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Jun 5, 2010

आपके पत्रमां और गौरैया के बहाने

मां और गौरैया के बहाने
हमेशा की तरह यह अंक भी बहुत ही मनभावन बन पड़ा है। मज़े की बात यह भी कि इस बार वेब से पहले छपी हुई प्रति हाथ में आ गई। गौरैया पर जानकारी और उसकी तस्वीरे बहुत सुंदर हैं।
लघुकथा आंदोलन के दौर में गंभीर जी का नाम लघुकथाकार के रूप में बहुत चर्चित था। बड़े दिनों के बाद उनकी लघुकथा पढ़कर अच्छा लगा। उनकी लघुकथा बड़ा होने पर बिना कुछ कहे ही बहुत सारी बातें कह गई है।
मां और गौरैया के बहाने कितनी सारी बाते रामेन्द्र जी इतनी सहजता से कह गए कि पता ही नहीं चला। बहुत सुंदर कविता। बधाई।
- राजेश उत्साही, बैंगलोर, utsahi@gmail.com
पर्यायवरण के लिए अलख
आपकी चिन्ता वाजिब है। उदन्ती के माध्यम से आप पानी और पर्यायवरण के लिए जो अलख जगा रही हैं , यह कार्य आपको अन्य सम्पादकों से अलग करता है। आपका कार्य पूरी तरह रचनात्मक है।
बड़ा होने पर और फ़ीस लघुकथाएं अपने अलग -अलग तेवर से प्रभावित करती हैं।
- रामेश्वर काम्बोज, सहज साहित्य, दिल्ली, rdkamboj@gmail.com
संरक्षण के लिए बहुत जरूरी
अपने नए- नए आयामों की ओर पाठकों का ध्यान खींचा है इसके लिए आपको जितना धन्यवाद दिया जाए कम है। आपने अनकही में जिन तीन विषयों को सहेजा है वे आज के परिवेश के संरक्षण के लिए बहुत जरूरी हैं । बधाई।
- डॉ. जयजयराम आनंद, अरेरा कालोनी, भोपाल
छत्तीसगढ़ की शान
उदंती में सामने जो चिडिय़ा बैठी है मानो छत्तीसगढ़ की शान में बैठी है इसे तो अभयारण्य में छोड़ देना चाहिए।
-देवेन्द्र तिवारी, रायपुर
मन को भा गयी
सुन्दर साज-सज्जा व बेहतर आलेखों के साथ उदंती तो मेरे मन को भा गयी!
- कृष्ण कुमार मिश्र, लखीमपुर, खीरी (उत्तर प्रदेश)
dudhwalive.com
दस्तावेजों में दर्ज
उदंती के मई अंक में गौरेया विशेषांक देखकर मुझे याद आया कि कभी छत्तीसगढ़ रायपुर के महंत घासीदास संग्रहालय में गौरेया की अधिकता दस्तावेजों में दर्ज हुई है।
- राहुल सिंह, रायपुर rahulsinghcg@gmail.com
काहे को ब्याही बिदेस
मनोज राठौर का लेख विदेशों में सुरक्षित नहीं है भारत की बेटियां पढ़कर मन खिन्न हो गया। हमारे देश में बेटियां आज भी पराई अमानत के तौर पर पाली जाती हैं तभी तो आजादी के इतने बरसो बाद भी न तो हम पूरी तरह से बाल विवाह रोक पाए न कन्या भ्रूण हत्या। और अब विदेशों में ब्याही जाने वाली बेटियों की समस्या पैदा हो गई है। लेकिन यह समस्या तो हमारे द्वारा ही पैदा की गई है जब हमें पता है कि एनआरआई शादी सिर्फ विदेशों में अपना पैर जमाने के लिए करते हंै और मकदस पूरा होते ही अपनी पत्नी को छोड़ देते हंै फिर भी क्यों हम ऐसे लड़कों को अपनी बेटियां सौंप देते हैं। बाल विवाह और भ्रूण हत्या तो हमारे देश में सामाजिक अंधविश्वासों और रूढ़ परंपराओं के चलते आज तक जिंदा है पर एनआरआई पतियों की चाहत कौन सी रूढि़ की देन है?
- पल्लवी, भिलाई

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