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Jan 1, 2023

बाल कहानीः दादा जी की नसीहतें

  - पवित्रा अग्रवाल

अमित नई कॉलोनी में रहता था। उसके पड़ोस में एक नया परिवार रहने आया था, उसमें दादाजी की उम्र के एक व्यक्ति और उनकी पत्नी थीं । वह लंगड़ा कर चलते थे और कड़क स्वभाव के थे। वह अपने साथ बहुत से गमले लाए थे, जिस में बहुत तरह के रंग- बिरंगे फूल खिलते थे। उन्होंने कोई माली नहीं रखा था।  वह अपने पौधों की बच्चों की तरह देख भाल करते थे, वह बाँसुरी भी बहुत अच्छी बजाते थे।

    बच्चे उन पौधों को देख कर बहुत ललचाते थे, उनका बस चलता तो वह एक भी फूल पौधों पर नहीं छोड़ते पर उनका कड़क स्वभाव देख कर बच्चे उनसे दूर ही रहते थे ।

एक दिन पौधों के पास किसी को न देख कर सौमेश अपने को नहीं रोक पाया और दो तीन फूल तोड़ लिए, तब ही वहाँ दादाजी आ गए और उसका हाथ पकड़ कर बोले यह क्या कर रहे हो ? ... आगे से ऐसा गलती मत करना वरना तुम्हारे पापा से शिकायत कर दूँगा, अब जाओ यहाँ से।’

तब से बच्चों ने उन दादाजी टाइप व्यक्ति का नाम लंगड़दीन रख दिया और उन्हें देखकर एक गाना गाते थे – ‘लंगड़दीन, बजाए बीन '

पतंग के दिन आने वाले थे । बाजार रंग- बिरंगी, छोटी- बड़ी पतंगों से भरा पड़ा था। रास्ता चलते बच्चे बड़ी हसरत से पंतगों को देखते थे पर अभी स्कूल खुले हुए थे तो पतंग उड़ाने की छूट उन्हें नहीं मिली थी। पर जैसे- जैसे पतंग के दिन नजदीक आ रहे थे दादा जी का दखल बढ़ने लगा था । वह निकलते बैठते बच्चों को बहुत नसीहतें देने लगे थे । किसी से कहते, ‘सुनो आराम से पतंग उड़ाना, लूटने के लिए उसके पीछे मत दौड़ना, गिर गए तो जान भी जा सकती है।... देखों बच्चों लोहे की छड़ से पतंग लूटने की कोशिश कभी नहीं करना, ऊपर जा रहे हाई टेंशन वायरों से छड़ टकरा गई तो कोई बचाने वाला नहीं मिलेगा और बच्चों सुनो पतंग लूटने या उड़ाने के लिए छत की  मुँडेर पर भी मत चढ़ना ।’

   कुछ बच्चे ये नसीहतें सुन- सुन कर उनसे चिढ़ने लगे थे पर कोई जवाब नहीं देते थे। एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते थे। स्कूल की छुट्टी होते ही बच्चे पतंग उड़ाने की फ़िराक में रहते थे। दोपहर को पापा लोग तो काम पर चले जाते थे, जिनकी मम्मी नौकरी करती थीं वह भी घर में नहीं होती थीं, ऐसे में बच्चों को पतंग उड़ाने का मौका मिल जाता था  बस ऐसे ही एक दिन अमित के मम्मी पापा काम पर गए हुए थे, दादी गाँव में थीं। अमित घर में अकेला था। उसकी छत बहुत बड़ी थी, वह अपने दो तीन दोस्तों के साथ छत पर पहुँच गया था। सब अपनी अपनी पतगें और चरक लेकर आ गए थे और बड़ी तल्लीनता से पतंग उड़ा रहे थे। अमित के दोस्तों की कई पतंगें कट गई थीं।

पर अमित की एक भी नहीं कटी थी। यह देख उसके दोस्त बोले “क्या बात है अमित तुम ने तो कई पतंगें काट डालीं;  पर तुम्हारी अभी तक एक भी नहीं कटी है। कहीं तुम चाइनीज मांजा तो इस्तेमाल नहीं कर रहे ?”

‘यह पुराना चरक है, हो सकता है इसमें चायनीज मांजा ही हो, पर इस वर्ष तो मम्मी - पापा ने चायनीज मांजा न लाने का आदेश दे दिया है। बहुत खतरनाक होता है, पक्षी तो छोड़ो आदमी की जान पर भी बन आती है। आज के बाद इस चरक को इस्तेमाल नहीं करूँगा’

तभी एक बहुत बड़ी और बहुत सुंदर उड़ती पतंग पर बच्चों की नजर गई तो वह पतंग उड़ाना भूल कर उस को ही देखते रह गए और उसे पाने के लिए उस पतंग से पेच लड़ा कर उसे काटने की कोशिश करने लगे।

देखते ही देखते वह पतंग कट कर नीचे की तरफ आने लगी और बच्चे अपनी पतंगों को हवा में ही छोड़ कर उसे पकड़ने की कोशिश करने लगे। एक बच्चे ने वहाँ पड़ी लोहे की सरिया को उठाना चाहा तो दूसरे बच्चे को लंगड़दीन दादा की बात याद आ गई।  बच्चे ने छड़ उसके हाथ से ले कर दूसरे कोने में फेंक दी पर उस समय बच्चे किसी भी तरह पतंग लूट लेना चाहते थे और तभी अचानक वह हादसा हो गया. अमित छत से नीचे गिर गया था। आस पास कोई नहीं दिख रहा था।  बच्चे मदद के लिए चिल्लाने लगे।

शोर सुन कर दादा लंगड़दीन बाहर आए, अमित को बेहोश पड़ा देख कर जल्दी से बच्चों की मदद से ऑटो में डालकर अस्पताल ले गए । जगह जगह से खून बह रहा था। डाक्टर को सौंप कर वह हताश से बैठ गए थे । तब बच्चों ने बताया कि पतंग लूटने के चक्कर में अमित छत से गिरा है। अमित के माता -पिता घर पर नहीं थे और किसी को उनका मोबाइल नंबर भी नहीं पता था।  समस्या थी कि उन्हें कैसे सूचित किया जाए। अमित के दोस्त को उसके चाचा जी का घर पता था। वह दौड़कर उनके घर गया और अमित के छत से गिर जाने की बात बताई। फोन पर सूचना मिलते ही उसके माता पिता बहुत घबराए हुए आये। उनके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं।

तभी डॉक्टर ने आकर बताया ‘बच्चा अभी भी बेहोश है, उसे समय से न लाया गया होता तो खून बहुत बह जाता पर हमें अभी भी उसे एक यूनिट खून चढ़ाना पड़ेगा उसका ब्लड ग्रुप ओ पॉजेटिव है, आप में से किसी का यह ग्रुप हो तो खून दे सकते हैं। ’

तभी दादा जी आकर बोले- ‘मेरा ब्लड ग्रुप ओ पॉजेटिव है , आप चाहें तो मेरा ले सकते हैं’

तभी अमित के पिता आगे आये और हाथ जोड़ते हुए बोले - ‘नहीं अंकल जी आप का एहसान हम जिंदगी भर नहीं भुला सकते, मेरा भी यही ग्रुप है, खून तो मैं दे दूँगा।’

डॉक्टर ने राहत की साँस लेते हुए कहा ‘हमें उम्मीद है कि वह जल्दी ही होश में आ जायेगा, बस एक बार उसे होश आ जाये फिर चिंता की कोई बात नहीं है। चोटें और फ्रेकचर की चिंता नहीं है।  समय लगेगा पर वह ठीक हो जायेगा। ’

     बच्चे आदर से लंगड़दीन को दादा जी कहने लगे थे। अमित के माता पिता ने अश्रुपूर्ण आँखों से दादा जी को  बच्चों के साथ  घर जाने को कहा ।

घर लौटते समय रास्ते में दादा जी ने कहा – ‘बच्चों मुझे मालूम है कि तुम लोग मुझे देखकर ‘लंगड़दीन बजाये बीन’ का गाना गाते हो। हँसते हुए  पर बच्चों  मैं तो बीन नहीं, बाँसुरी बजाता हूँ ’

बच्चों ने शर्मिंदा होकर सॉरी बोला और कहा -‘हम कभी  उल्टा-सीधा गाना नहीं गाएँगे।दादा जी आप बाँसुरी बहुत अच्छी बजाते हैं, हमें भी सिखा देंगे ?”.

‘जरूर सिखाऊँगा पर एक बात बताऊँ , मैं हमेशा से लंगड़ा नहीं था। जब मैं पन्द्रह वर्ष का था, तो पतंग लूटने के चक्कर में छत  से गिर गया था । बच तो गया पर जीवन भर के लिए लंगड़ा हो गया ।... इसीलिए बच्चों  मैं तुम लोगों को सावधानी से पतंग उड़ाने की  नसीहतें देता रहता था, पर मेरी कोशिश बेकार गई।'

‘एक बार फिर सॉरी दादा जी, अब हम सब हमेशा आपकी बात मानेंगे, हमें माफ कर दीजिए। '

 ‘ठीक है बच्चों अब अपने अपने घर जाओ’

सम्पर्कः बेंगलौर (कर्नाटक), मो.- 9393385447, agarwalpavitra78@gmail.com

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