झूठ आज से नहीं अनंत काल से रथ पर सवार है और सच चल रहा है पाँव - पाँव। -भवानीप्रसाद मिश्र
इस अंक में
अनकहीः ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के दस साल ... - डॉ. रत्ना वर्मा
महिला दिवसः आनंदीबाई जोशी: चुनौतियाँ और संघर्ष - पूजा ठकर
पर्व-संस्कृतिः सामाजिक समरसता का पर्व होली - प्रमोद भार्गव
प्रेरकः क्या लोगों को आपकी कमी खलेगी?
संस्मरणः ममता का मूल्यांकन - देवी नागरानी
आलेखः भाग.. उपभोक्ता.. तेरी बारी आई - डॉ. महेश परिमल
क्षणिकाएँः हँस पड़ी है नज़्म - हरकीरत हीर
विश्व कविता दिवसः अभिव्यक्ति में कविताएँ गद्य से बेहतर हैं - डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
लघुकथाः हम बेटियाँ हैं न! - सन्तोष सुपेकर
पर्व-संस्कृतिः सृष्टि का जन्म दिवस - उगादी - अपर्णा विश्वनाथ
कविताः अकिला फुआ - डॉ शिप्रा मिश्रा
कविताः औरतें इतनी उम्मीद क्यों करती हैं? - डॉ. शैलजा सक्सेना
बोध कथाः एक स्त्री किसी पुरुष से क्या चाहती है? - निशांत
कविताः कहाँ हो तुम - दीपाली ठाकुर
व्यंग्यः पियक्कड़ों की देशसेवा - गिरीश पंकज
दो लघुकथाएँः 1. पराया खून , 2.चलते-फिरते कार्यालय - राममूरत ‘राही’
दो लघुकथाएँः 1.सुहाग की निशानी, 2. मान का पान - सुधा भार्गव
किताबेंः सैनिक पत्नियों की डायरीः महत्त्वपूर्ण अभिलेख - रश्मि विभा त्रिपाठी
2 comments:
इस अंक के बहाने अच्छा साहित्य पढ़ने को मिला-धन्यवाद।
बेहतरीन अंक के लिए-बधाई।
सुंदर सामग्री.. 🌹
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