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Mar 1, 2025

व्यंग्यः पियक्कड़ों की देशसेवा

  - गिरीश पंकज

किसी ने प्रश्न किया : क्या लड़खड़ाते कदमों से भी देश की सेवा हो सकती है?

उत्तर मिला : क्यों नहीं हो सकती। इस तथ्य को जो नहीं समझते, वे बंदे नादान हैं। लड़खड़ाते कदमों से चलने वालों को कमअक्ल लोग शराबी कह कर अपमानित करते हैं। वे इस तथ्य से नावाकिफ है कि लड़खड़ाते कदमों का भारतीय अर्थव्यवस्था में कितना बड़ा योगदान है।

उस दिन हमने देखा, एक पियक्कड़ बंदे के कदम दिन में ही लड़खड़ा रहे थे।  मैं तो उस दिव्य आत्मा को देखकर बड़ा गद्गद हुआ। काहे कि देश की अर्थव्यवस्था के निरन्तर उत्थान में इस जैसे अनेक महापुरुषों का अप्रतिम योगदान है। इन सब का तो सार्वजनिक अभिनंदन होना चाहिए। सरकार को एक विशेष योजना चलानी चाहिए, जिस के तहत जिस किसी के भी कदम दिन-दहाड़े या रात-बिरात लड़खड़ाते दिखें, उनकी अलग से सुरक्षा-व्यवस्था करनी चाहिए; ताकि वे नाली-वाली में न गिर जाएँ। आज उस व्यक्ति के कदम भले ही लड़खड़ा रहे हैं; लेकिन उसके कारण देश आर्थिक समृद्धि की ओर बढ़ रहा है, यह नहीं भूलना चाहिए। हम विश्वास के साथ यह कह सकते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में पियक्कड़ों का अपना बड़ा योगदान है।

आज देश के अनेक राज्यों की अर्थव्यवस्था शराब की अद्भुत धुरी पर टिकी हुई है। शराबबंदी हो जाए, तो कुछ राज्य बेचारे शायद दिवालिया ही घोषित कर दिए जाएँ। यह तो बेचारी इकलौती शराब ही है, जिसके कारण सरकारों के चेहरों पर शबाब नज़र आता है । बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद। नादान हैं वे लोग, जो बोलते हैं कि शराब बड़ी खराब है। और अब तो सामने होली है। होली की खुशी में लोग छककर शराब पीते हैं। कुछ लोग तो सुबह से ही टुन्न रहते हैं । यह और बात है कि शाम होते-होते वे अकसर दिमागी तौर पर सुन्न भी हो जाते हैं। लेकिन ये महान लोग देश को मजबूत कर रहे हैं। अर्थशास्त्री बताते हैं कि लोग जितनी अधिक शराब पिएँगे, जितने ज्यादा लोगों के कदम लड़खड़ाएँगे, उतनी ही देश में समृद्धि आएगी। और हम देख भी रहे हैं कि कोई भी अति समझदार सरकार शराबबंदी नहीं लागू करना चाहती। पहले सरकारें मूर्ख हुआ करती थीं। वे जनता को अधिक-से-अधिक सब्सिडी देकर लाभ पहुँचाने की कोशिश किया करती थीं ; लेकिन अब इक्कीसवीं सदी में राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, सभी में होशियारी नहीं डेढ़-होशियारी आ गई है। विश्व बाजार में पेट्रोल की कीमत कम होती है ; लेकिन हमारे यहाँ एक बार जो कीमत चढ़ गई तो वह चढ़ी रहती है। जैसे किसी शराबी के दिमाग में नशा चढ़ा रहता है, उस तरह पेट्रोल की कीमत भी चढ़ी रहती है। शराब से दुखी लोग माँग करते रहते हैं कि शराबबंदी की जाए और सरकार कहती भी है कि हम जल्द करेंगे;  लेकिन यह जल्द कभी जल्द ही नहीं आता। मदिरा अपने हुस्न पर इठलाती हुई अपनी जगह जमी रहती है। पीछे के दरवाजे से सरकार को भी धन्यवाद भी देती है कि तुम्हारे कारण मेरे हुस्न का जलवा जमा हुआ है। सरकार भी एक आँख दबाते हुए कहती है- ''ऐ हुस्न की मलिका! तुम तो अपना काम करो। हमारे जीने-खाने की व्यवस्था तुम्हारे ही भरोसे तो है। अगर हम तुमको ही बंद कर देंगे, तो हमारा क्या होगा।''

तो सरकार और शराब दोनों मिल-जुलकर इस देश को आगे बढ़ा रहे हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण योगदान हर उस आदमी का भी है, जो शराब पीकर लड़खड़ा रहा है । आप कह सकते हैं- " देखिए, वह शराबी है। लड़खड़ा कर चल रहा है।'' लेकिन आप भूल जाते हैं कि उसके लड़खड़ाते कदम देश की अर्थव्यवस्था को लड़खड़ाने नहीं देते।

पिछले दिनों ऐसे ही एक टुन्न सज्जन  सो भेंट हो गई। देश की अर्थव्यवस्था में उनका योगदान है;  इसलिए मैंने उन्हें दूर से नमस्ते किया। फिर पास आकर कहा, ''तुम बहुत शराब पीते हो?"

वह उत्साहित होकर बोला, "हाँ,पीता हूँ।  आइए न, आप भी बैठ जाइए। एक से भले दो।"

मैंने हाथ जोड़ कर ज़वाब दिया,  ''बंधु, मैं तुम्हारी तरह महान नहीं हूँ।  मैं राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान नहीं कर पा रहा हूँ;  क्योंकि मैं दूध से काम चला लेता हूँ। कहाँ शराब और कहाँ दूध।"

शराबी ने मुझे हिकारतभरी नज़रों से देखते हुए कहा, "इतने बड़े हो गए हो और अभी तक दूध पीते बच्चे हो? शर्म नहीं आती । हमको देखो, हमने दूध पीना कब का छोड़ दिया है, शराफत की तरह। अब तो सुबह और शाम भर लेते हैं जाम, और सबको देते हैं यही पैगाम कि शराब पीकर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करें। मुझे अपने आप पर गर्व है कि रोज एक -दो बोतल खरीदकर सरकार के खजाने को समृद्ध करता हूँ। आप भी देश को मजबूत करें न! एक से भले दो!"

उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और पैग  बनाने लगा। बड़ी मुश्किल से उसकी चंगुल से छूटकर निकल भागा। वैसे बंदे की बात में दम तो है। भले ही पियक्कड़ों के कदम लड़खड़ाते हों, लेकिन देश की अर्थव्यवस्था को वे मजबूती के साथ सँभाल रहे हैं, इसमें दो राय नहीं।

2 comments:

Anonymous said...

अच्छा व्यंग्य है।😄
अशोक कु मिश्रा

Anonymous said...

धन्यवाद