प्रति उसका दायित्वभी है।
"गरीब पैदा होना आपकी गलती नहीं है; लेकिन गरीब मरना आपका अपराध है" बिलगेट्स, माइक्रोसोफ्ट के अध्यक्ष एवं पर्सनल कम्प्यूटर क्रांति के अग्रिम उद्यमी के यह शब्द अपने भीतर कहने के लिए कम लेकिन समझने के लिए काफी कुछ समेटे हैं।
यह बात सही है कि हमारे देश में बेरोजगारी एक बहुत ही बड़ी समस्या है; लेकिन पूरे विश्व में एक हमारे ही देश में बेरोजगारी की समस्या हो, ऐसा नहीं है।
लेकिन यहाँ हम केवल अपने देश की बात करते हैं। तो सबसे मूल प्रश्न यह है कि स्वामी विवेकानन्द के इस देश का नौजवान आज आत्मनिर्भर होने के लिए सरकार पर निर्भर क्यों है? वो युवा जो अपनी भुजाओं की ताकत से अपना ही नहीं बल्कि देश का भविष्य भी बदल सकता है, वह आज अपनी क्षमताओं, अपनी ताकत, अपनी योग्यता, अपने स्वाभिमान सभी कुछ ताक पर रखकरएक चपरासी तक की सरकारी नौकरी के लिए लाखों की संख्या में आवेदन क्यों करता है? जिस देश में जाति व्यवस्था आज भी केवल एक राजनैतिक हथियार नहीं; बल्कि समाज में अमीर- गरीब से परे ऊँच-नीच का आधार है उस देश में ब्राह्मण ,राजपूत, ठाकुर आदि जातियों तक के युवकों में सरकारी चपरासी तक बनने की होड़ क्यों लग जाती है?
ईमानदारी से सोच कर देखिए, यह समस्या बेरोजगारी की नहीं; मक्कारी की है जनाब!
क्योंकि आज सबको हराम दाड़ लग चुकी है। सबको बिना काम के बिना मेहनत के सरकारी तनख्वाह चाहिए और इसलिए प्रधानमंत्री का यह बयान उन लोगों को ही बुरा लगा, जो बेरोजगार बैठकर सरकार और अपने नसीब को तो कोस सकते हैं, जातिऔर धर्म का कार्ड खेल सकते हैं; लेकिन गीता पर विश्वास नहीं रखते, कर्म से अपना और अपने देश का नसीब बदलने में नहीं देश को कोसने में समय बरबाद कर सकते हैं।
शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि रिलायंस समूह ,जो कि आज देश का सबसे बड़ाऔद्योगिक घराना है, उसकी शुरुआत पकौड़े बेचने से हुई थी। जी हाँ अपने शुरुआती दिनों में धीरूभाई अम्बानी सप्ताहांत में गिरनार की पहाड़ियों परतीर्थ यात्रियों को पकौड़े बेचा करते थे! स्वयं गाँधीजी कहते थे कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता सोच होती है।
तो आवश्यकता है देश के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री की बात समझने की न कि तर्क हीन बातें करने की।
इस बात को समझने की, कि जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते ;बल्कि उसी काम को "अलग तरीके" से करते हैं, शिव खेड़ा ।
वैसे भी अगर इस देश का एक नौजवान पकौड़े बेचकर विश्व के पटल पर अपनी दस्तकदे सकता है और एक चाय वाला प्रधानमंत्री बन सकता है, तो विशेष बात यह है किभारत में अभी भी पकौड़े और चाय में बहुत स्कोप है।
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