भारत की स्वतन्त्रता का 75वाँ साल इस वर्ष पूरा हुआ है। यूँ
कहें कि साल 2022 आज़ादी के नाम है। आज़ादी के इस अमृत महोत्सव की तैयारी हर तरफ़ बहुत
ज़ोर-शोर हुई। हर जगह ख़ुशहाली का माहौल है। हर एक व्यक्ति अपने-अपने तरीक़े से आज़ादी
के इस पर्व को मना रहा है। देश की अधीनता,
स्वतंत्रता-आंदोलन, स्वतंत्रता सेनानियों का
बलिदान, हमारा इतिहास, आज़ादी के बाद
देश के विकास में योगदान आदि चलचित्र की भाँति ज़ेहन में चल रहा है। हमारे लिए गर्व
की बात है कि अधीनता से मुक्ति के समय के कुछ लोग अब भी हमारे बीच हैं और उनके
सुनाए क़िस्से हममें जोश भर देते हैं। हर घर तिरंगा फहराने का जोश है।
देश की स्वतंत्रता के वर्ष की गिनती के अनुसार हमारा देश प्रौढ़
हो चुका है; लेकिन
मेरा मानना है कि जबतक देश विकासशील अवस्था में था, तो देश
बालक था। अब हम विकसित देश की श्रेणी में आ चुके हैं, तो
हमारा देश युवा माना जाएगा। युवा-शक्ति देश की धरोहर है और देश को आगे बढ़ाने की
ऊर्जा भी। देश का युवा बने रहना देश के युवाओं पर निर्भर करता है और देश कब तक
युवा रहेगा यह हमारे युवाओं की कर्मठता पर निर्भर है।
जब हमें आज़ादी मिली,
देश बहुत विकट परिस्थितियों से गुज़र रहा था। एक तरफ़ हुकूमत बदल रही
थी, देश का विभाजन हो गया था, तो दूसरी
तरफ़ दंगा शुरू हो गया। देश की भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक स्थितियाँ अस्थिर थीं। जाति,
धर्म, शिक्षा, प्रांत,
भाषा, बोली आदि कई तरह के मसले से हमारा समाज
टूट चुका था। समाज पूर्णतः विभाजित हो चुका था। ऐसे में उस समय पूरे देश को एकजुट
कर विकास कार्य करना इतना सहज नहीं था; परन्तु हमारे
राजनीतिज्ञों, समाज सेवियों, चिन्तकों,
प्रबुद्ध वर्ग तथा युवाओं के कठिन प्रयास से देश की स्थिति बदली और
आज हम आज़ादी का जश्न मन रहे हैं हैं।
हमारे कर्मठ नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के सम्मिलित
प्रयास से देश की स्थिति सुधरी और हमारा देश विकासशील देश से विकसित देश की श्रेणी
में आ गया। भारत पूरी तरह अब आत्मनिर्भर है। इन संघर्षों और सुधारों में हमारे
बुज़ुर्ग नेताओं और समाज सेवियों के अलावा युवा-शक्ति का भी बहुत बड़ा योगदान रहा
है। संघर्षशील पूर्वजों और बलिदानियों को विस्मृत न कर उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए कि
संघर्ष और विपरीत समय में साहस को कैसे संगठित कर मानसिक सम्बल बनाया जाए और आगे
बढ़ा जाए।
देश की सुरक्षा की मुहिम में हिस्सा लेना हो या बलिदान देना, फ़ौज़ में शामिल होकर
देश की सेवा करनी हो या खेत-खलिहान से लेकर राजपथ तक युवाओं की भागीदारी अचम्भित
करती है। सत्ता में हों या विपक्ष में, युवाओं के जोश में
कहीं कमी नहीं दिखती है। शिक्षा, कला, खेल,
राजनीति, व्यवसाय इत्यादि हर क्षेत्र में युवा
बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं और देश का नाम स्थापित करते हैं। युवा-शक्ति को अगर सार्थक
तरीके से देश के उत्थान में लगाया जाए, तो निःसंदेह भारत
विश्वगुरु बन सकता है। हालाँकि कुछ राजनीतिक दल युवा-शक्ति का ग़लत तरीके से उपयोग
कर भारत में अशांति और अराजकता फैला रहे हैं, जिसपर अंकुश
लगाकर उन्हें सही दिशा देना हर एक भारतवासी का कर्त्तव्य है।
एक बात जो मेरे ज़ेहन में सदैव रहती है कि दर्द के सभी दंश को
झेलते हुए आज़ादी में विस्थापित हुए परिवार ने ख़ुद को कितनी कठिनाई से सँभाला होगा।
लोगों ने छोटा-से-छोटा काम कर अपने परिवार की देखभाल की होगी। जो कार्य कभी नहीं
किया होगा वक़्त की विवशता ने वह काम भी कराया। मेहनत और हौसला के बल पर कई लोगों
ने बाद में समृद्धि हासिल की;
लेकिन मंज़िल पाने तक की राह कितनी कठिन रही होगी, इस बात की कल्पना ही हम कर सकते हैं। यह बात काबिले-ग़ौर है कि अगर हममें
जज़्बा हो, तो हम
किसी भी परिस्थिति में संतुलित रहकर अपनी राह बनाते हैं और एक मुक़ाम हासिल कर सकते
हैं।
मैं सोचने लगी कि अगर हमारे सोच का विस्तार हो तो समाज में
बहुत से ऐसे कार्य हैं जो किए जा सकते हैं। कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं है।
सूझ-बुझ की ज़रूरत है। न जाने ऐसी कितनी संस्थाएँ हैं, जो युवाओं के द्वारा
संचालित हैं, जिससे समाज का कार्य भी हो रहा है और उससे जुड़े
लोगों का जीवन यापन भी। सिलाई केंद्र, पशुपालन, शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्य, अलग-अलग तरह के व्यवसाय
आदि में भारत का युवा बहुत बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता है।
एक दिन टी. वी. पर ख़बर देखी कि एक शिक्षित लड़की चाय का ठेला
लगाकर हर दिन सैकड़ों रुपये कमा रही है। विदेश से शिक्षा प्राप्त नौजवान अपने गाँव
में रहकर वैज्ञानिक तरीके से जैविक खेती कर रहा है। किसी ने कोचिंग सेंटर खोलकर न
सिर्फ़ शिक्षा का प्रसार किया है; बल्कि बड़ी कमाई करके उच्च वर्ग
का जीवन जी रहा है। वेबसाइट के द्वारा मार्केटिंग, फ़ूड
डिलीवरी, दवा या घर के सामान की होम डिलीवरी आदि जितने भी
कार्य हैं लगभग सभी में युवा ही कार्य करते हैं।
एयरपोर्ट पर युवतियों के द्वारा अलग से टैक्सी चालन की व्यवस्था है।
मुझे याद है जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी, तब डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, सरकारी
अधिकारी का पेशा अपनाने पर ज़ोर दिया जाता था। जो पढ़ाई में ज़ियादा अच्छा हो,
उनसे उम्मीद रहती थी कि वे यू. पी. एस. सी. या राज्य प्रशासन या
बैंक अधिकारी के पद पर ज़रूर पहुँचेंगे। धीरे-धीरे समय के बदलने और भूमंडलीकरण के
बाद अन्य पेशा पर भी ध्यान गया। अब तो युवाओं द्वारा ऐसे- ऐसे कार्य हो रहे हैं,
जिससे पैसा और शोहरत दोनों मिल रहा है। लोगों के सोचने का नज़रिया
काफी बदल गया है। अब हर काम को इज़्ज़त के रूप में देखा जा रहा है।
आज जब देश अपने युवावस्था में है, देश के युवाओं से
उम्मीद बहुत बढ़ गई है। समाज के सरोकार से जुड़कर समय, शक्ति
और संसाधनों का सही उपयोग कर देश को समृद्ध, सक्षम एवं
शक्तिशाली बनाए रखने के लिए युवा-शक्ति को चिन्तनशील और कर्तव्यपरायण बनना होगा।
तभी देश का वर्तमान और भविष्य जो युवा-शक्ति के हाथ में है, सुरक्षित
रहेगा और विश्व के माथे पर भारत चाँद-सा चमकता रहेगा।
http://lamhon-ka-safar.blogspot.in/, http://saajha-sansaar.blogspot.in/
2 comments:
वाहह! बहुत ही सुन्दर आलेख। इस आलेख को प्रत्येक युवा पीढ़ी अवश्य पढ़ें। 🌹🙏😊धन्यवाद Mam 🌹🙏
बहुत सुंदर प्रेरणादायी आलेख। बधाई
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