भैया जी का नाम है भगवान् स्वरूप; किन्तु लोग इन्हें भाईचारे के कारण भैयाजी
शब्द से संबोधित करते है। शादी-विवाह, मौत-मरकत, जाति-बिरादरी, जान-बरात, स्कूल-अस्पताल,
थाना-चुगी नाका कहीं पर भी आपके दर्शन हो सकते हैं। कभी वे किसी से
बतियाते, ताल ठोंकते, हाथ उठाते,
नारा लगाते, तख्ती पकड़े, माइक थामे, रेली में धरने पर, जुलूस
में और आम सभा के मंच पर भी दिखाई दे सकते है। सिर पर कभी लाल तो कभी सफेद टोपी
में, कभी गले में भगवा रंग का रूमाल डाले तो कभी शुद्ध खादी
के धवल परिधान में भाषण देते हुए इनके दर्शन लाभ कर धन्य हो सकते है।
यदि आपको स्कूल की फीस माफ कराना हो, जमीन का नामांतरण
कराना हो, मकान की रजिस्ट्री कराना हो, बैंक से ऋण लेना हो, भामाशाही उपचार कराना हो,
तो पहुँच जाइए भैयाजी के पास; किन्तु ध्यान
रखना उनसे अकेले मिलोगे तभी काम होगा। काम कैसा भी हो आपको निराश नहीं लौटना
पड़ेगा। उद्घाटन, शिलान्यास, भूमि पूजन,
रैली, धरना, अनशन,
प्रदर्शन इन सबके लिये भैयाजी की सेवाएँ सराहनीय है। वह भी निःशुल्क
और समयबद्ध। क्षेत्रीय प्रशासन से लेकर दिल्ली दरबार तक इनकी पहुँच है। सुना है
भैयाजी को किसी आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है।
आजकल उनके ही गाँव के पास वाले शहर में उनकी चर्चा हर सुनागरिक
की जबान पर है। मैं भी हनुमान बगीचे वाले चौराहे पर गया था। वहाँ शान्ता जी
आँगनबाड़ी वाली मिल गई। वह चीख रही थी। नेता बनकर फिरने वाला ढोंगी समाजसेवक भैयाजी
अबकी बार जो मेरे केन्द्र पर आया तो उसे धक्के देकर बाहर कर दूँगी। भोला कुम्हार
कह रहा था, उन्होंने
पैसे भी ले लिये और काम भी नहीं हुआ। थानेदार से तो हर माह बीस हजार की बन्दी लेना
नहीं चूकता हैं। खुद नहीं आयेगा। पोते को इस सेवाकार्य के लिए नियुक्त कर रखा है।
बेचारे सेठ धन्ना लाल की उस दिन सबके सामने लू उतार दी। कह रहा था-‘‘हिसाब-किताब
ध्यान से रखना, नहीं तो रेड पड़वा दूँगा।’’ बेचारा गिड़गिड़ाकर
कहने लगा, अगले महीने से समय पर आपका माल घर पर पहुँच जाएगा
बाबू साहब! बड़े स्कूल वाला रामू चपरासी परेशान है इन दिनों। उसे चौबीसों घण्टे
भैयाजी के घर सेवा देनी पड़ रही है। यह तो हद हो गई श्रीमती भैयाजी अपने कपड़े भी
खुद नहीं धोती; पर
करे तो करे क्या रामा। परिवार को जो पालना है। नौकरी स्कूल की चाकरी भैयाजी के घर
की। कैसी विडम्बना है यह। इन दिनों भैया जी को राज्य मन्त्री का दर्जा भी मिल गया
है।
भैया भगवान् स्वरूप उर्फ भैयाजी जब भी शहर आते दो-चार चाटुकार
चमचे साथ आते और पूर्व नियोजित योजनानुसार भैयाजी को वहीं ले जाते जहाँ काम के
बदले भारी भरकम धनराशि उपलब्ध हो सके। कभी आपने काम के बदले अनाज वाली बात तो सुनी
होगी पर धीरे-धीरे विकास की अनवरत प्रवाहित होने वाली धारा मायाजाल में फँसती
दिखाई देने लगी। भैयाजी की विनम्रता,
उदारता, समर्पण, कर्तव्यनिष्ठा,
अनवरत सेवा-भावना की लोग प्रशंसा करते है।
सबके सामने फिर पीछे मुड़कर हँस देते है। यदि आप रास्ते में मिल गये तो भैयाजी
पूछेंगे, कहिए भैया ! क्या हालचाल है। घर पर सब ठीक है ना।
बड़वा बेटा क्या कर रहा है? और हाँ, सीमा
की तो शादी हो गई होगी। बड़ी अच्छी लड़की है वह। कभी कोई काम हो तो उसे कहना आकर मिल
ले और हाँ, तुम्हारे बड़े लड़के ने बी.एड. कर लिया है ना।
मास्टरों की सीधी भर्ती निकली है, उसे लेकर जयपुर आना।
मास्टर बना दूँगा छोकरे को। तू भी क्या याद करेगा। जिन्दगी बन जाएगी। जब किसी का
जीवन बनाना है, तो त्याग तो करना ही पड़ता है। मैंने हाँ में
हाँ मिलाते हुए कह दिया हाँ बाबूजी! सही है। मैने भी संक्षिप्त उत्तर से काम
चलाया।
गाँव वालों को सब्सिडी दिलाने, शौचालयों को मुफ्त बनवाने, वृद्धावस्था पेंशन दिलाने में गहरी भूमिका रही थी आपकी। किन्तु लोग भूल
जाते है किए गए उपकार को दादा! लोग मुँह पर मीठे है, पर पीठ
पीछे कह रहे है सब्सिडी से, बैंक लोन से, वृद्धावस्था पेंशन से, नरेगा कार्य से सब में भैयाजी
की ‘बन्धी’ बंधी हुई है और बातें करते है समाज सेवा की। दलित और पिछड़ों का उद्धार
और गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को ऊपर उठाने की बातें। कब तक यह नौटंकी चलेगी।
देखते है हम भी। कुछ निजी विद्यालयों में आर.टी.ई. में हुए घोटालों की जाँच करने
में भैयाजी को नियुक्त किया गया। बिना विलम्ब के निरीक्षण करने पहुँच गए। भारी
मात्रा में गड़बड़ थी। लाखों का घोटाला था; किन्तु तीन दिन की
जगह सात दिनों में जाँच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, तो घोटाले
की शिकायत बेबुनियाद निकली। एक स्कूल के संचालक भैयाजी के लिए बड़े काम के आदमी है।
चुनाव में रात-दिन पसीना बहाने वाले संचालक महोदय ने विद्यालय की अनुदान राशि भी
बढ़वा ली; क्योंकि भैयाजी भी सिद्धान्तवादी थे। उन्हें अधिक
आभारी बनने का शौक नहीं था। संचालक जी उपकृत हुए। कहने लगे, इस
बार आपके विद्यालय में आर.टी.ई. में छात्र संख्या बढ़ जाएगी। हाँ, जरूर बढ़ाओ। देश का विकास तभी होगा जब नीचे का आदमी शिक्षित बनकर ऊँचा उठेगा।
भगवान् सब ठीक करेगा। आप निश्चिन्त रहे। जाते-जाते भैयाजी ने संचालक जी के कन्धे
पर हाथ रखकर कहा- बोलो रावत सा. मैं कब वापस आऊँ? यह फोन पर
बता देना। बस इतना ही कहना-‘‘आपकी याद आ रही है भैयाजी। बस, मैं
समझ जाऊँगा।
भैयाजी की उदारता का क्या कहना, वे तो कहते है यदि आप वृद्धजन है। निःशुल्क
रेल या हवाई यात्रा करना चाहते है तो कभी भी आकर मेरे फार्म हाउस वाले बंगले पर
मिल ले। उम्र की चिन्ता न करे। चालीस तक भी होंगे तो चलेगा। आयु प्रमाण पत्र कुछ
ले देकर बनवा लेना। बाद में मैं सब कुछ सम्हाल लूँगा। पूछो उस छोटू के बच्चे को
मैंने कैसे तीन बार मु्फ्त में हवाई यात्राएँ करवाई है। मैं तो कहता हूँ, लोग व्यर्थ ही परेशान होते है। काम सबके होते है। समस्याएँ तो आती जाती
है। सबका समाधान है। कहा गया है-‘‘जीवन में कुछ पाना हो तो खोना भी पड़ता है।’’
हमारी सरकार अच्छे दिनों के लिए ढेर सारी योजनाओं से जनता की
सहायता कर रही है। व्यापार, उद्योग, बैंक, स्कूल, अस्पताल, पेन्शन, कन्या उन्नयन,
किसान विकास की कई योजनाएँ है, जिनका उपयोग
लोगों को करना चाहिए। किन्तु लोग समय पर लाभ नहीं उठाना जानते। नोट बंदी के समय
रामनाथ आया था, कह रहा था, पुराने नोट
पड़े रह गए दादा! क्या करें? मैने कहा, चिन्ता
मत कर, ‘‘मैं हूँ ना, सब ठीक हो जाएगा।
कल आता तो मैंने पुरुषोत्तम पाण्डे का यही काम करवाया था। साथ-साथ ही हो जाता।
पुरुषोत्तम से जरूर मिल लेना।
भैयाजी को मैंने कहा,
आपने दल बदलकर अच्छा नहीं किया। लोग आपके पुराने कारनामों को उघाड़
रहे हैं। कहते है किसना गुर्जर को लोन दिलाया तो आधा पैसा ही हाथ आया। बैक मेनेजर
से पूछा तो कहने लगा-‘‘भैयाजी से जाकर मिल लो।’’ बीस लाख में से केवल अठारह लाख
मिले। इतना भी घपला होता है क्या। पर करे तो करे क्या। ‘‘कौन सुने, किससे कहें,
सुने तो समझे नाहिं, कहना, सुनना, समझना सब मन हि के मन मांहि।’’
एक दिन मास्टर अशोक के तबादले के लिये भैयाजी को मैने कहा, तो वह कहने लगे- बारह
वर्ष हो गए उसे यहाँ। कभी एक बार भी आया क्या मेरे पास। बुलाओ उसे अभी का अभी।
अशोक जी नंगे पाँव दोड़े आये भैयाजी के पास। जैसे सुदामा जी दौड़कर गए थे। मास्टर
गिड़गिड़ाया, रोया, दाँतों में अँगुली
दबाई, पैर पड़ गया। बन्द कमरे में लम्बी बात हुई। लम्बी अवधि
के ठहराव वालों की सूची तैयार की गई। सभी को उपकृत करने का आश्वासन दिया भैयाजी
ने। दोनों ओर के आश्वासन रंग लाया और चुनाव के बाद तबादला हो गया। भैयाजी का
लंगोटिया भीखू भाई चूड़ीघर बाजार में मिल गया। वर्षों तक साथ निभाया भैयाजी का
उसने। कुछ समय उनका निजी सचिव भी बना रहा। अब तो भैयाजी के पैर जमीन पर नहीं
टिकते। अब उनकी पाँचों नहीं दसों अँगुलियाँ घी में है। क्योंकि वेतन भत्तों में
भारी बढ़ोतरी के साथ विदेशी यात्राओं में छूट तथा दैनिक भत्ते भी आसमान को छूने
लगे है। सेवा केवल पाँच साल की और सेवाप्रसाद जीवन भर का। है ना आदमी तकदीर वाला। सावधान
दोस्तों, अब उनका सेवा शुल्क भी आनुपातिक ढंग से बढ गया है।
विद्यालय का वार्षिक उत्सव था। भैयाजी मुख्य अतिथि थे। उद्बोधन में कहा- मेरे
देशवासियों, मैंने हमेशा जनभावना का ध्यान रखा है। लोगों को
रास्ता दिखाया। उनकी लम्बित समस्याओं का समाधान किया। फिर भी लोग कहते है तो कहने
दो। ‘‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।’’ यदि
भैयाजी से मिलना चाहें, तो दो माह बाद ही जाएँ; क्योंकि वे कल ही अपने सेवाकाल के पाँचवे वर्ष में सपरिवार निःशुल्क विदेश
यात्रा करेंगे। पाँच बड़े राष्ट्रों में अन्तिम यात्रा चीन की होगी। जहाँ कुछ अधिक
समय ठहर कर लौटने की योजना है। धैर्य बनाए रखे। मिलेंगे अवश्य।
सम्पर्कः पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी, पोस्ट-आगूचा, जिला- भीलवाडा, राजस्थान. पिन- 311022, मो. 09413781610
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